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9 भागवत चेतना का करुणावश अवतरण
करूंगा। लेकिन कुछ जल्दी न हो सकेगा? गुरु ने कहा, बहुत निकट लाने के लिए है, उसे आश्वस्त करने के लिए है। वह भूल मुश्किल है। तीस वर्ष से कम में होना मुश्किल है।
जाए, युद्ध है चारों तरफ; वह भूल जाए, जल्दी है; वह भूल जाए, उस युवक ने कहा, आप क्या कह रहे हैं! मेरे पिता वृद्ध हैं और संकट है; और वह सत्य के इस संवाद को सुनने को अंतस से तैयार मैं जल्दी में हूं। इसके पहले कि वे जगत से विदा हों, मुझे घर लौट हो जाए। इस आंतरिक तैयारी के लिए वे बहुत-सी बातें कहेंगे। जाना है। उस गुरु ने कहा, फिर तू लौट ही जा अभी। क्योंकि पिता | और जब अर्जुन तैयार होता है, तब वे एक महावाक्य कहते हैं। वृद्ध हैं, उनके लिए तो मैं कुछ नहीं कह सकता। लेकिन तू जब तक | थोड़े-से महावाक्य गीता में हैं, जिनका सारा फैलाव है। वृद्ध न हो जाए, तब तक यह सत्य नहीं मिलेगा। इसमें साठ-सत्तर वर्ष लग जाएंगे। उस युवक ने कहा, पुरानी बात पर वापस लौट आएं। वह तीन वर्ष वाली योजना ठीक है। गुरु ने कहा, अब
अर्जुन उवाच लौटना बहुत मुश्किल है, क्योंकि जो इतनी जल्दी में है, उसे बहुत
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः । देर लग जाएगी।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ।। ४ ।। वह शिष्य पूछने लगा, इतनी देर क्यों लग जाएगी जो जल्दी में अर्जुन ने पूछा, हे भगवान! आपका जन्म तो आधुनिक है? तो गुरु ने कहा, जो जल्दी में है, उसके साथ ट्यूनिंग बिठानी अर्थात अब हुआ है और सूर्य का जन्म बहुत पुराना है। बहुत मुश्किल है; उसके साथ तालमेल, उसके साथ एक आंतरिक | इसलिए इस योग को कल्प के आदि में आपने कहा था, संबंध बिठाना बहुत मुश्किल है। और संबंध न बैठे, तो मैं कह ही
यह मैं कैसे जानूं? न सकूँगा। क्योंकि जो मुझे कहना है, वह तो एक क्षण में भी हो सकता है। लेकिन वह क्षण कब आएगा, सवाल यह है। वह क्षण-तीन वर्ष भी लग सकते हैं, तीस वर्ष भी लग सकते हैं। और कष्ण ने कहा है कि मैंने ही समय के पहले, सृष्टि के अगर तू विश्राम चित्त से, सहजता से, चुपचाप प्रतीक्षा से मेरे पास पृ पूर्व में, आदि में सूर्य को कही थी यही बात। फिर सूर्य है, तो शायद वह क्षण जल्दी आ जाए। और तू जल्दी में है, तो तू ८ ने मनु को कही, मनु ने इक्ष्वाकु को कही और ऐसे इतने तनाव और इतनी बेचैनी में है कि वह क्षण कभी भी न आए। अनंत-अनंत लोगों ने अनंत-अनंत लोगों से कही। स्वभावतः, क्योंकि बेचैन चित्त के साथ संबंध जोड़ना बहुत कठिन है। | अर्जुन के मन में सवाल उठे, आश्चर्य नहीं है। वह पूछता है,
निश्चित ही, कृष्ण को तो अर्जुन के साथ संबंध जोड़ना जितना | | आपका जन्म तो अभी हुआ; सूर्य का जन्म तो बहुत पहले हुआ। कठिन हुआ होगा, इतना कठिन बुद्ध को अपने किसी शिष्य के | आपने कैसे कही होगी सूर्य से यह बात? । साथ कभी नहीं हआ: महावीर को अपने किसी शिष्य के साथ कभी कष्ण खींचने की कोशिश करते हैं अर्जन को, कि छलांग ले। नहीं हुआ; जीसस को, मोहम्मद को, कंफ्यूशियस को, लाओत्से | अर्जुन सिकुड़कर अपनी खाई में समा जाता है। वह जो सवाल उठाता को-किसी को अपने शिष्य के साथ इतना कठिन कभी न हुआ | है, वे सब सिकुड़ने वाले हैं। वह कहता है, मैं कैसे भरोसा करूं? होगा। क्योंकि युद्ध के मैदान पर सत्य को सिखाने का मौका कृष्ण ___ अब यह बड़े मजे की बात है। यह ध्यान रहे कि जो आदमी के अलावा और किसी को आया नहीं।
पूछता है, मैं कैसे भरोसा करूं, उसे भरोसा करना बहुत मुश्किल कितनी जल्दी न रही होगी! भेरियां बज गईं युद्ध की, | है। या तो भरोसा होता है या नहीं होता है। कैसे भरोसा बहुत शंख-ध्वनियां हो गई हैं. घोडे बेताब हैं दौड पडने को अस्त्र-शस्त्र
मुश्किल है। सम्हल गए हैं; योद्धा तैयार हैं जीवनभर की उनकी साधना आज | जो आदमी कहता है, कैसे भरोसा करूं? दूसरी बात के उत्तर में कसौटी पर कसने को; दुश्मन आमने-सामने खड़े हैं। और अर्जुन | भी वह कहेगा, कैसे भरोसा करूं? यह कैसे भरोसे का सवाल, ने सवाल उठाए। ऐसी क्राइसिस, ऐसे संकट के क्षण में सत्य की | | इनफिनिट रिग्रेस है। इसका कोई अंत नहीं है। शिक्षा बड़ी ही कठिन पड़ी होगी, बड़ी मुश्किल गई होगी। भरोसा किया जा सकता, नहीं किया जा सकता। लेकिन अगर
इसलिए कृष्ण बहुत बार जो बातें कह रहे हैं अर्जुन से, वह सिर्फ | | किसी ने पूछा, कैसे भरोसा करूं, हाउ टु बिलीव, कैसे करूं