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भागवत चेतना का करुणावश अवतरण
यह इतनी ही सरल और सीधी बात उन्होंने कही है।
कल्पना करें, अगर आपको ऐसी जगह रखा जाए जहां कोई न | मरा हो और आपने कभी मरने की कोई घटना न देखी हो, आपने
मृत्यु शब्द न सुना हो, आपको किसी ने मौत के बाबत कुछ न अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्। बताया हो, क्या आप अपने ही तौर अकेले ही कभी भी सोच पाएंगे प्रकृति स्वामधिष्ठाय संभवाम्यात्ममायया।।६।। कि आप मर सकते हैं? नहीं सोच पाएंगे। यह निजी एकांत में आप मैं अविनाशी स्वरूप अजन्मा होने पर भी तथा सब भूत | न खोज पाएंगे कि आप मर सकते हैं, क्योंकि मृत्यु की कल्पना ही प्राणियों का ईश्वर होने पर भी अपनी प्रकृति को अधीन भीतर नहीं बनती। करके योगमाया से प्रकट होता हूं। | भीतर जो है, वह मरणधर्मा नहीं है। भीतर जो है, वह मरणधर्मा
नहीं है; वह अजन्मा भी है। असल में वही मरता है, जो जन्मता है।
| जो नहीं जन्मता, वही नहीं मरता है। कष्ण यहां चेतना कैसे प्रकट होती है पदार्थ में, परमात्मा । कृष्ण कहते हैं, मैं अजन्मा हूं, अजात, जो कभी जन्मा नहीं,
कैसे आविर्भूत होता है प्रकृति में, अदृश्य कैसे दृश्य अनबॉर्न। और इसलिए अनडाइंग हूं, मरूंगा भी नहीं। औरों की
के शरीर को ग्रहण करता है, अलौकिक कैसे लौकिक | भांति मैं जन्मा हुआ नहीं हूं, अर्जुन! बन जाता है, अज्ञात असीम अनंत कैसे सीमा और सांत में बंधता और तो सभी मानते हैं कि उनका जन्मदिन है। उनके मानने में है, उसका सूत्र कहते हैं।
ही उनकी भ्रांति है। ऐसा नहीं है कि वे जन्मे हैं. जन्मे तो वे भी नहीं वे कहते हैं. मैं और लोगों की भांति जन्मा हआ नहीं हैं। | हैं। लेकिन जिस दिन वे जान लेंगे कि वे जन्मे नहीं हैं. वे भी मेरे ही · यहां एक बात तो सबसे पहले ठीक से समझ लें कि जब वे | | भांति हो जाएंगे, वे भी मेरे ही रूप हो जाएंगे। कहते हैं, मैं और लोगों की भांति जन्मा हआ नहीं है, तो इसका __ यह जो अजन्मा है, जो कभी जन्मता नहीं है, वह भी तो आया जैसा अब तक मतलब लिया जाता रहा है, वैसा मतलब नहीं है। | है। वह भी तो उतरा है, आविर्भूत हुआ है। वह भी तो पैदा हुआ है। लोग कहेंगे कि यहां वे कह रहे हैं कि मैं भगवान का अवतार हूं, | वह भी तो जन्मा ही है। कृष्ण भी तो जन्मे ही हैं। बाकी लोग नहीं है। ऐसा नहीं कह रहे हैं। यहां वे इतना ही कह रहे | । कहानी है कि जरथुस्त्र पैदा हुआ, तो जैसे कि और बच्चे रोते हैं, हैं कि जन्मता तो कोई भी नहीं है, लेकिन दूसरे मानते हैं कि वे | | जरथुस्त्र रोया नहीं, हंसा। अब जरथुस्त्र वैसे ही थोड़े-से लोगों में जन्मते हैं; और जब तक वे मानते हैं कि जन्मते हैं, तब तक मरते | | एक है, जैसे कृष्ण। शायद पृथ्वी पर अकेला एक ही बच्चा जन्म हैं। उनकी मान्यता ही उनकी सीमा है। यहां वे कह रहे हैं, मैं औरों | के साथ हंसा है, वह जरथुस्त्र। घबड़ा गए लोग। घबड़ा ही जाएंगे। की भांति जन्मा हुआ नहीं हूं। यहां उनका प्रयोजन है कि मैं जानता | बच्चा पैदा हो और हंसने लगे खिलखिलाकर, तो घबड़ा ही जाएंगे। हूं भलीभांति, जैसा कि और नहीं जानते कि मैं अजन्मा हूं, मेरा क्योंकि हंसना बच्चे के लिए स्वाभाविक नहीं है, रोना बिलकुल कभी जन्म नहीं हुआ।
स्वाभाविक है। एक बहुत सोचने और खयाल में और कभी भीतर खोजने जैसी लेकिन कभी आपने सोचा कि बच्चे के लिए अगर रोना बात है। कितना ही मन में सोचें, आप यह कभी सोच न पाएंगे, स्वाभाविक है, तो बूढ़े के लिए रोते हुए मरना स्वाभाविक नहीं होना इनकंसीवेबल है, इसकी कल्पना नहीं बनती कि मैं मर जाऊंगा। चाहिए। क्योंकि जो बच्चे के लिए स्वाभाविक है, बूढ़े को कम से कितनी ही कोशिश करें इसकी कल्पना बनाने की, कल्पना भी नहीं कम अनुभव से इतना तो हो जाना चाहिए कि वह बच्चे के पार चला बनती कि मैं मर जाऊंगा। इसका खयाल ही भीतर नहीं पकड में| | जाए। आता कि मैं मर जाऊंगा। इसीलिए तो इतने लोग चारों तरफ मरते बच्चा रोता हुआ पैदा हो, माफ किया जा सकता है। बूढ़ा रोता हैं, फिर भी आपको खयाल नहीं आता कि मैं मर जाऊंगा। भीतर | हुआ मरे, तो माफ नहीं किया जा सकता। जिंदगी इतना भी न सिखा सोचने जाओ, तो ऐसा लगता ही नहीं कि मैं मरूंगा। भीतर मृत्यु | पाई कि बचपन में जन्म के साथ जो हुआ था, वह कम से कम मृत्यु के साथ कोई संबंध ही नहीं जुड़ता।
के साथ न हो!
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