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________________ गीता दर्शन भाग-20 था, तो कुछ आश्चर्य नहीं है। और आज अगर अज्ञान साहसी है, खोली और कहा, उसका जवाब तो अभी तक नहीं मिला। उसके तो अज्ञान दुष्परिणाम लाता है, तो भी कुछ आश्चर्य नहीं है। | गुरु ने कहा, मूरख, मरे हुए लोग जवाब नहीं देते। उठ, और अपने आज नास्तिक सारे जगत में जिस भाषा में बोलता है, वह उसी | घर जा! मर गया था, तो मर जाना था। जवाब देने की इतनी क्या ताकत की भाषा है, जिस ताकत में कभी कृष्ण, महावीर और बुद्ध | जल्दी थी? लेकिन मरने का कोई नाटक नहीं हो सकता है। बोले। आज उस ताकत की भाषा में मार्क्स, स्टैलिन और माओत्से __अब यह जो गुरु कह रहा है कि मर जा, वह समझ ही नहीं पा तुंग बोलते हैं। उसी ताकत की भाषा में। आज अगर पुरी के | रहा है, किस मृत्यु की बात हो रही है। जब गुरु कह रहा है, अरे, शंकराचार्य को बोलना है, तो ताकत नहीं है; तो फिर शास्त्र, वेद, । | फिर तू आ गया, तब भी वह नहीं समझ पा रहा है कि किसके आने पुराण, उन सबसे इकट्ठा करके बोलना है। | की बात हो रही है। जिस अहंकार के मरने के लिए वह गुरु बात पुरी के शंकराचार्य कहते हैं कि कोई अगर सिद्ध कर दे कि शास्त्रों | कर रहा है, वह उसके खयाल में नहीं आता। ज्यादा से ज्यादा उसे में लिखा है कि गौवध होता था यज्ञों में, कोई अगर सिद्ध कर दे कि खयाल में आया कि इस शरीर को गिरा दो, आंख बंद करके पड़े शास्त्रों में लिखा है, तो मैं गौवध का विरोध छोड़ दूंगा। बड़ी कमजोर | रह जाओ। और क्या हो सकता है? दुनिया है। कोई अगर सिद्ध कर दे कि शास्त्रों में लिखा है कि गौवध शरीर केंद्रित दृष्टि शरीर के बाहर की बातों को सुन नहीं पाती। होता था, तो पुरी के शंकराचार्य, गौवध बंद हो, ऐसा आंदोलन | | अर्जुन भी शरीर केंद्रित है। उसकी सारी चिंतना, उसका सारा संताप छोड़ने को तैयार हैं! दलील और प्रमाण कोई दे दे। | शरीर केंद्रित, बाडी ओरिएंटेड है। वह कहता है, ये मेरे प्रियजन मर लेकिन इतना साहस नहीं सत्य में कि वह सीधा कहे कि सब | | जाएंगे। कृष्ण कहते हैं, ये कोई नहीं मरने वाले हैं। ये पहले भी थे शास्त्रों में लिखा हो कि गौवध होता था, तो भी गौवध नहीं हो और फिर भी रहेंगे। वही-वही सवाल लौट-लौटकर चला आता सकता है, क्योंकि ऐसा हमारी आत्मा कहती है कि यह गलत है। अभी कृष्ण पहले समझाते हैं कि कोई ये मरेंगे नहीं। ये पहले है-ऐसा। ऐसा नहीं कह सकता कोई हिम्मतवर आज, तब फिर | भी थे, पीछे भी रहेंगे। तू इनकी फिक्र मत कर। कुछ समझता नहीं अर्थ नहीं है। कोई ऐसा नहीं कह सकता कि तुम नहीं जानते और | | है अर्जुन। अब वह फिर वही पूछता है, आप! आप सूर्य के पहले मैं जानता हूं। लेकिन ऐसा कोई कहना चाहे, तो नहीं कह सकता। कहां थे? आप तो अभी पैदा हुए हैं! कहना चाहे, तो बहुत मुश्किल में पड़ेगा। | वही शरीर से बंधी हुई दृष्टि! लेकिन कृष्ण एक सीधा वक्तव्य ठीक ऐसी मुश्किल में पड़ेगा, मैंने सुना है, एक साधक एक गुरु | | देते हैं। दलील दे सकते थे। लेकिन जिनके पास अनुभव है, वे के पास बहुत दिन तक था। गुरु उससे कहता कि इस तरह ध्यान | दलील हमेशा पीछे देते हैं, वक्तव्य पहले दे देते हैं। जिनके पास करो कि तुम बचो ही न, बिलकुल मर जाओ, तभी परमात्मा | अनुभव नहीं है, वे दलील पहले देते हैं, वक्तव्य पीछे देते हैं। मिलेगा। उसने कई तरह की कोशिशें कीं, लेकिन मर कैसे जाए? | | जिनके पास अनुभव है, वे दलील का उपयोग सिद्ध करने के लिए रोज गुरु के पास आता और गुरु कहता कि तुम अभी भी हो! फिर नहीं करते। वे दलील का उपयोग ज्यादा से ज्यादा समझाने के लिए ध्यान क्या खाक होगा? मिटोगे नहीं, मरोगे नहीं, ध्यान नहीं होगा। करते हैं। वह बेचारा रोज लौट जाता। फिर दूसरे दिन सुबह आता कि फिर तो पहली तो बात यह समझ लें कि कृष्ण ने बेझिझक कहा कि अपनी खबर कर दे कि अभी तक ध्यान हुआ नहीं। गुरु उसे देखते | | तू नहीं जानता और मैं जानता हूं। इतना बेझिझक अनुभव ही हो से ही कहता, अरे! तुम अभी भी जिंदा हो? सकता है। लेकिन गुरु भी झिझकते हुए हो सकते हैं। और तब अगर एक दिन उसने सोचा, यह कब तक चलेगा! सुबह वह पहुंचा, | | शिष्य झिझकते हुए हो जाएं, तो बहुत कठिनाई क्या है? गुरु भी गुरु के दरवाजे पर खड़ा ही हुआ था; गुरु ने कहा, अरे! उसने | सोच-विचार करके उत्तर देते हों, तो फिर शिष्य भी उत्तर से वंचित कहा, मत कहो। और एकदम गिरा और मर गया। वहीं गिरा और | रह जाएं, तो हैरानी क्या है? मर गया। आंखें बंद कर लीं, सांस रोककर पड़ रहा। गुरु पास | यह सोच-विचार नहीं है कृष्ण की तरफ, यह सीधी प्रतीति है कि आया, उसने कहा कि बिलकुल ठीक। अच्छा, मैंने तुम्हें कल एक | | तू नहीं जानता। यह ठीक वैसे ही है जैसे एक अंधे आदमी से कोई सवाल दिया था, उसका जवाब तो दो। उस आदमी ने एक आंख आंख वाला कहे कि सूरज है; मैं जानता हूं और तू नहीं जानता। 124
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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