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________________ काम से राम तक अंतर्नाद पैदा ब्रह्मचर्य के आश्रम का काल था, वह हमारी जिंदगी से बिलकुल अचानक उन्हें खयाल आया कि आवाज कहीं रामतीर्थ के पास से काटकर फेंक दिया गया है। हम गृहस्थ ही शुरू होते हैं, जो कि | आ रही है। वे जितने पास आए, हैरान हो गए। बहुत ही बेहूदी बात है। बच्चा भी गृहस्थ की तरह शुरू होता है, | रामतीर्थ सो रहे हैं। नींद लगी है। रामतीर्थ के हाथ पर कान जो कि बड़ी गलत शुरुआत है। जीवन के सुनिश्चित आधार रखे | रखकर देखा, तो आवाज आ रही है, राम, राम। पैर पर कान ही नहीं जाते। रखकर देखा, तो आवाज आ रही है, राम, राम। बहुत घबड़ा गए _ अर्जुन को भलीभांति पता है कि काम की ऊर्जा कैसे अंतर्ग्रवाहित | | कि यह क्या हो रहा है! शरीर आवाज दे रहा है! रोआं-रोआं होती है, इसलिए उसको उल्लेख नहीं किया है। वह सभी को पता | आवाज दे रहा है! था। उसका उल्लेख करने की कोई जरूरत न थी। वह सामान्य ज्ञान संभव है। बिलकुल संभव है। शरीर बहुत संवेदनशील यंत्र है। था। वह ऐसा ही सामान्य ज्ञान था, जैसे मैं आपसे कहूं कि जाओ, | | जब आप कामवासना से भरे होते हैं, तब भी रोआ-रोआं खबर देता कार ले जाओ। तो यह सामान्य ज्ञान है कि पेट्रोल डला लेना। | है, काम, काम। कामवासना से भरे हुए आदमी का हाथ छुएं। हाथ इसको कहने की कोई जरूरत न पड़े। पेट्रोल न हो, तो कार नहीं | | खबर देता है, काम। कामवासना से भरे आदमी की आंख में आंख जाएगी, यह सामान्य ज्ञान की बात है। | डालें; खबर आती है, काम। कामवासना से भरे आदमी को कहीं ठीक ऐसे ही जीवन की ऊर्जा भीतर कैसे यात्रा करती है, उसके से भी टटोलें; खबर आती है, काम। मेडिटेशन की विधि सबको ज्ञात थी। वह हर बच्चे को जन्म के बाद | राम से भी इतना ही भरा जा सकता है। और जब ऊर्जा अंतर्यात्रा पहली चीज थी। जैसे ही बच्चा होश में भरता. जो पहली चीज हम बनकर सहस्रार पर पहुंचकर अंतर्गज पैदा करती है सिखाते थे, वह ब्रह्मचर्य था। जो पहला पाठ हम देते थे उसके | करती है, तो उस व्यक्ति ने जिस शब्द का भी उपयोग करके यह जीवन में, वह ब्रह्मचर्य था। क्योंकि वही सबसे बड़ा पाठ है, जो | | यात्रा की हो-कृष्ण का, या राम का, या क्राइस्ट का, या अल्लाह जीवन की ऊर्जा को काम से हटाकर राम की तरफ ले जाता है। । | का—वह शब्द उसके रोएं-रोएं से प्रस्फुटित होने लगता है; गूंजने काम है दूसरे पर निर्भरता, राम है स्वनिर्भरता। काम है बहिर्गमन, | | लगता है। और जिनके पास सुनने के कान हैं, वे सुन सकते हैं। राम है अंतर्गमन। काम और राम के बीच हमारे सारे जीवन का | | बड़े सूक्ष्म कान चाहिए। आंदोलन है। जो बाहर ही दौड़ रहा है, उसे काम ही काम सुनाई पड़ता | ___ अब अभी कहा गया आपको, एलिजाबेथ, जिसने कल रात है। जो भीतर दौड़ रहा है, उसे राम ही राम सुनाई पड़ता है। ग्यारह बजे जाकर संन्यास लिया, वह कल यहां धुन में खड़ी थी। जैसे मैंने आपसे कही उस आदमी की बात-रूमाल गिराया, स्वभावतः, जैसा अमेरिकन दिमाग होता है, स्केप्टिकल है। परसों तो उसने कहा, आइ एम रिमाइंडेड आफ सेक्स। अगर किसी भक्त | सुबह ही उसने मुझसे बात की कि मैं श्रद्धा बिलकुल नहीं कर को, किसी साधक को रूमाल गिराओ, और पूछो कि किस चीज | सकती। मुझे तो बड़े संदेह उठते हैं। और भारतीय दिमाग से मेरा का स्मरण आया? वह कहेगा, राम का। घंटी बजाओ; पूछो, किस | कोई तालमेल नहीं बैठता। मुझे तो रेशनल, बुद्धिगत कोई बात चीज का स्मरण आया? वह कहेगा, राम का। किताब खोलो; | समझ में आनी चाहिए। ये संन्यासी नाच रहे हैं, ये सब कर रहे हैं, पूछो, किस चीज का स्मरण आया? वह कहेगा, राम का। यह मुझे बहुत अजीब लगता है। स्वभावतः! यह मुझे ठीक नहीं स्वामी रामतीर्थ हिंदुस्तान जब वापस लौटे, तो सरदार पूर्णसिंह | | लगता। मैं नाच नहीं सकती हूं। कठोर थी परसों सुबह। नाम के एक बहुत विचारशील व्यक्ति उनके पास रात को रुकते थे। | मैंने उससे कहा कि ठीक है। कोई चिंता मत कर। तू खड़े होकर एक दिन बड़े हैरान हुए। कमरे में कोई नहीं है। राम सोते हैं। | | देख। नाच मत। खड़े होकर सिर्फ देख। और दूसरे के लिए पूर्णसिंह जाग गए हैं। कमरे में राम की ध्वनि आ रही है। और राम | जजमेंट मत ले कि दूसरे क्या कर रहे हैं, क्योंकि दूसरे के भीतर तो सोए हुए हैं। कमरे के बाहर जाकर पूर्णसिंह चक्कर लगा आएः | | हम प्रवेश नहीं कर सकते हैं। उसके भीतर क्या हो रहा है, हमें कोई नहीं है। कहीं से कोई आवाज नहीं है। जितना कमरे से दूर गए, | | कुछ पता नहीं है। आवाज कम होती चली गई। कमरे में वापस लौटकर आए। रात | परसों रात वह खड़ी रही, देखती रही। कल रात भी खड़ी होकर के दो बजे हैं। जैसे कमरे के पास आए, आवाज बढ़ने लगी। तब देखती रही। फिर अचानक कब उसकी ताली बजने लगी, उसे पता 405
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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