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________________ काम से राम तक कोई विश्वविद्यालय ज्ञान नहीं दे रहा है। सब विश्वविद्यालय | | ढालता गया। मित्रों ने कहा, यह क्या कर रहे हो? उसने कहा, मैं सिर्फ नालेज की जगह इनफर्मेशन, सूचनाएं दे रहे हैं। ज्ञान बड़ी | | फिर भी कहता हूं कि मैंने एक प्याली से ज्यादा नहीं पी। उन्होंने आंतरिक घटना है। सूचना बाहर से मिलती है, ज्ञान भीतर से आता कहा, तुम्हारा मतलब क्या है? तब इसका मतलब है कि हमारी है। आभास बाहर खड़े किए जा सकते हैं, वास्तविक सुख का कोई भाषाएं अलग-अलग हैं! उस आदमी ने कहा, निश्चित। एक अनुभव बाहर नहीं होता है। कभी नहीं हुआ; कभी हो भी नहीं प्याली तो मैं पीता हूं, फिर दूसरी प्याली पहली प्याली पीती है। फिर सकता है। एड इनफिनिटम, फिर तीसरी प्याली चौथी प्याली पीती है। फिर बाहर से मिलता है तनाव, टेंशन; विश्राम नहीं, विराम नहीं। चौथी प्याली पांचवीं प्याली! मैं एक ही प्याली पीता हूं। बाकी कृष्ण कहते हैं, आत्मा को ही जिसने आराम जाना! बाहर से सिवाय प्याली के लिए मेरा कोई जिम्मा नहीं। मैं तो कसम खाकर आता हूं तनाव के और कुछ भी नहीं मिलता। और अगर तनाव बहुत बढ़ कि एक से ज्यादा न पीऊंगा। लेकिन कसम खाने वाला एक पीकर जाएं, तो निद्रा मिल सकती है, और कुछ भी नहीं मिल सकता। रोज | ही बेहोश हो जाता है। फिर प्याली पर प्याली पीती चली जाती हैं। तनाव बढ़ते जाते हैं, विश्राम खोता चला जाता है। टेंशंस बढ़ते चले __ आज मूर्छा में खोएंगे, कल और बड़ी मूर्छा चाहिए, परसों जाते हैं, इकट्ठे होते चले जाते हैं। एक-एक आदमी हिमालय जैसे | और बड़ी मूर्छा चाहिए; प्याली पर प्याली बढ़ती चली जाएगी। टेंशंस, तनाव अपने सिर पर लिए चल रहा है। तनाव मिलते हैं बाहर से, विश्राम नहीं। या मिल सकती है तंद्रा, तनाव बहुत बढ़ जाते हैं, अब क्या करना? इन तनावों के बीच | | जो कि विश्राम नहीं है, जो कि केवल मूर्छा है। विश्राम तो आंतरिक कैसे जीना? तो बाहर से तनाव को भुलाने की तरकीबें मिल सकती | | घटना है, विराम, सब ठहर गया जहां। शांत, जैसे झील पर लहर हैं; केमिकल ड्रग्स मिल सकते हैं, शराब मिल सकती है, एल एस | न हो। आकाश, जहां कि बदलियां न हों। निरभ्र आकाश। सब डी मिल सकती है, मेस्कलीन मिल सकती है, मारिजुआना मिल| चुप, मौन। होश पूरा, शांति भी पूरी। ऐसे विराम के क्षण तो भीतर सकता है। फिर बाहर से केमिकल ड्रग्स मिल सकते हैं कि पी लो | इनको और नींद में खो जाओ; डूब जाओ अंधेरे में। कृष्ण कहते हैं, सुख जिसने जाना भीतर, विश्राम जिसने जाना बाहर से मिल सकते हैं तनाव, और विश्राम के नाम पर मिल | | भीतर, ज्ञान जिसने जाना भीतर, ऐसा पुरुष ही सांख्य का ज्ञानयोगी सकती है निद्रा। टूटेगी निद्रा, तनाव वापस दुगुने वेग से खड़े हो है। ऐसा पुरुष ही ज्ञानयोगी है। जाएंगे। दुगुने वेग से क्यों? क्योंकि निद्रा की इस रासायनिक मूर्छा तीन चीजों पर जोर देते हैं वे। कारण है। तीन ही तरह की चीजें के बाद आप कमजोर होकर वापस आएंगे। तनाव तो वही रहेंगे, | हैं, जो हम चाहते हैं। या तो सुख चाहते हैं। कुछ लोग हैं, जो सुख लेकिन आप कमजोर होकर वापस आएंगे। तनाव दुगुनी ताकत के | के लिए दौड़ते रहते हैं। कुछ लोग हैं, जो सुख से भी ज्यादा ज्ञान हो जाएंगे, आप और कमजोर हो जाएंगे। फिर एक ही उपाय है कि चाहते हैं। और पीओ शराब। | एक वैज्ञानिक है। सब तरह के दुख झेलता है। सब तरह की एक शराबी कहा करता था कि मैंने कभी एक प्याली से ज्यादा | पीड़ा झेलता है। बीमारियां अपने ऊपर बुला लेता है कि बीमारियों शराब नहीं पी। जो मित्र उसको जानते थे, उन्होंने कहा, हमसे झूठ को मिटाने की तरकीब खोज ले। जहर चख लेता है कि जहर का बोलते हो? आंखों से हमने देखा है तुम्हें प्यालियों पर प्याली पता चल जाए कि आदमी मरता है कि नहीं मरता है। सुख से भी ढालते! उसने कहा, मैंने एक प्याली से ज्यादा कभी नहीं पी। मैं यह ज्यादा ज्ञान की तलाश है। बाइबिल पर हाथ रखकर कसम खाकर कह सकता हूं। मित्रों को कुछ लोग हैं, जो सुख की खोज में हैं। कुछ लोग हैं, जो ज्ञान भरोसा न हुआ! बाइबिल उठा लाया। उसने बाइबिल पर हाथ की खोज में हैं। कुछ लोग विश्राम की खोज में हैं। सुख के खोजी, रखकर कसम खा ली, एक प्याली से ज्यादा मैंने कभी नहीं पी। उन | | हम जिनको संसारी कहते हैं, ऐसे सारे लोग सुख के खोजी हैं। मित्रों ने कहा, हद हो गई! झूठ की भी एक सीमा होती है! तुम | जिनको हम विचारक, वैज्ञानिक, कलाकार, इस कोटि में रखते बाइबिल को भी झूठ में घसीट रहे हो। आज सांझ को देखेंगे। | | हैं-दार्शनिक, चिंतक-ये सारे के सारे लोग ज्ञान के खोजी हैं। सांझ को देखा, जैसा कि वह रोज पीता था, प्याली पर प्याली जिनको हम कहते हैं, साधु, संत, मिस्टिक्स, ये सब के सब विश्राम 407
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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