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________________ ॐ अकंप चेतना खबर दे देती है कि देखते हैं, शो रूम में हीरे का हार है! आंख का | और ध्यान रहे, एक क्षण को भी खबर बेकार चली जाए, तो खबर देना फर्ज है। आंख ठीक है, तो खबर देगी। जितनी ठीक है, | | फिर मिलन नहीं होगा। यह भी आप खयाल में ले लें। एक क्षण भी उतनी ठीक खबर देगी। आंख खबर दे देती है मस्तिष्क को। | चूक हो जाए, क्रासिंग न हो पाए; बाहर से शरीर खबर लाए, इंद्रियां मस्तिष्क भीतर मन को खबर दे देता है कि हार है। इतनी खबर से | कहें, सुंदर है हार; और उसी क्षण भीतर अगर आप जागे रहें और कहीं भी कोई आसक्ति नहीं हुई जा रही है। | देखते रहें कि कोई वासना आकर इस इनफर्मेशन, इस सूचना से लेकिन मन ने कहा, है, सुंदर है-शुरू हुई यात्रा। अभी बहुत | | मेल नहीं करती, तो बस एक क्षण में विदा हो जाएगी। वह एक क्षण सूक्ष्म है। कहा, सुंदर है–यात्रा शुरू हुई। क्योंकि सुंदर जैसे ही | ही चूक जाता है, बेहोश...। मन कहता है, मन के किसी कोने में धुआं उठने लगता है पाने का। वह क्षण हम कैसे चूकते हैं? उसके चूकने की भी व्यवस्था है। जैसे ही कहा, सुंदर है, पाने की आकांक्षा ने निर्माण करना शुरू कर | जैसे ही हार दिखाई पड़ा कि हमारी पूरी अटेंशन, पूरा ध्यान हार पर दिया। अभी आप कहेंगे कि नहीं अभी तो सिर्फ एक एस्थेटिक चला जाता है। वह जो भीतर से वासना आती है, वह अंधेरे में जजमेंट हुआ, एक सौंदर्यगत निर्णय किया। इसमें क्या बात है! चुपचाप चली आती है। उसे कोई पहरेदार नहीं मिलता। कहा कि सुंदर है। साधक के लिए इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जब हीरे के नहीं; लेकिन बहुत गहरे में, सूक्ष्म में जैसे ही कहा, सुंदर हार की खबर दी आंखों ने, तब तत्काल आंख बंद करके ध्यान ले है-पहले हमें यही पता चलता है कि सुंदर है और फिर पता चलता। | जाएं भीतर, कि भीतर से कौन आ रहा है! बाहर से तो खबर आ है कि पाना है। लेकिन अगर स्थिति को ठीक से समझें, तो पहले | गई; अब भीतर से कौन आ रहा है! ध्यान को ले जाएं भीतर। देखें, मन के गहरे में इच्छा आ आती है, पाना है; और तब बुद्धि कहती | कोई वृत्ति सरकती है? कोई मांग, कोई इच्छा पैदा होती है? भीतर है, सुंदर है। ऊपर से देखने पर पहले तो हमें यही पता चलता है। पहुंच जाएं। कि सुंदर है। फिर पीछे से छाया की तरह सरकती हुई कोई वासना | और बड़े मजे की बात है। बुद्ध ने कहा है कि जैसे किसी घर पर आती है और कहती है, पाओ! लेकिन आध्यात्मिक जितने खोजी | | पहरेदार न हो, तो चोर घुस जाते हैं, ऐसे ही जिस आत्मा के द्वार हैं, वे कहते हैं कि पहले तो मन के गहरे में वासना सरक जाती है | पर ध्यान न हो, तो वृत्तियां घुस जाती हैं। जिस घर के द्वार पर और कहती है, पाओ। उस खबर को सुनकर भीतर से मन कहता | | पहरेदार न हो, तो चोर घुस जाते हैं! ध्यान पहरेदार है, अटेंशन। है, सुंदर है। तो कृष्ण कहते हैं, वस्तुओं में अनासक्त! इसमें दो तरह समझ लें। मन को दो तरह की खबरें मिलती हैं। वस्तुओं में अनासक्त वही होगा, जो वृत्तियों के प्रति जागरूक मन बीच में खड़ा है। बाहर शरीर है; भीतर आत्मा है। शरीर खबर | है, जो वासना के प्रति होशपूर्वक है, जागा हुआ है। जो देखता है देता है, हीरे का हार है सुंदर। शरीर खबर देता है, विषय की, वस्तु | कि ठीक; आंख ने खबर दी कि हार सुंदर है। अब भीतर से क्या की। आत्मा के भीतर से खबर आती है, वासना की, वृत्ति की, चाह आता है, उसे देखता है। और अगर कोई व्यक्ति जागकर वृत्तियों की–पाना है। दोनों का मिलन होता है मन पर, और आसक्ति | को देखने लगे, तो इंद्रियां खबर देती हैं, लेकिन वृत्तियों को उठने निर्मित होती है। का मौका नहीं मिल पाता। एक क्षण की चूक-चूक हो गई। तब अनासक्ति का अर्थ है, बाहर से तो खबर आए-आनी ही तक सूचना खो गई, और आपका होश आपकी शक्ति को बचा चाहिए, नहीं तो जीना असंभव हो जाएगा। अगर आंखें ठीक से न गया। आसक्ति निर्मित नहीं हुई। देखेंगी, कान ठीक से न सुनेंगे, हाथ ठीक से स्पर्श न करेंगे, तो - वृत्ति और इंद्रिय की सूचना के मिलन से आसक्ति निर्मित होती जीना कठिन हो जाएगा। अस्वस्थ होगी वैसी देह। देह स्वस्थ होगी, | | है। इन दोनों का सेतु बन जाए, तो आसक्ति निर्मित होती है। इनका तो खबर पूरी होगी। लेकिन भीतर से कोई वासना आकर मन के | | सेतु न बन पाए, तो अनासक्ति निर्मित हो जाती है। दरवाजे पर मिलेगी नहीं। बाहर से खबर आएगी। समझी जाएगी। - वस्तुओं में जो अनासक्त है! वस्तुओं के बीच जो होशपूर्वक सुनी जाएगी। आगे बढ़ जाया जाएगा। भीतर से कोई आया नहीं चल रहा है! मिलने को; खबर बेकार चली गई। चारों तरफ हजार-हजार आकर्षण हैं। इंद्रियों पर लाखों आघात 393/
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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