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गीता दर्शन भाग-26
देने वाला, एक गाली सुनने वाला, और एक मैं—दोनों से भिन्न, के लिए वासना पकड़ती है, बाकी चौबीस घंटे तो हम वासना के दोनों के पार-तब तटस्थता निर्मित हो पाएगी।
बाहर हैं। क्षण दो क्षण को क्रोध पकड़ता है, वैसे तो हम अक्रोधी हैं। तटस्थ केवल वे ही हो सकते हैं, जो द्वंद्व के बाहर तीसरे बिंदु | लेकिन इस भ्रांति को समझ लेना। यह बहुत खतरनाक भ्रांति है। पर खड़े हो जाते हैं; जो द्वंद्वातीत हैं।
जो आदमी चौबीस घंटे क्रोध की अंडर करेंट, अंतर्धारा में नहीं ध्यान रहे, द्वंद्व के जो बाहर है, वह शांत है। द्वंद्व के भीतर जो | | है, वह क्षणभर को भी क्रोध नहीं कर सकता है। और जो आदमी है, वह अशांत है। दो के बीच जो चुनाव कर रहा है, वह अशांत | | चौबीस घंटे काम से भीतर घिरा हुआ नहीं है, वह क्षणभर को भी है। दो के बीच जो च्वाइसलेस अवेयरनेस को–कृष्णमूर्ति कहते कामवासना में ग्रसित नहीं हो सकता है। हैं जिस शब्द को बार-बार–कि जो चुनावरहित, विकल्परहित __ हमारी स्थिति ऐसी है, जैसे एक कुआं है। जब हम बाल्टी डालते चैतन्य को उपलब्ध हो गया है, वैसा व्यक्ति शांत हो जाता है। | हैं, पानी बाहर निकल आता है। कुआं सोच सकता है कि पानी मुझ
ऐसे शांत व्यक्ति का शांत ब्रह्म से संबंध निर्मित होता है। ऐसी | में नहीं है। कभी-कभी चौबीस घंटे में जब कोई बाल्टी डालता है, शांति ही मंदिर है, तीर्थ है। जो ऐसी शांति में प्रवेश करता है, उसके तो क्षणभर को निकल आता है। लेकिन अगर कुएं में पानी न हो, लिए प्रभु के द्वार खुल जाते हैं।
तो क्षणभर को बाल्टी डालने से निकलेगा नहीं। सूखे कुएं में बाल्टी | डालें और प्रयोग करें, तो पता चलेगा। बाल्टी खाली लौट आती
है। चौबीस घंटे कएं से कोई पानी नहीं भरता। जितनी देर भरता है. कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।। | कुएं को लगता होगा कि पानी है। और जब कोई नहीं भरता, तब अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ।। २६।। । कुएं को लगता होगा कि पानी नहीं है।
और काम-क्रोध से रहित, जीते हुए चित्त वाले परब्रह्म ___ जब कोई आपको गाली देता है, तो क्रोध निकल आता। जब परमात्मा का साक्षात्कार किए हुए ज्ञानी पुरुषों के लिए, सब कोई गाली नहीं देता, तो क्रोध नहीं निकलता। गाली सिर्फ बाल्टी ओर से शांत परब्रह्म परमात्मा ही प्राप्त है। का काम करती है। क्रोध आप में चौबीस घंटे भरा हुआ है।
जब कोई विषय, वासना का कोई आकर्षक बिंदु आपके.
आस-पास घूम आता है, तब आप एकदम आकर्षित हो जाते हैं। काम और क्रोध के बाहर हुए पुरुष को सब ओर से | बाल्टी पड़ गई; वासना बाहर आ गई! पा परमात्मा ही प्राप्त है। काम और क्रोध से मुक्त हुई सुंदर स्त्री पास से निकली, सुंदर पुरुष पास से निकला, कि चेतना को!
सुंदर कार गुजरी, कुछ भी हुआ, जिसने मन को खींचा। वासना काम के संबंध में सदा ऐसे लगता है कि मैं कभी-कभी कामी | बाहर निकल आई। आप सोचते हैं, कभी-कभी आ जाती है। यह होता हूं, सदा नहीं। क्रोध के संबंध में भी ऐसा लगता है कि मैं | कोई बीमारी नहीं है। एक्सिडेंट है। कभी-कभी हो जाती है। घटना कभी-कभी क्रोधी होता हूं, सदा नहीं। इससे बहुत ही भ्रांत निर्णय | है, कोई स्वभाव नहीं है। हम अपने बाबत लेते हैं। स्वभावतः, यह निर्णय बहुत स्टेटिस्टिकल | लेकिन सूखे कुएं में जैसे बाल्टी डालने से कुछ भी नहीं है। अंकगणित इसका समर्थन करता है।
निकलता, ऐसे ही जिनके भीतर वासना से मुक्ति हो गई है, कुछ चौबीस घंटे में आप चौबीस घंटे क्रोध में नहीं होते। चौबीस घंटे | | भी डालने से वासना नहीं निकलती है। में कभी किसी क्षण क्रोध आता है, फिर क्रोध चला जाता है। तो पहली तो यह भ्रांति छोड़ देना जरूरी है, तो ही इस सूत्र को स्वभावतः, हम सोचते हैं कि जब क्रोध नहीं रहता, तब तो हम | | समझ पाएंगे, काम-क्रोध से मुक्त! नहीं तो सभी लोग समझते हैं अक्रोधी हो जाते हैं। ऐसा ही काम भी कभी आता है चौबीस घंटे | | कि हम तो मुक्त हैं ही। कभी-कभी स्थितियां मजबूर कर देती हैं, में; वासना कभी पकड़ती है। फिर हम दूसरे काम में लीन हो जाते इसलिए क्रोध से भर जाते हैं। जो जानते हैं, वे कहेंगे, एक क्षण को हैं, और खो जाती है। तो मन को ऐसा लगता है कि कभी-कभी भी क्रोध से भर जाते हों, तो जानना कि सदा क्रोध से भरे हुए हैं। वासना होती है, बाकी तो हम निर्वासना में ही होते हैं। दो-चार क्षणों | एक क्षण को भी वासना पकड़ती हो, तो जानना कि सदा वासना से
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