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________________ 0 गीता दर्शन भाग-20 के खोजी हैं। बस, ये तीन तरह के खोजी हैं इस जगत में। लेकिन ठीक ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा प्रत्येक व्यक्ति को अंडे इसीलिए कृष्ण ने तीन गिनाए कि इन तीनों की भूल हो जाए, अगर | | की तरह बनाए हुए भीतर बेचैन है। प्रकट होना चाहती है। आनंद ये बाहर खोजें। को पाना चाहती है। ज्ञान को पाना चाहती है। शांति को पाना चाहती भीतर खोज शुरू हो जाए तो कोई सुख को खोजता हुआ | | है। विश्राम को पाना चाहती है। स्वतंत्रता को पाना चाहती है। यह भीतर पहुंच जाए तो भी चलेगा, ज्ञान को खोजता हुआ पहुंच जाए| | भीतर की जो मांग है, यह इस बात की खबर है कि वह जो अंडे में तो भी चलेगा, विश्राम को खोजता हुआ पहुंच जाए तो भी चलेगा। | बंद है चूजा, उसके पास पंख हैं। वह खुले आकाश में उड़ सकता जान लें आपकी खोज क्या है तीन में से। जो भी खोज हो, फिर | है। वह पत्थरों में पड़े रहने को पैदा नहीं हुआ है। अंडा पड़ा है यह देख लें कि उसको बाहर खोज रहे हैं, तो भ्रांत है खोज। | पत्थरों के बगल में। जब बगल में अंडा पड़ा होता है, तो पत्थर और भटकेंगे। कभी पहुंचेंगे नहीं कहीं। यात्रा बहुत होगी, नाव बहुत | अंडे में क्या फर्क मालूम पड़ता है! कुछ फर्क नहीं है। लेकिन बहुत चलेगी, किनारा कभी नहीं आएगा। पैर बहुत दौड़ेंगे, थक जाएंगे, फर्क है। अंडे के भीतर कोई छिपा है, जिसमें पंख निकल आएंगे, मंजिल कभी नहीं आएगी; मुकाम कभी नहीं आएगा। मुकाम तो | जो दूर आकाश की यात्रा पर भी उड़ सकता है। केवल उनको मिलता है, जो स्वयं को एक खाली डब्बे की तरह __ हम सबके भीतर भी कुछ छिपा है, जिसमें पंख लग सकते हैं; नहीं मानते हैं। और स्वयं को खाली डब्बे की तरह, एंप्टी मानने से | जो उड़ सकता है; जिसकी बड़ी संभावनाएं हैं। उन बड़ी बड़ा अपमान और हीनता कुछ भी नहीं है। संभावनाओं में तीन पर कृष्ण ने आग्रह किया। उन तीन में बाकी धर्म मनुष्य की बड़ी गरिमा की घोषणा करता है। धर्म कहता है, | सब संभावनाएं समाविष्ट हो जाती हैं। तम जो भी चाहते हो. वह तम्हारे भीतर है। और इस कारण से भी खोजें सख को. तो ध्यान रखना. अगर बाहर खोजा. तो कभी कहता है कि अगर तुम्हारे भीतर न होता, तो तुम चाह भी न सकते | | मिलेगा नहीं। भीतर छिपा है। खोजा ज्ञान को बाहर, तो इनफर्मेशन थे। इस बात को भी ठीक से समझ लेना चाहिए। | इकट्ठी हो जाएगी, पंडित हो जाएंगे, पांडित्य हो जाएगा। जानेंगे अगर मनुष्य के भीतर विश्राम की क्षमता और संभावना न हो, | | सब, और कुछ भी न जानेंगे। लगेगा सब जानते हैं, और हाथ में तो मनुष्य विश्राम की मांग भी नहीं कर सकता था। हम वही मांगते | सिवाय शब्दों की राख के कुछ भी न होगा। लगेगा कि सब पता हैं, जो हमारे भीतर पोटेंशियल छिपा है और एक्वुअल होना चाहता | चल गया, और सिवाय शास्त्रों के नीचे दबे हुए जानवर की भांति है। जो हमारे भीतर बीज की तरह बंद है और वृक्ष की तरह खुलना | स्थिति होगी। बोझ ढोएंगे, और कुछ भी नहीं होगा। चाहता है। हमारी सब मांगें हमारे बीज की मांगें हैं, जो वृक्ष होना । सोचा कि मिलेगा बाहर विश्राम, बहुत बड़े महल में मिलेगा। चाहती हैं। हमारी सब मांगें हमारी संभावनाओं की मांगें हैं, जो | महल बन जाएगा। विश्राम जितना महल बनने के पहले था, उससे वास्तविक होने के लिए आतुर हैं। | भी कम हो जाएगा। क्योंकि महल बनाने में जितने तनाव अर्जित जैसे एक बीज को गड़ा दिया जमीन में। वह आतुर है। पत्थर को | करने पड़ेंगे, वे कहां जाएंगे! महल में नहीं जाएंगे, आप में चले हटा देगा। जमीन को तोड़ेगा। बाहर फूटकर निकलेगा। अंकुर | जाएंगे। सोचा कि बहुत धन-दौलत होगी, तब विश्राम करेंगे। तो बनेगा। आकाश की तरफ उठेगा। सूरज में खिलेगा फूल की तरह। बहुत धन-दौलत बनाने में जो तनाव लेने पड़ेंगे, वे तनाव कहां वह परेशान है भीतर। और जब तक बीज न टूट जाए और अंकुर | जाएंगे? धन-दौलत बाहर इकट्ठी हो जाएगी; तनाव भीतर इकट्ठे हो न बन जाए, तब तक परेशानी नहीं मिटेगी। | जाएंगे। जब तक धन-दौलत हाथ में आएगी, तब तक तनाव इतने जैसे एक अंडा है और एक मुर्गी का चूजा उसमें बंद है। तो चूजा | | हो जाएंगे कि किसी मतलबे की न रह जाएगी। परेशान है। तोड़ेगा अंडे को आज नहीं कल, बाहर निकलेगा खुले | यह बड़े मजे की बात है। जिनके पास खाने को नहीं है, उनके आकाश में। एक बच्चा एक मां के पेट में बंद है। तैयार हो रहा है। | पास पेट होता है, जो पचा सकता है। और जिनके पास खाने को है, कि कब बाहर निकल पड़े। मां के पेट में गति है, मूवमेंट है। पूरे | | उनके पास पेट नहीं होता, जो पचा सकता है। जिनके पास गहरी नींद वक्त मां को पता है कि कोई जीवन भीतर विकसित हो रहा है। | है, उनके पास सिरहाने तकिया नहीं होता। और जिनके पास सुंदर उसकी बेचैनी है। | तकिए आ जाते हैं, उनकी नींद खो जाती है। चमत्कार है! मगर ऐसा 408
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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