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0 गीता दर्शन भाग-28
लेकिन जब भी आप शांत होंगे—कभी हुए ही न हों, तो बात डूबी, मिटी। उसके मिटने के खयाल से ही ऊर्जा उठती है और अलग—जब भी आप शांत होंगे, तब आप नहीं बता सकते कि व्यवस्थित होती है। शांति कहां से आती है। इट कम्स फ्राम नो व्हेयर। कहीं से नहीं | तो आप अगर कहते हों कि पहले थोड़ा आनंद मिलने लगे, तो आती। जब भी आप दुख में होते हैं, तो दुख कहीं से आता है, फ्राम हम भीतर जाएंगे, तो यह कभी नहीं होगा। आप भीतर जाएं, तो समव्हेअर। और जब आप आनंदमग्न होते हैं, इट कम्स फ्राम नो आनंद मिलेगा। आप कहेंगे, अभी हम कैसे जाएं? व्हेयर; वह कहीं से नहीं आता। जब आप आनंद में होते हैं, तब | कभी भी क्षणभर को, जब भी मौका मिले, आंख बंद कर लें। वह कहीं से नहीं आता; आपके भीतर से उठता है और फैलता है।। | क्षणभर को भीतर होने की बात को खयाल में लें। जब भी मौका और जब आप दुख में होते हैं, तब वह बाहर से आता है और मिले, आंख बंद कर लें; थोड़ी देर को भीतर हो जाएं। भूल जाएं बादलों की तरह आपको घेरता है।
बाहर को। भूलते-भूलते भूल जाएंगे। रोज-रोज अगर एक क्षण को इस भेद को थोड़ा देखने की कोशिश करेंगे। जैसे-जैसे यह | भी दस-बीस दफा आंख बंद कर लें कार में चलते, बस में बैठे, दिखाई पड़ने लगेगा, वैसे-वैसे लगेगा कि अगर आनंद को खोजना ट्रेन में सफर करते, कुसी पर दफ्तर में बैठे-एक क्षण को आंख है, तो चलो भीतर, गहरे, वहां पहुंच जाओ, जहां कोई दिशा नहीं है। | बंद कर लें। भल जाएं बाहर को कि नहीं है। मैं ही हं अकेला। उत्तर-पश्चिम कोई नहीं है जहां। जहां कोई दूसरा नहीं है। जहां | देखने लगें अपनी श्वास को, अपने हृदय की धड़कन को। भीतर बिलकुल अकेले हैं। जहां स्वयं ही बचे। और आखिर में ऐसी घड़ी उतर जाएं।
आ जाती है कि स्वयं भी नहीं बचते, सिर्फ बचना ही बच रह जाता धीरे-धीरे-धीरे आपको पता लगेगा, भीतर परम विश्राम है। है। सिर्फ अस्तित्व। सिर्फ धड़कती छाती, चलती श्वास। सिर्फ | महीनों की थकान क्षणभर में मिट सकती है भीतर। पहाड़ जैसे दुख, होना, बीइंग रह जाता है। चलो वहां। और जो भी उसकी एक झलक भीतर के जरा सी सुख की किरण के सामने विसर्जित हो जाते हैं। पा ले, वह कहेगा, सब कुछ भीतर है, बाहर कुछ भी नहीं है। अज्ञान कितना ही जीवन का हो, भीतर प्रकाश की एक जरा सी
लेकिन जब तक झलक न मिले, भरोसा नहीं आता। मैं कितना ज्योति जलती है और अज्ञान एकदम अंधेरे की तरह खो जाता है। ही कहूं कि तैरने का बड़ा आनंद है, उतरो पानी में। लेकिन जो कभी | | लेकिन कोई उपाय नहीं; जाने बिना कोई उपाय नहीं है, गए बिना. पानी में उतरा नहीं और जिसने कभी तैरना जाना नहीं, वह सुनेगा। | कोई उपाय नहीं है, उतरे बिना कोई उपाय नहीं है। उतरें। जब मैं उससे कहूंगा, उतरो पानी में, अगर मैं कूदू भी उसके सामने, वही कृष्ण अर्जुन को कह रहे हैं कि इस जगत में तेरे लिए सुख पानी में तैरूं भी, तो उसे तैरने के आनंद का कुछ पता न चलेगा। | की राह बन जाएगी। योगी हो जाएगा तू। योग का अर्थ होता है, उसे इतना ही पता चलेगा कि अगर मैं कूदा, तो डूबा और मरा! उसे अपने से जुड़ जाएगा तू। योग का अर्थ है, कम्यूनियन। योग का सिर्फ भय का ही पता चलेगा, मेरे आनंद का नहीं, अपने भय का। अर्थ है, एक हो जाना अपने से। और परलोक में मुक्ति तेरी है।
और वह आदमी मझसे कह सकता है कि मानते हैं आपकी और इसे वे कहते हैं. यह सांख्ययोग है। इसे वे कहते हैं. यही बात। राजी हैं बिलकुल। उतरेंगे पानी में। लेकिन उतरने के पहले | सांख्ययोगी का लक्षण है। तैरना सिखा दें!
सांख्य के संबंध में एक बात खयाल में ले लें। फिर हम कीर्तन स्वभावतः, उसका तर्क दुरुस्त है। कहता है, पहले तैरना सिखा | | में उतरेंगे। कृष्ण कहते हैं, यही सांख्ययोग है। सांख्य इस पृथ्वी पर दें, फिर हम उतरने को राजी हैं। मेरी भी अपनी मजबूरी होगी। मैं ज्ञान की परम कुंजी है, दि मोस्ट सीक्रेट की। सांख्य का आग्रह क्या कहूंगा, पहले तुम उतरो, तो तैरना सिखाया जा सकता है। नहीं तो है? सांख्य की व्यवस्था क्या है? सांख्य क्या कहता है? तैरना कैसे मैं सिखाऊंगा? गद्दे-तकियों पर तैरना अभी तक भी नहीं | सांख्य शब्द का अर्थ होता है, ज्ञान! सांख्य का कहना है, करना सिखाया जा सका है। कुछ लोग कोशिश करते हैं गद्दे-तकियों पर कुछ भी नहीं है। करने योग्य कुछ भी नहीं है। करना नहीं है, होना तैरना सीखने की। हाथ-पैर में चोट लग जाएगी, लले-लंगड़े हो | है। करने से जो भी मिलेगा, वह बाहर मिलेगा। न करने से जो भी जाएंगे। गद्दे-तकियों पर तैरना नहीं सीखा जाता! असल में तैरना | | मिलेगा, वह भीतर मिलेगा! यह तो हमें समझ में आ सकता है। उस खतरे में ही पैदा होता है, जहां जिंदगी को लगता है कि गई, | अगर बाहर की दुनिया में कुछ भी पाना है, तो कुछ करना पड़ेगा;
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