________________
ॐ गीता दर्शन भाग-20
लेकिन बच्चे रोते हुए पैदा होते हैं और बूढ़े रोते हुए मरते हैं। सम्मोहन के मैंने कहा एक-दो सूत्र समझें, तो योगमाया समझ में असल में दोनों छोर हमेशा मिल जाते हैं। असल में दोनों छोर आ सके। वह भी एक ग्रेटर हिप्नोसिस है। कहें कि स्वयं परमात्मा बराबर एक से हो जाते हैं। बूढ़ा रोता हुआ मरता है, तो हमारी समझ | | अपने को सम्मोहित करता है, तो संसार में उतरता है, अन्यथा नहीं में आता है कि क्यों मरता है रोता हुआ, जिंदगी छूट रही है इसलिए। उतर सकता। परमात्मा को भी संसार में उतरना है-हम भी उतरते इसलिए हम सोचते हैं, रो रहा है। जिसे हम जिंदगी जानते थे, वह हैं, तो सम्मोहित होकर ही उतरते हैं। एक गहरी तंद्रा में उतरें, तो ही हाथ से जा रही है, इसलिए रो रहा है। लेकिन बच्चा क्यों रोता है ? | | पदार्थ में प्रवेश हो सकता है, अन्यथा प्रवेश नहीं हो सकता। इसलिए ठीक वही बात जो बूढ़े की है। उसकी भी कोई जिंदगी छूटती है। | जाग जाएं, तो पदार्थ के बाहर हो जाते हैं। और सम्मोहन में डूब जाएं, हमें दूसरा छोर दिखाई पड़ रहा है उसके छूटने का। बूढ़े का पहला तो पदार्थ के भीतर हो जाते हैं। छोर दिखाई पड़ रहा है छूटने का; बच्चे का दूसरा छोर दिखाई पड़ __ अगर किसी व्यक्ति को सम्मोहित किया जाए-जो कि दुनिया में रहा है छूटने का।
हजारों जगह प्रयोग किए गए हैं, खुद मैंने भी प्रयोग किए हैं और असल में बूढ़ा जो रोता है, वही रोना बच्चे के जन्म तक जारी | पाया कि सही हैं—आपको अगर सम्मोहित करके बेहोश किया रहता है। वे एक ही चीज के दो छोर हैं। इधर बूढ़ा रोता है, यह एक | जाए, फिर आपके हाथ में एक कंकड़ रख दिया जाए साधारण सड़क पर्दा गिरा नाटक का। यह आदमी पर्दे के पीछे गया, रोता हुआ पर्दे का उठाकर और कहा जाए, अंगारा रखा है आपके हाथ में। आप के पीछे गया। पर्दे के पीछे उतरा, रोता हुआ उतरा। उधर उसका चीख मारकर उस कंकड़ को-मेरे लिए और आपके लिए उस जन्म हो रहा है, इधर उसकी मौत हुई थी। इधर एक आदमी मरा, | अंगारे को फेंक देंगे और चीख मारेंगे, जैसे अंगारे में हाथ जल गया। उधर जन्मा। रोता हुआ मरता है, रोता हुआ जन्मता है। ___ यहां तक तो हम कहेंगे, ठीक है। आदमी गहरी बेहोशी में है।
जरथुस्त्र से किसी ने बाद में पूछा कि हमने सुना है, तुम हंसते | | उसे भ्रम हुआ कि अंगारा है। लेकिन बड़ा मजा तो यह है कि उस हुए पैदा हुए! तो जरथुस्त्र ने कहा कि ठीक सुना है, क्योंकि मैं उसके | | बेहोश आदमी के हाथ पर फफोला भी आ जाएगा। फफोला होश पहले हंसता हुआ मरा। हम हंसते हुए चले आ रहे थे पर्दे के पीछे | | में आने पर भी रहेगा, उतनी ही देर, जितनी देर असली अंगारे से से। लोगों ने पछा. तम हंसते हए क्यों मरे? तो जरथस्त्र ने कहा. पडा हआ फफोला रहता है। यह फफोला क्या है? यह योगमाया हंसते हुए इसलिए मरे कि लोग रो रहे थे और हम समझ रहे थे कि | | है। यह फफोला सिर्फ संकल्प से पैदा हुआ है, क्योंकि अंगारा हाथ हम मर ही नहीं रहे हैं, वे व्यर्थ रो रहे हैं; तो हंसी आ गई। पर रखा नहीं गया था, सिर्फ सोचा गया था।
कृष्ण कहते हैं, अजन्मा हूं मैं। यहां जिस मैं की बात कर रहे हैं, | ठीक इससे उलटा भी हो जाता है। अलाव भरे जाते हैं और लोग वह परम मैं, परमात्मा का मैं। मेरा कोई जन्म नहीं; फिर भी उतरा अंगारों पर कूद जाते हैं और जलते नहीं। वह भी संकल्प है। वह हूं इस शरीर में। तो फिर इस शरीर में उतरना क्या है ? उसको वे | | भी गहरा संकल्प है, इससे उलटा। सम्मोहन में अंगारा हाथ पर रख कहते हैं, योगमाया से।
दिया जाए और कहा जाए, ठंडा कंकड़ रखा है, तो फफोला नहीं इस शब्द को समझना जरूरी होगा, क्योंकि यह बहुत की, बहुत | | पडेगा। भीतर हमारी चेतना जो मान ले. वही हो जाता है। कुंजी जैसे शब्दों में से एक है, योगमाया। योगमाया से, इसका क्या । कृष्ण कहते हैं कि मैं—परमात्मा की तरफ से बोल रहे हैं कि अर्थ है ? इसका क्या अर्थ है ? थोड़ा-सा सम्मोहन की दो-एक बातें मैं-अपनी योगमाया से शरीर में उतरता है समझ लें, तो यह समझ में आ सकेगा।
__ शरीर में उतरना तो सदा ही सम्मोहन से होता है। लेकिन योगमाया का अर्थ है-या ब्रह्ममाया कहें या कोई और नाम दें, सम्मोहन दो तरह के हो सकते हैं। और यही फर्क अवतार और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता–अर्थ यही है कि अगर आत्मा चाहे, | | साधारण आदमी का फर्क है। अगर आप जानते हुए, कांशसली, आकांक्षा करे, तो वह किसी भी चीज में प्रवेश कर सकती है। सचेत, शरीर में उतरें-जानते हुए–तो आप अवतार हो जाते हैं। आकांक्षा करे, तो किसी भी चीज के साथ संयुक्त हो सकती है। और अगर आप न जानते हुए शरीर में उतरें, तो आप साधारण आकांक्षा करे, तो जो नहीं होना चाहिए वस्तुतः, वह भी हो सकता | व्यक्ति हो जाते हैं। सम्मोहन दोनों में काम करता है। लेकिन एक है। संकल्प से ही हो जाता है।
स्थिति में आप सम्मोहित होते हैं प्रकृति से और दूसरी स्थिति में