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काम-क्रोध से मुक्ति
सकता है, कितनी ही देर हो गई हो किसान को अनाज डाले, छः | सदा की आदत है, मैं कोई समता का मार्ग निकाल लेता हूं। वह महीने बाद आया हो अंकुर, सालभर बाद आया हो अंकुर, लेकिन | मैंने निकाल लिया है। जिसने पांच हजार भेजे हैं, वह हजार रुपए अंकुर बिना बीज के नहीं आता है।
वापस ले जाए। चार-चार हजार दोनों के बराबर रह गए। अब हम अशांति को उपलब्ध होते चले जाते हैं। जितनी अशांति बढ़ती समता से अदालत का काम आगे चल सकता है! जाती है, उतना ही ब्रह्म से संबंध क्षीण मालूम पड़ता है; क्योंकि ब्रह्म हमारी समताएं ऐसी ही हैं। अगर हम दूसरे दो व्यक्तियों के प्रति से केवल वे ही संबंधित हो सकते हैं, जो परम शांत हैं। शांति ब्रह्म | समता भी रख लें, तो भी अपने प्रति और दसरों के बीच समता नहीं
और स्वयं के बीच सेतु है। जैसे ही कोई शांत हुआ, वैसे ही ब्रह्म के | रख पाते। असली समता दूसरे दो व्यक्तियों के बीच निर्मित नहीं साथ एक हुआ। जैसे ही अशांत हुआ कि मुंह मुड़ गया। होती, अपने और दूसरे के बीच निर्मित होती है!
अशांत चित्त संसार से संबंधित हो सकता है। शांत चित्त संसार __ उस मजिस्ट्रेट ने ठीक कहा। जहां तक दोनों पक्षों का सवाल है, से संबंधित नहीं हो पाता। अशांत चित्त परमात्मा से संबंधित नहीं बात समान हो गई। दोनों के चार-चार हजार रिश्वत में मिल गए। हो पाता। शांत चित्त परमात्मा में विराजमान हो जाता है। अब बात शुरू हो सकती है, जैसे कि न मिले हों। चार हजार ने इसलिए कृष्ण कहते हैं, पाप जिनके क्षीण हुए!
चार हजार काट दिए। लेकिन जहां तक मजिस्ट्रेट का संबंध है, क्या है पाप? जब भी हम किसी दूसरे को दुख पहुंचाना चाहते उसके पास आठ हजार रुपए हो गए। समता उसने दो अन्यों के हैं, विचार में या कृत्य में, तभी पाप घटित हो जाता है। जो व्यक्ति बीच में खोज ली, अपने और अन्य के बीच में नहीं। दूसरे को दुख पहुंचाना चाहता है, कृत्य में या भाव में, वह पाप __गहरी समता दो के बीच नहीं होती। गहरी समता सदा अपने और में ग्रसित हो जाता है। जो व्यक्ति इस पृथ्वी पर किसी को भी दुख | दूसरे के बीच होती है। दूसरे के बीच तटस्थ हो जाना बहुत आसान नहीं पहुंचाना चाहता, कृत्य में या विचार में, वह पाप के बाहर हो | है। बहुत आसान है। सवाल तो तब उठते हैं, जब अपने और दूसरे जाता है।
| के बीच तटस्थ होने की बात उठती है। बुद्धि हुई जिनकी निःसंशय!
बढ़ेंड रसेल ने पंडित नेहरू की बहुत गहरी आलोचना की है, जिनकी बुद्धि निःसंशय हो गई, सम हो गई, समान हो गई; | | कीमती आलोचना की है। कहा है कि जब तक दूसरे दो मुल्कों के ठहर गए ज़ो; जिनके भीतर कोई संशय की हवाएं अब नहीं बहतीं; बीच झगड़े थे, पंडित नेहरू सदा तटस्थता की बात करते रहे। कोई तूफान, आंधियां नहीं उठतीं संशय की; निःसंशय होकर सम | लेकिन जब वे खुद, उनका राष्ट्र किसी मुल्क के साथ झगड़े में हो गए हैं।
पड़ा, तब सारी तटस्थता खो गई। तब उन्होंने वही काम किया, जो हममें से बहुत-से लोग समझते हैं कि समता में रहते हैं। जब | उस मजिस्ट्रेट ने किया। आसान है सदा। हमें लगता है कि हम समता में भी हैं—तब भी—तब भी हम ___ दो लोग लड़ रहे हों रास्ते पर, आप किनारे खड़े होकर कह समता में होते नहीं। हमारी समता करीब-करीब वैसी होती है, जैसा सकते हैं कि हम तटस्थ हैं, न्यूट्रल हैं, हम किसी के पक्ष में नहीं एक दिन एक अदालत में लोगों को पता चला।
हैं। असली सवाल तो यह है कि जब कोई आपकी छाती पर छुरा मजिस्ट्रेट सुबह-सुबह आया और उसने अदालत में खड़े होकर | | लेकर खड़ा हो जाए, तब आप तटस्थ रह पाएं। कहा कि जैसा कि आप सब जानते हैं जरी. वकील, और | समता दो के बीच नहीं, अपने और अन्य के बीच समता है। अदालत के सारे लोग–कि मैं सदा ही न्याय और समता में और निःसंशय, शांत, सम वही होता है, जो अपने प्रति भी तटस्थ प्रतिष्ठित रहता हूं। आज तक मैंने कभी किसी का पक्ष नहीं लिया। हो जाता है; जो अपने प्रति भी साक्षी हो जाता है; जो अपने को भी कानून एकमात्र मेरी दृष्टि है। लेकिन आज जिस मुकदमे का मुझे अन्य की भांति देखने लगता है। फैसला करना है, उस मुकदमे के एक पक्ष ने कल रात मेरे घर एक ___ अगर आपने मुझे गाली दी और मैंने गाली सुनी, और इस गाली लिफाफा भेजा, उसमें चार हजार रुपए भेजे। उसके आधी घड़ी बाद | की घटना में दो ही व्यक्ति रहे, आप देने वाले और मैं सुनने वाला, दूसरे पक्ष ने भी एक लिफाफा भेजा और उसमें पांच हजार रुपए | तो तटस्थता निर्मित न हो पाएगी। तटस्थता तब निर्मित होगी, जब भेजे। अब मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। लेकिन जैसा कि मेरी | | मैं जानूं कि आपने मुझे गाली दी, तीन व्यक्ति हैं यहां, एक गाली
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