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________________ काम से राम तक ही होता है; बिलकुल ऐसा ही होता है। क्यों ऐसा होता है? मैंने सुना है कि जर्मनी में एक बहुत बड़ा पंडित था। उसने जिंदगी ऐसा होता इसलिए है कि जिसे हम खोजने निकले, वह मार्ग, | में सारी दुनिया के शास्त्र इकट्ठे किए। बहुत शास्त्र हैं दुनिया में, वह दिशा, वह आयाम गलत था। जिसे हमने खोजा, गलत माध्यम | उसने सारे धर्मों के शास्त्र इकट्ठे किए। उसके मित्रों ने कहा भी कि और गलत साधन से खोजा। कोई आदमी तनाव का अभ्यास करके | तुम पढ़ोगे कब? उसने कहा कि पहले मैं सब इकट्ठा कर लूं। विश्राम को नहीं पा सकता। यह बिलकुल बेहूदी बात है, एब्सर्ड है, | क्योंकि मैं पढ़ने में लग जाऊंगा, फिर इकट्ठा कौन करेगा? पहले इल्लाजिकल है, तर्कसंगत भी नहीं है। आपका अभ्यास इतना | मैं सब इकट्ठा कर लं, निश्चित होकर ताला बंद करके फिर पढ़ने ज्यादा हो जाएगा कि फिर रुकिएगा कैसे? में लग जाऊंगा। एक आदमी कहता है कि हमें विश्राम करना है, तो हम पहले सौ वह इकट्ठा करता रहा। उसकी लाइब्रेरी बड़ी होती चली गई, बड़ी मील की दौड़ दौड़ेंगे। फिर तभी तो विश्राम करेंगे, सौ मील के बाद | | होती चली गई। कहते हैं, उसके पास इतनी किताबें इकट्ठी हो गईं जो वृक्ष है, उसके नीचे विश्राम करेंगे। लेकिन सौ मील तक दौड़ने | | कि अगर जमीन पर एक के बाद एक किताब रखी जाए, तो एक वाला आदमी अक्सर तो सौ मील के वृक्ष तक पहुंच नहीं पाता, | चक्कर पूरा का पूरा लग जाए पूरी जमीन का। लेकिन यह जब तक बीच में ही टूटकर मर जाता है। और अगर कभी पहुंच भी जाए, घटना घटी, तब तक वह नब्बे साल का हो चुका था। तो दौड़ने की ऐसी आदत मजबूत हो जाती है कि फिर वह वृक्ष के सब धर्मग्रंथ, सब तरह की साधना पद्धतियों के ग्रंथ उसने इकट्ठे चक्कर लगाता है। वह कहता है, अब बैठे कैसे? पैरों का अभ्यास | | कर लिए। जिस दिन उसके संग्राहकों ने कहा कि अब और कोई भारी हो गया, अब बैठते बनता नहीं! अब वह दौड़ता है। जिस वृक्ष किताब बची नहीं धर्म की, तब वह आखिरी सांसें गिन रहा था। की छाया में सोचा था कि पहुंचकर विश्राम करेंगे। अनेक तो पहुंच | उसने आंख खोली और उसने कहा कि अब तो बहुत देर हो गई। नहीं पाते, पहले ही टूट जाते हैं। इतना तनाव झेल नहीं पाते। जो | | मैं पढूंगा कब? इतना करो कि मुझे स्ट्रेचर पर उठाकर मेरी लाइब्रेरी पहुंच जाते हैं, वे भी अभागे सिद्ध होते हैं। पहुंचकर वृक्ष का चक्कर | में एक चक्कर लगवा दो। देख तो लूं कम से कम! लगाते हैं! अभ्यास मजबूत हो गया। अभ्यास को छोड़ना बड़ा __ वह आदमी जिंदगीभर हिंदुस्तान, तिब्बत और चीन की यात्राएं कठिन है। अब अभ्यास को हटाओ; अब इस अभ्यास के विपरीत करता रहा। कहीं भी कोई धर्मग्रंथ हो, सब इकट्ठा कर लो! शिंटो अभ्यास करो। का हो, तिब्बतन हो, चीनी हो—जहां मिले। कहीं दूर खबर मिलती जिस व्यक्ति ने भी, जिस तरह का संस्कार अर्जित कर लिया, | कि अफ्रीका के फलां जंगल की जाति के पास एक किताब है, जो उसे छोड़ना रोज कठिन होता चला जाता है। रोज-रोज कठिन होता छपी नहीं; तो वहां जाकर अनुलिपि तैयार करवाकर, उतरवाकर, चला जाता है। हम सब अपने-अपने अर्जित संस्कारों में ग्रस्त हो किसी भी तरह वह लाएगा। नब्बे साल बीत गए। मरा, तब उसके जाते हैं। पहले सोचा कि धन मिलेगा, फिर आनंद से मौज करेंगे। पास सिर्फ किताबें थीं। जिनको उसने देखा था, जिनको उसने पढ़ा लेकिन धन कमाते वक्त मौज पर रोक लगानी पड़ती है, नहीं तो नहीं था। अक्सर ऐसा होता है। अक्सर ऐसा ही होता है। धन इकट्ठा नहीं हो पाएगा। धन कमाना है अगर और बचाना है मौज कृष्ण कहते हैं, भीतर तू खोज। अभी मिल जाएगा। कल की के लिए, तो कंजूस होना पड़ेगा, कृपण होना पड़ेगा। एक-एक | जरूरत नहीं है। तीन चीजों को तू भीतर खोज ले, आनंद को...। दमड़ी पकड़नी पड़ेगी जोर से। कभी आप सोचते हैं कि दुख बाहर से आता है, शांति भीतर से फिर चालीस-पचास साल दमड़ी पकड़ते-पकड़ते करोड़ इकट्ठे | आती है। जब आप शांत होते हैं कभी एक क्षण को, तो आप बता हो जाएंगे। लेकिन तब तक दमड़ी पकड़ने वाला आदमी भी काफी | सकते हैं, यह शांति कहां से आई? आप न बता सकेंगे। लेकिन मजबूत हो जाएगा। और जब करोड़ पास में आएंगे और आपका | जब आप अशांत होते हैं, तब तो आप पक्का बता सकते हैं न कि मन कहेगा कि ठीक, आ गई मंजिल; अब जरा मजा करें। तब वह | अशांति कहां से आई? फलां आदमी ने गाली दी। फलां आदमी ने दमड़ी पकड़ने वाला मन कहेगा, क्या कह रहे हो! प्राण निकल | धक्का मार दिया। दुकान में नुकसान लग गया। लाटरी मिलना जाएंगे मेरे। एक-एक दमड़ी तो बचाई मैंने। | पक्की थी, नहीं मिली। कुछ कारण आप बता सकते हैं। ये जिंदगी के कंट्राडिक्शंस हैं। अनिवार्य हैं। अशांति कहां से आई? आप बता सकते हैं सोर्स, वहां से आई। 1409
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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