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________________ गीता दर्शन भाग-20 नहीं। फिर वह कब डोलने लगी, उसे पता नहीं। और कब यह नृत्य ठीक बाहर जाती ऊर्जा से जो परिणाम होते हैं, उसके ठीक उसके लिए मिट गया और सिर्फ प्रकाश ही प्रकाश यहां शेष रह | विपरीत भीतर जाती ऊर्जा से परिणाम होते हैं। बाहर है दुख; भीतर गया...। है सुख। रात ग्यारह बजे जब मेरे पास गई, तो उसे रोका गया कि इतनी __ कृष्ण कहते हैं, इस पृथ्वी पर भी उस योगी को आनंद है; रात नहीं, अब मैं सोने को हूं। उसने कहा कि इसी वक्त मुझे | परलोक में उसकी मुक्ति है। संन्यास लेना है। क्योंकि कल सुबह का क्या भरोसा? जो मुझे अनुभव हुआ है, मुझे इसी वक्त छलांग लगा देनी चाहिए। जो मैंने देखा है...। योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तज्योतिरेव यः।' वह मुझसे आकर बोली कि मुझे कुछ हुआ है, जो अनबिलीवेबल __ स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ।। २४ ।। है; मैं अभी भी विश्वास नहीं कर सकती। क्योंकि मेरा दिमाग | जो पुरुष निश्चय करके अंतरात्मा में ही सुख वाला है और स्केप्टिकल, अभी भी मौजूद है। वह पीछे खड़ा है और कह रहा है | आत्मा में ही आराम वाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञान कि ऐसा हो नहीं सकता। मेरा दिमाग कह रहा है, ऐसा हो नहीं | वाला है, ऐसा वह ब्रह्म के साथ एकीभाव हुआ सांख्ययोगी सकता। लेकिन हुआ है, यह भी मैं जानती हूं। दोनों बातें एक साथ ब्राह्म-निर्वाण को प्राप्त होता है। हैं। घटना घटी है, वह भी मैंने देखा। नहीं हो सकता है, यह भी मेरा दिमाग कहता है। लेकिन अगर किसी और को हुआ होता, तो मैं इनकार कर देती। अब इनकार करने का भी कोई उपाय नहीं है। जो आत्मा में ही विश्राम में जीता है, जो आत्मा में ही आप भी देखते हैं। नहीं देख पाते हैं। इतने लोग इकट्ठे हैं। एक Oil आनंद को अनुभव करता है, जो आत्मा में ही ज्ञान को को जो हुआ है, वह सब को हो सकता है; सबकी पोटेंशियलिटी पाता है, जिसके जीवन का सब कुछ उसकी आत्मा है! है। लेकिन देखने वाली आंख, सुनने वाले कान तैयार होने चाहिए। इसे दो-तीन मार्गों से खयाल में लेना जरूरी है। . आज मैं कहूंगा कि जरा देखें! शांत, मौन, सिर्फ देखते रहें। हमारा सब कुछ सदा ही आत्मा के बाहर होता है। सुख, बाहर; . जल्दी न करें। कितनी जल्दी है भागने की! पांच मिनट बाद सही। ज्ञान, बाहर। कोई देगा, तो हमें मिलेगा। कोई नहीं देगा, तो हम मौन। हो सकता है, जो उसे हुआ, वह आपको हो जाए। हो सकता | | अज्ञानी रह जाएंगे। यूनिवर्सिटी, कालेज ज्ञान देंगे, तो हम ज्ञानी हो है, आपको भी यहां नाचते हुए संन्यासियों के शरीर में ध्वनियां | जाएंगे। इसीलिए तो सारी दुनिया पढ़े-लिखे अज्ञानियों से भरती सुनाई पड़ने लगें। और उनके नृत्य की झलक के साथ प्रकाश | चली जाती है! दिखाई पड़ने लगे। __ दूसरे से मिलेगा-चाहे ज्ञान हो, चाहे सुख हो, चाहे शांति वह सब घटित हो रहा है। चारों तरफ परमात्मा हजार तरह से हो-दूसरे से मिलेगी। सब कुछ आएगा सदा दूसरे से। अपने प्रकट होता है। लेकिन हम! हम अपने भीतर खोए रहते हैं—बहरे, | | भीतर कुछ भी नहीं है। तो हम बिलकुल खाली हैं? कोई कंटेंट नहीं अंधे। हमें कुछ सुनाई नहीं पड़ता। राम भी सुनाई पड़ सकता है, | | भीतर! कंटेनर हैं, सिर्फ एक डब्बा हैं खाली, जिसके भीतर कुछ भीतर ऊर्जा जागी हो तो। | भी नहीं है! भिक्षापात्र हैं! दूसरे जो डाल देंगे, वही भर जाएगा; वही कभी आपने खयाल किया, संभोग के बाद स्त्री-पुरुष दोनों के हमारी संपदा है! तो दूसरे कहां से ले आएंगे? वे भी खाली हैं। वे शरीर से खास तरह की दुर्गंध निकलनी शुरू हो जाती है। लोग | | भी हमारे जैसे ही रिक्त डब्बे हैं। तो फिर हम एक-दूसरे को प्रवंचना कहते हैं कि महावीर चलते, तो उनके शरीर से सुगंध निकलती। | देते रहते हैं। बिलकुल निकल सकती है। न तो दूसरे से मिलता है सुख, न दूसरे से मिलता है ज्ञान। दूसरे जब शरीर की ऊर्जा बाहर जाती है, तो शरीर को दुर्गंध की स्थिति से मिल सकता है सुख का आभास, और अंततः दुख। दूसरे से में छोड़ जाती है। और जब शरीर की ऊर्जा भीतर जाती है, तो शरीर मिल सकती हैं सूचनाएं, अंततः अज्ञान को छिपाने वाली; और कुछ को सुगंध की स्थिति में छोड़ जाती है। भी नहीं। इनफर्मेशन मिल सकती है दूसरे से, नालेज नहीं। 406
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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