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गीता दर्शन भाग-20
बात है? युवक के भीतर कुछ नए हारमोन, कोई नई केमिस्ट्री हो खड़ा हो जाता है, जिसे काम आंदोलित नहीं करता और जिसे क्रोध गई? कोई नई बात पैदा हो गई?
| अग्नि की लपटों में नहीं डालता, ऐसा व्यक्ति यहां भी और परलोक युवक बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे सदा थे। सिर्फ एक बात का | | में भी सुख को उपलब्ध होता है। फर्क पड़ा है, दुनिया से बाल-विवाह विदा हो गया। तेरह-चौदह लेकिन हम तो दुख ही दुख को उपलब्ध होते हैं। इससे साफ साल में युवक कामवासना से भर जाता है। लेकिन समाज सब | | समझ लेना चाहिए कि हमारी स्थिति बिलकुल प्रतिकूल होगी। हम तरफ से रोक पैदा कर देता है। रोक पैदा कर देता है, क्रोध पैदा होता | ठीक उलटे होंगे कृष्ण के आदमी से। दुख ही दुख! दुख के जोड़ है। काम अवरुद्ध हुआ कि क्रोध पैदा हुआ। क्रोध पैदा हुआ कि के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। विध्वंस होगा।
फ्रायड से मरते वक्त किसी ने पूछा कि तुमने जिंदगीभर इतने इसलिए सारी दुनिया में विध्वंस की लहर दौड़ गई है। युवक तोड़ लोगों की मनस-चिकित्सा की। क्या तुम सोचते हो कि आदमी को रहे हैं उन चीजों को, उन्हीं चीजों को, जिनको उनके मां-बाप ने | मनस-चिकित्सा के द्वारा सुख तक पहुंचाया जा सकता है ? ब्लिस निर्मित किया उनके लिए। विश्वविद्यालय जलेंगे, बच नहीं सकते। | उपलब्ध हो सकती है? फ्रायड ने जो बात कही, बहुत हैरानी की
इसलिए अमेरिका के एक बहत समझदार मनोवैज्ञानिक किन्से | है। फ्रायड ने कहा कि नहीं; जैसा आदमी है, इस आदमी को सुख ने दस साल के अध्ययन के बाद यह कहा कि अगर दनिया से | तक कभी नहीं पहुंचाया जा सकता। ज्यादा से ज्यादा सामान्य दुख युवक-विद्रोह खतम करना है, तो हमें बाल-विवाह पर वापस लौट | तक आदमी पहुंचे, इतना इंतजाम किया जा सकता है-जनरल जाना चाहिए।
अनहैपिनेस! फ्रायड ने कहा, सुख तक तो किसी को नहीं पहुंचाया बाल-विवाह पर कोई अमेरिकी मनोवैज्ञानिक कहेगा, वापस | जा सकता। लोग बहुत दुख तक न जाएं, न्यूरोटिक अनहेपिनेस लौट जाना चाहिए! क्या कारण है? अगर काम अवरुद्ध होगा, तो तक न जाएं; पागल न हो जाएं दुख में; साधारण बने रहें-इतने क्रोध बनेगा। और क्रोध फिर हिंसा बनेगा, और जीवन को सब दुख तक पहुंचाया जा सकता है! जनरल अनहैपिनेस! बस, ज्यादा तरफ से तोड़ डालेगा।
से ज्यादा जो हम कर सकते हैं, वह फ्रायड ने कहा, इतना कि हम लेकिन बाल-विवाह करने से दूसरी परेशानियां हैं। जैसे ही इतने दख तक आपको रोक सकते हैं, जितना सबको है। बाल-विवाह होना शुरू होता है, जैसे ही बच्चों का विवाह कर __ अगर फ्रायड जैसा इस युग का मनीषी कहे कि अंतिम लक्ष्य दिया जाए, वैसे ही उनके जीवन में क्रिएटिविटी खो जाती है; वे | | इससे ज्यादा दिखाई नहीं पड़ता, तो हमें मनोविज्ञान के पूरे आधारों सृजन नहीं कर पाते। बच्चे ही पैदा करते हैं, फिर और कुछ सृजन | | पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। न्यूरोटिक अनहैपिनेस से हम उतार नहीं करते। इसलिए बाल-विवाह वाले समाज आविष्कार नहीं कर | | सकते हैं जनरल अनहैपिनेस तक! बस, इससे ज्यादा नहीं! इतना पाते, वैज्ञानिक खोज नहीं कर पाते, हिमालय पर नहीं चढ़ पाते, | दुखी न होने देंगे कि आप पागलखाने चले जाओ। इतना दुखी न चांद-तारों पर नहीं पहुंच पाते।
होने देंगे कि आत्महत्या कर लो। इतना दुखी न होने देंगे कि आप जहां बाल-विवाह होगा, वहां खोज, सृजन, क्रिएशन, सब बंद | | पागल हो जाओ। बस इतना दुखी होने देंगे कि दुकान चलाते रहो, हो जाएगा। लेकिन जहां खोज होगी, क्रिएशन होगा, बाल-विवाह | घर बच्चों को बड़ा करते रहो। इतना दुखी होने देंगे, जनरल रुकेगा, वहां क्रोध और हिंसा की आग फैल जाएगी। फिर क्या | अनहैपिनेस, जितने सभी लोग दुखी हैं। बस, इससे आगे नहीं। किया जाए?
इससे आगे कुछ नहीं किया जा सकता। कृष्ण कुछ और ही सुझाव देते हैं। वे कहते हैं, न तो काम को | अगर फ्रायड ऐसा कहता है, तो थोड़ा सोचने जैसा है। क्योंकि खुला छोड़ देने से कोई हल है, न काम को रोक लेने से कोई हल भारत के सारे मनसविद–चाहे कृष्ण, चाहे पतंजलि, चाहे कणाद, है। काम और क्रोध दोनों वेग के अतीत, पार हो जाने में, दोनों के | चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, चाहे शंकर, चाहे नागार्जुन-वे सभी ऊपर उठ जाने में है। दोनों वेगों के बीच अलिप्त हो जाने में है; कहते हैं कि मनुष्य परम आनंद को उपलब्ध हो सकता है। और दोनों के साथ अनासक्त हो जाने में है।
ऐसा वे प्रामाणिक रूप से कहते हैं, क्योंकि वे खुद उस परम आनंद जो व्यक्ति इस पृथ्वी पर इन दो वेगों के साथ अलिप्त होकर में खड़े हुए हैं।
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