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गीता दर्शन भाग-2
लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः । | है अंगूरों का। अब तो वहीं जाकर अंगूरों के उस बगीचे में ही मेहनत छिन्नद्वधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः । । २५ ।। करनी है, विश्राम करना है। और नाश हो गए हैं सब पाप जिनके, तथा ज्ञान करके निवृत्त साधु बहुत प्रसन्न हुआ, खुशी से नाचने लगा। उसने कहा कि हो गया है संशय जिनका और संपूर्ण भूत प्राणियों के हित में | मुझे कुछ दिन से लग रहा था, यू आर रिफार्मिंग; कुछ तुम्हारे भीतर
है रति जिनकी, एकाग्र हुआ है भगवान के ध्यान में चित्त | बदल रहा है। उस कैदी ने चौंककर रहा, हू सेज एनीथिंग अबाउट जिनका, ऐसे ब्रह्मवेत्ता पुरुष शांत परब्रह्म को प्राप्त होते हैं। | रिफार्मिंग? आई एम जस्ट रिटायरिंग! किसने तुमसे कहा कि मैं
बदल रहा हूं? मैं सिर्फ रिटायर हो रहा हूं। किसने कहा कि मैं बदल
रहा हूं, मैं सिर्फ थक गया हूं और अब विश्राम को जा रहा हूँ! 11 प से हो गए हैं जो मुक्त, चित्त की वासनाएं जिनकी __ अर्जुन रिटायर होना चाहता था; कृष्ण रिफार्म करना चाहते हैं। पा शांत हुईं, जो स्वयं में एक शांत झील बन गए हैं, वे | अर्जुन चाहता था, सिर्फ बच निकले! कृष्ण उसकी पूरी जीवन ऊर्जा ____ शांत ब्रह्म को उपलब्ध होते हैं।
को नई दिशा दे देना चाहते हैं। अर्जुन तो चाहता था केवल पलायन। नहीं सोचा था उसने कि | | और दो ही प्रकार के मार्ग हैं जीवन ऊर्जा के लिए। एक तो मार्ग कृष्ण उसे एक अंतर-क्रांति में ले जाने के लिए उत्सुक हो जाएंगे। । है कि हम अशांति के जालों को निर्मित करते चले जाएं, जैसा कि उलझ गया बेचारा। सोचा था, सहारा मिलेगा भागने में। नहीं सोचा हम सब करते हैं। अशांति की भी अपनी विधि है। पागलपन की था कि किसी आत्मक्रांति से गुजरना पड़ेगा। उसकी मर्जी जिज्ञासा | भी अपनी विधि होती है। बीमार होने के भी अपने उपाय होते हैं। शुरू करने की इतनी ही थी, इस युद्ध से कैसे बच जाऊं। कोई नए | | चित्त को रुग्ण करना और विक्षिप्त करना भी बड़ा सुनियोजित काम जीवन को उपलब्ध करने की आकांक्षा नहीं है। लेकिन कृष्ण जैसे | | है! पता नहीं चलता हमें, क्योंकि बचपन से जिस समाज में हम बड़े व्यक्ति के पास कोई पत्थर खोजता हुआ भी जाए, तो भी उनकी | | होते हैं, वहां चारों तरफ हमारे जैसे ही लोग हैं। जो भी हम करते मजबूरी है कि वे पत्थर दे नहीं सकते हैं। वे हीरे ही दे सकते हैं। | हैं, बिना इस बात को सोचे-समझे कि जो भी हम कर रहे हैं, वह कोई पत्थर खोजता हुआ जाए, तो भी कृष्ण को कोई उपाय नहीं कि | हमें भी बदल जाएगा। पत्थर दें, हीरे ही दे सकते हैं।
कोई भी कृत्य करने वाले को अछूता नहीं छोड़ता है। विचार भी जो अर्जुन को कृष्ण ने दिया है, वह अर्जुन ने पूछा नहीं, चाहा करने वाले को अछूता नहीं छोड़ता है। अगर आप घंटेभर बैठकर नहीं। कठिनाई में पड़ता होगा सुनकर उनकी बातें। ब्रह्म और शांत | | किसी की हत्या का विचार कर रहे हैं, माना कि अपने कोई हत्या हुए चित्त का ब्रह्म से तादात्म्य-लगता होगा अर्जुन को, सिर पर | नहीं की, घंटेभर बाद विचार के बाहर हो जाएंगे। लेकिन घंटेभर से निकल रही हैं बातें।
तक हत्या के विचार ने आपको पतित किया, आप नीचे गिरे। मुझे एक घटना स्मरण आती है। एक साधु-चित्त व्यक्ति वर्षों से | | आपकी चेतना नीचे उतरी। और आपके लिए हत्या करना अब एक कारागृह के कैदियों को परिवर्तित करने के लिए श्रम में रत था। ज्यादा आसान होगा, जितना घंटेभर के पहले था। आपकी हत्या वर्षों से लगा था कि कारागृह के कैदी रूपांतरित हो जाएं, ट्रांसफार्म | करने की संभावना विकसित हो गई। अगर आप मन में किसी पर हो जाएं। कोई सफलता मिलती हुई दिखाई नहीं पड़ती थी। पर साधु | क्रोध कर रहे हैं, नहीं किया क्रोध तो भी, तो भी आपके अशांत होने वही है कि जहां असफलता भी हो, तो भी शुभ के लिए प्रयत्न के बीज आपने बो दिए, जो कभी भी अंकुरित हो सकते हैं। करता रहे। उसने प्रयत्न जारी रखा था।
हमारी कठिनाई यही है कि मनुष्य की चेतना में जो बीज हम आज ___ एक दिन चार बार सजा पाया हुआ व्यक्ति, चौथी बार सजा पूरी बोते हैं, कभी-कभी हम भूल ही जाते हैं कि हमने ये बीज बोए थे। करके घर वापस लौट रहा है। साठ वर्ष उस अपराधी की उम्र हो| जब उनके फल आते हैं, तो इतना फासला मालूम पड़ता है दोनों गई। उस साधु ने उसे द्वार पर जेलखाने के विदा देते समय पूछा कि | स्थितियों में कि हम कभी जोड़ नहीं पाते कि फल और बीज का कोई अब तुम्हारे क्या इरादे हैं? आगे की क्या योजना है? उस बूढ़े | | जोड़ है। अपराधी ने कहा, अब दूर गांव में मेरी लड़की का एक बड़ा बगीचा | जो भी हमारे जीवन में घटित होता है, उसे हमने बोया है। हो
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