SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काम से राम तक उस आदमी ने कहा, तुम्हारी चीजों से मुझे कोई संबंध नहीं। मुझे | | इसलिए सेक्स के संबंध में समाज के सारे नियम, सारी व्यवस्था सिवाय सेक्स के और कोई खयाल आता ही नहीं। तुम्हारी चीजों से टूटी जा रही है। कोई संबंध नहीं है। तुम रूमाल गिराओ कि पत्थर गिराओ। तुम घंटी | जितनी दुनिया समृद्ध होगी, उतनी सेक्स के मामले में सब बजाओ कि घंटा बजाओ। तुम किताब खोलो कि बंद करो। इससे | | सीमाएं तोड़ती चली जाएगी। इससे कुछ ऐसा नहीं है कि कुछ बड़ी कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं तो सिवाय काम के कुछ सोचता ही नहीं। | उपलब्धि हो जाएगी। एक तरफ अमेरिका जैसे समृद्ध समाज में यह आदमी पागल मालूम पड़ेगा। लेकिन दुनिया में सौ में से सेक्स के सब व्यवधान टूट गए, और दूसरी तरफ विफलता और निन्यानबे आदमी इस भांति के हैं। उन्हें पता हो या न पता हो। और | विषाद घना होता जाता है और आत्महत्याएं बढ़ती चली जाती हैं। जिन्हें पता है, उनकी तो चिकित्सा हो सकती है, जिन्हें पता नहीं है, समाज के पास दो ही उपाय हैं। या तो वह आपकी काम की वे बड़ी खतरनाक हालत में हैं। वासना को पूरा होने की खुली छूट दे दे; तो भी आप पागल हो __हमें लगेगा कि यह तो बात ठीक नहीं है। रूमाल के गिरने से | जाएंगे-विषाद में, फ्रस्ट्रेशन में। जैसा अमेरिका में हुआ है। यौन हमें क्यों खयाल आएगा? लेकिन अगर आप अपने मन का के संबंध में परी स्वतंत्रता पैदा हो गई है। और इसका परिणाम यह थोड़ा-सा अंतर्विश्लेषण करेंगे सुबह से रात सोने तक, थोड़ा भीतर | हआ कि यौन में रस भी कम हो गया: विरस हो गया: काम की झांककर देखेंगे, तो आप हैरान होंगे कि कहीं अंतस्तल पर एक पर्त गहराई भी खो गई; काम का मूल्य भी खो गया; और आदमी कामवासना की पूरे समय चलती रहती है। विषाद में खड़ा है। अब कोई दूसरा सेंसेशन चाहिए, कोई दूसरा मनोवैज्ञानिक उस राज को पकड़ लिए हैं, इसलिए सारी दुनिया वेग, कोई दूसरी उत्तेजना। वह दिखाई नहीं पड़ती। के विज्ञापनदाताओं को उन्होंने कह दिया है कि आदमी को कोई भी इसलिए काम के विकृत रूप सारे पश्चिम में फैलने शुरू हो चीज बेचनी हो, सेक्स के साथ जोड़ दो; बिकेगी। अन्यथा नहीं गए। होमोसेक्सुअलिटी इतने जोर से बढ़ती है, जैसा कि दुनिया में बिकेगी। कार बेचनी हो, तो एक नग्न स्त्री को कार के साथ खड़ा कभी भी नहीं बढ़ी थी। क्योंकि स्त्री के साथ पुरुष ने देख लिया, करो। कोई संबंध नहीं है। सिगरेट बेचनी हो, तो एक स्त्री को खड़ा | स्त्री ने पुरुष के साथ देख लिया। रस नहीं है कुछ बहुत। अब क्या करो। कछ भी बेचना हो. तो नग्न स्त्री को बीच में लाओ। जिसका करें। अब नए आविष्कार करने पड़ते हैं। विक्षिप्त आविष्कार पैदा कोई भी संबंध नहीं है, तो भी खड़ा करो। क्यों? आदमी के मन की | होते हैं; विकृतियां, परवरशंस पैदा होते हैं। अंतर्धारा का पता चल गया है। हर चीज उसी की याद दिलाती है। ।। अगर समाज बिलकुल खुला छोड़ दे सेक्स, तो परवर्ट होगा। तो अगर स्त्री को खड़ा कर दो, तो वह चीज उसके मन में गहरे | और अगर समाज बिलकुल खुला न छोड़े, तो सप्रेशन होगा। और संयुक्त हो जाएगी, गहरी उतर जाएगी।, फिर वह चीज नहीं जितना दमन होगा, उतना क्रोध पैदा होगा। या तो काम को खुला खरीदेगा। खरीदेगा चीज, और समझेगा कि किसी जाने-अनजाने छोड़ो, तो विषाद फैल जाता है; जीवन रसहीन हो जाता है। लोग रास्ते स्त्री खरीदी है। थके-हारे, अर्थहीन हो जाते हैं। एंप्टीनेस पकड़ लेती है। सब यह काम से भरा हुआ चित्त अगर चौबीस घंटे क्रोध से भरता रिक्त, कुछ भी नहीं है जिंदगी में। और यदि काम को रोको, तो है. तो आश्चर्य नहीं है। यह काम चौबीस घंटे हजार बाधाएं पाता | क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध हजार-हजार रूपों में प्रकट होता है। है, रुकावटें पाता है। यह पूरा नहीं हो पाता। पीड़ा देता है। भीतर क्या आपको पता है कि आज से सौ साल पहले दुनिया में उबल जाते हैं प्राण। ऊर्जा काम में बहना चाहती है, रुकावटें पाती युवकों के विद्रोह कहीं भी नहीं थे। कोई दुनिया में नए तरह के यूथ है हजार तरह की। इसलिए तो जहां सुविधा बन जाएगी, वहां लोग | पैदा नहीं हो गए हैं; कोई नए तरह के युवक पैदा नहीं हो गए हैं। रुकावटों को तोड़ना शुरू कर देंगे। जैसा अमेरिका में हुआ। दुनिया में युवक-विद्रोह कभी भी न था। युवकों ने कभी भी पत्थर जब तक दुनिया गरीब थी, तो आदमी समाज से डरता था। | मारकर न तो कालेज के कांच तोड़े थे, न स्कूल तोड़े थे, न आगें क्योंकि भूखा मरेगा, अगर समाज के खिलाफ गया तो। नौकरी, । | लगाई थीं, न बस और ट्राम जलाई थीं। न गुरुओं को, शिक्षकों को, रोजी-रोटी खो जाएगी। जिंदा रहना मुश्किल हो जाएगा। आज माता-पिताओं को इस तरह की चिंता में डाल दिया था। न समाज अमेरिका में धन काफी है। कोई भय नहीं रहा समाज का उतना। की सारी व्यवस्था को इस तरह अस्तव्यस्त कभी किया था। क्या 401]
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy