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________________ गीता दर्शन भाग-26 सुख! हम दोनों लेने की तलाश में हैं, और दोनों के पास देने को नहीं | | तिरोहित हो गई। दो क्षण में! इससे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। और है। देने को होता, अगर मेरे पास किसी को सुख देने को होता, तो | | जैसे ही काम की वासना तिरोहित होगी, जो ऊर्जा उठ गई, उसका सबसे पहले तो मैं ले लेता। अगर मेरे घर में कुआं होता और मैं प्यास | क्या होगा? अपनी बुझा सकता, तो मैं दूसरे की प्यास भी बुझाने के लिए कुएं | ऊर्जा सदा उपयोग में आती है। उठ जाए तो, कुछ न कुछ पर बुला लेता। लेकिन मेरे घर में कुआं नहीं, मैं प्यासा मरा जा रहा | उपयोग होता है। जो शक्ति जाग गई, उसका क्या होगा? अब हूं; और एक दूसरे आदमी के पीछे चल रहा हूं, इस आशा में कि | बाहर जाने का कोई मार्ग न रहा. तो शक्ति भीतर जाना शरू हो उससे मेरी प्यास बुझ जाएगी! वह खुद भी मेरे घर इसीलिए आया | | जाती है। उस शक्ति के बहाव का नाम कंडलिनी है। उस शक्ति के हुआ है कि उसकी प्यास मुझसे बुझ जाएगी। न उसके घर कुआं है, | भीतर बहने का नाम कुंडलिनी है। सेक्स के, यौन के केंद्र से शक्ति न मेरे घर कुआं है! हम दोनों एक-दूसरे को धोखा दे रहे हैं। | उठती है और रीढ़ के मार्ग से ऊपर की तरफ बहनी शुरू हो जाती मैं उसे ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहा हूं कि मैं तुझे सुख दूंगा, है। जैसे कोई सर्प उठता हो। क्योंकि इस तरह का आश्वासन अगर मैं न दिलाऊं, तो उससे मुझे | यौन के केंद्र पर शक्ति का संग्रह है। या तो वहां से बाहर चली सुख मिलने का रास्ता नहीं बनेगा। वह मुझे धोखा दे रहा है कि मैं | जाएगी, या वहां से भीतर चली जाएगी। वह द्वार है। अगर बाहर तुम्हें सुख दूंगा। वह भी इसीलिए धोखा दे रहा है, क्योंकि अगर | | गई, तो या तो विषाद बनेगी, या क्रोध बनेगी। अगर भीतर गई, तो वह ऐसा आश्वासन न दे, तो मुझसे सुख न पा सकेगा। और हम | ठीक उलटी घटना बनेगी। अगर अवरुद्ध हो जाए, तो क्षमा बनेगी, दोनों एक-दूसरे को धोखा दे रहे हैं। जैसे बाहर अवरुद्ध होने से क्रोध बनती है। अगर भीतर अवरुद्ध इस जगत में हम सब एक-दूसरे को धोखा दे रहे हैं इस बात का | | हो जाए, तो क्षमा बनेगी। और जैसे बाहर पूरे होने से विषाद बनती कि सुख लिया-दिया जा सकेगा। वह संभव नहीं है। जिसके पास | | है, अगर भीतर पूरी हो जाए, तो आनंद बनेगी। भीतर सुख नहीं है, वह किसी को दे नहीं सकता। जो हमारे पास | | खयाल रख लें, बाहर ऊर्जा जाए, पूरे लक्ष्य तक पहुंच जाए, तो है, वही हम दे सकते हैं। और जो हमारे पास है, वह देने के पहले | | विषाद फल बनेगा। भीतर उठे, और सहस्रार तक पहुंच जाए ऊपर हमें मिल गया होता है। तक, तो आनंद फलित होगा। अगर बाहर रुकावट बन जाए, तो. इस जगत में वह आदमी सुख दे सकता है, जिसके पास है। क्रोध बनेगी; अगर भीतर कहीं रुकावट बन जाए, तो क्षमा बनेगी। लेकिन हमारे पास तो कोई सुख नहीं है। काम से केवल वही व्यक्ति | लेकिन हम तो बाहर से ही परिचित हैं। हम बाहर से ही परिचित मुक्त होगा, जिसे आनंद के अंतर-स्रोत उपलब्ध हो जाएं, अन्यथा | | हैं, हमें भीतर का कोई खयाल नहीं है। मुक्त नहीं होगा। कृष्ण क्यों इस बात को स्पष्ट नहीं कह रहे हैं, यह भी सोचने तो जब कृष्ण कहते हैं, काम और क्रोध से मुक्त हो जाता है जो, | | जैसा है। कृष्ण को अर्जुन को बताना चाहिए कि तू काम-केंद्र पर, तो उसका अर्थ ही यह है। उसका अर्थ ही यह है कि जब भी मन में | | सेक्स सेंटर पर ध्यान को केंद्रित कर। यह अर्जुन से कृष्ण क्यों नहीं काम उठे तो काम एक ऊर्जा है, एनर्जी है, बड़ी शक्ति है। कह रहे हैं? मैं इसे क्यों कह रहा हूं आपसे? उसका कारण है। इसीलिए तो प्रकृति काम-ऊर्जा को संतति के लिए, जन्म के लिए | इस देश की एक व्यवस्था थी ब्रह्मचर्य आश्रम की। सारे बच्चे, उपयोग में लाती है। बड़ी शक्ति है, विराट शक्ति है काम। जब जो भी गुरु के पास ब्रह्मचर्य के काल में आश्रम में रहते थे, उन काम उठे, आपके भीतर जब वासना उठे, किसी से सुख लेने की | | सबको अनिवार्य रूप से सेक्स सेंटर पर ध्यान करना सिखा दिया इच्छा उठे, तब आंख बंद करके दूसरे को भूल जाना और आपके | | जाता था। ब्रह्मचर्य की साधना ही थी वह। यह सामान्य ज्ञान की ही भीतर वह ऊर्जा कहां उठ रही है, उस बिंदु पर ध्यान करना। बात थी, इसलिए कृष्ण को इसे विशेष रूप से कहने की कोई स्वभावतः, साधारणतः सेक्स सेंटर से ऊर्जा उठती है और बाहर | जरूरत नहीं है। इतना ही वे कह सकते हैं कि अर्जुन, काम और फैल जाना चाहती है। यदि कोई व्यक्ति, जिस क्षण सेक्स की | | क्रोध से जो मुक्त हो जाता है, वह इस पृथ्वी पर सुख को और उस कामना मन को घेर ले, आंख बंद करके अपने सारे ध्यान को सेक्स | | लोक में भी आनंद को उपलब्ध होता है। के सेंटर पर ले जाए, तो दो क्षण में पाएगा कि काम की वासना । आपसे मुझे विस्तार से कहने की जरूरत है, क्योंकि वह जो 404
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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