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भागवत चेतना का करुणावश अवतरण
नाट ए कनक्लूजन, बट एन एक्सपीरिएंस। निष्कर्ष नहीं है सत्य।। | जाना बड़ा कठिन है। जिसने शास्त्र से ध्यान सीखा, उसने कागज वह दो और दो चार होते हैं, ऐसा जोड़ा गया हिसाब नहीं है, जाना की नाव में यात्रा करने का विचार किया है। खतरनाक है वह यात्रा। गया अनुभव है।
उधार है ज्ञान, इसलिए झिझकता हुआ है। ज्ञान ने साहस खो इसलिए कृष्ण जब कहते हैं कि अर्जुन, तुझे पता नहीं और मुझे दिया। बल्कि और मजे की बात है, अज्ञान बहुत साहसी है आज। पता है। और जब मैं कहता हं कि सूर्य को मैंने कहा था, तो मैं किसी अज्ञान इतना साहसी कभी भी न था। और जन्म की बात कर रहा हूं। यह इस जन्म की बात नहीं है। ___ ध्यान रहे, अगर चार्वाक को कहना पड़ता था कि ईश्वर नहीं है,
एक और ध्यान देने की बात है, कि ज्ञान कृष्ण के समय या बुद्ध | | तो हजार दलीलें देनी पड़ती थीं, तब चार्वाक कहता था, ईश्वर नहीं के समय या महावीर के समय में इतना झिझकता हुआ नहीं था, | है। ईश्वर नहीं है, एक कनक्लूजन था, एक निष्पत्ति थी। हजार जितना आज है। बहुत बोल्ड था, बहुत साहसी था। जो कहना है, | दलील देता था और फिर कहता था, देखो, यह दलील, यह दलील, कहता था। आज ज्ञान बहुत झिझकता हुआ है। जो भी कहना है, | यह दलील; तब मैं कहता हूं कि ईश्वर नहीं है। हजार दलील देता वह सीधा कहना मुश्किल है। क्या कारण होगा? कारण एक ही है। | था, तब कहता था कि देखो, मैं कहता हूं, आत्मा नहीं है। ज्ञान बहुत आज जिसे हम ज्ञान कहते हैं, सौ में निन्यानबे मौके पर उधार होता | शक्तिशाली था, वह कहता था, ब्रह्म है—बिना दलील के। और है, इसलिए झिझकता है।
| अज्ञान बहुत कमजोर था; वह हजार दलील जुटाता था, तब कहता - एक साध्वी ने योग पर एक किताब लिखी, मुझे भेजी। देखा, | | था कि शक होता है आत्मा पर। किताब मुझे बहुत पसंद पड़ी; बहुत अच्छी लिखी। लेकिन दो-चार | | आज हालत बिलकुल उलटी है। आज जिसको कहना है, जगह मुझे ऐसा लगा कि उस साध्वी को योग का या ध्यान का कोई | आत्मा नहीं है, बिना दलील के कहता है, आत्मा नहीं है, ईश्वर नहीं भी अनुभव नहीं है। क्योंकि जो फिजूल बातें थीं, वह तो उसने बड़े | है; कोई दलील देने की जरूरत नहीं है। और जिसको कहना है, बलपूर्वक कहीं, और जो सार्थक बातें थीं, उनमें बड़ी झिझक थी। | ईश्वर है, वह हजार दलीलें इकट्ठी करता है कि यह कारण, यह
फिर दो-चार वर्ष के बाद वह साध्वी मुझे मिली। मैंने कुछ बात | | कारण, इसलिए। जैसे कि कुम्हार घड़े को बनाता है, ऐसे भगवान न की उस किताब की। थोड़ी देर के बाद उसने कहा, मुझे अकेले | जगत को बनाता है। कुम्हार, भगवान को सिद्ध करने के लिए में कुछ बात करनी है। मैंने कहा, पूछे। उसने कहा, मुझे ध्यान के | | दलील है। बेचारा कुम्हार, उसका कोई हाथ नहीं! इतनी कमजोर संबंध में कुछ बताएं कि कैसे करूं? मैंने कहा, चार वर्ष हुए तुम्हारी | | दलीलों पर कहीं ज्ञान खड़ा हुआ है? किताब देखी थी, तब भी मुझे लगा था कि ध्यान का तुम्हें कुछ पता | ज्ञान अनुभव है। नहीं होना चाहिए। क्योंकि जो-जो गहरी बात थी, उसमें झिझक थी। जब कृष्ण कहते हैं, बिना दलील; कृष्ण आर्युमेंट नहीं दे रहे हैं।
और जो-जो बेकार बात थी, बहुत बोल्ड, बहुत साहस से कही गई कोई आर्युमेंट ही नहीं देते। वे कहते हैं, अर्जुन तुझे पता नहीं और थी! उसने कहा, मुझे तो कुछ भी पता नहीं। फिर, मैंने कहा, वह | | मुझे पता है, इसलिए मैं कहता हूं। वे दलील नहीं जुटाते। किताब क्यों लिखी? उसने कहा, वह तो मैंने दस-पचास किताबें यह वक्तव्य सीधा और साफ है। और सीधा और साफ जब भी पढ़कर लिखी—लोगों के लाभ के लिए। मैंने कहा, जिस किताब वक्तव्य होता है, तो वह प्राणों के अंतस्तल को छेद पाता है। दलीलें को लिखने से भी तुम्हें लाभ नहीं हुआ, उस किताब को पढ़ने से | जहां नहीं पहुंचती हैं, वहां सीधे वक्तव्य पहुंच जाते हैं। प्रमाण जहां लोगों को लाभ होगा? तुम लिखने के चार साल बाद भी अभी | नहीं पहुंचते, वहां आंखों की गवाही पहुंच जाती है। ध्यान कैसे करें, यह पूछती हो; और तुमने उसमें ध्यान के चार अर्जुन दलील मांग रहा है। कृष्ण दलील नहीं दे रहे। अर्जुन प्रकार होते हैं और क्या-क्या होता है, सब गिनाया हुआ है! उसने | दलील ही मांग रहा है, कि कोई सर्टिफिकेट दिखाओ कि तुम थे। कहा, वह सब शास्त्रों में लिखा है।
तुम सूरज के पहले थे? कहीं किसी कारपोरेशन के दफ्तर में कहीं पर ध्यान को शास्त्रों से जो जानेगा, उसने सूरज नहीं देखा, सूरज | | कोई जन्म-तारीख? कहीं कुछ लिखा-पढ़ी है? नहीं; वे इतना ही की तस्वीर देखी। तस्वीर को हाथ में रखा जा सकता है, सूरज को | | कहते हैं कि अर्जुन, तू जानता नहीं और मैं जानता हूं। हाथ में नहीं रखा सकता। तस्वीर जला नहीं सकती, सूरज के पास | इतना साहस था जब सत्य में, तब अगर सत्य परिणाम लाता
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