SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकंप चेतना आदमी जीवन में जो-जो सपने देखता है, जब तक देखता रहता | और जानना कि लोग कांटे फेंक रहे हैं, गालियां फेंक रहे हैं। लेकिन है, तब तक प्रीतिकर होते हैं। जब सपने हाथ में आ जाते हैं, तो बड़े | देखना भीतर यह कि स्वयं चलित तो नहीं हो जाते, स्वयं तो नहीं बह अप्रीतिकर हो जाते हैं। | जाते फूलों और कांटों के साथ! स्वयं तो खड़े ही रह जाना भीतर। जिस चीज को प्रेम करें, अगर प्रेम जारी रखना हो, तो जरा दूर ही. ऐसे प्रत्येक अवसर को जो तटस्थ साक्षी का क्षण बना लेता है, रहना, निकट मत जाना। निकट गए कि प्रेम उजड़ जाएगा, विकर्षण | | | वह धीरे-धीरे अंतर-समता को उपलब्ध होता है। धीरे-धीरे ही होती जगह ले लेगा। क्योंकि सारा आकर्षण अनजान, अपरिचित, दूर जो | है यह बात। एक-एक कदम समता की तरफ उठाना पड़ता है। है, आशा में है, होप। जितनी ज्यादा आशा मिश्रित मालूम होती है, | | लेकिन जो कभी भी नहीं उठाएगा, वह कभी पहुंचेगा नहीं। उतना आकर्षण मालूम होता है। हाथ में आ गए तथ्य विकर्षित हो | बहुत छोटे-छोटे मौकों पर-जब कोई गाली दे रहा हो, तब जाते हैं। बहुत देर हाथ में रह गए तथ्य, फेंकने जैसे हो जाते हैं। जिसे | | उसकी गाली पर से ध्यान हटाकर भीतर ध्यान देना कि मन चलित चाहा था बहुत मांगों से, उससे दूर हटने की आकांक्षा पैदा हो जाती तो नहीं होता। और ध्यान देते ही मन ठहर जाएगा। यह बहुत मजे है। अप्रीतिकर हो जाता है वही, जो प्रीतिकर था। की बात है। जब कोई गाली देता है, तो हमारा ध्यान गाली देने वाले इसलिए कृष्ण कहते हैं, जिन्हें लोग प्रीतिकर समझते हैं, जिन्हें पर चला जाता है। अगर कृष्ण की बात समझनी हो, तो जब कोई लोग अप्रीतिकर समझते हैं...। गाली दे, तो ध्यान जिसको गाली दी गई है, उस पर ले जाना। किन्हें समझते हैं लोग? दूर की आशाओं को लोग प्रीतिकर | जैसे ही ध्यान भीतर जाएगा, हंसी आएगी। गाली बाहर रह समझते हैं। इंद्रियों को प्रलोभन जहां से मिलता है, वहां प्रीतिकर | | जाएगी; गाली देने वाला बाहर रह जाएगा; आप किनारे पर खड़े मालूम होता है सब। जहां-जहां इंद्रियां पहुंच जाती हैं, वहीं अप्रीति | | हो जाएंगे। गाली से अछूते, कमल के पत्ते की तरह पानी में। चारों बैठ जाती है; वहीं अंधेरा छा जाता है; वहीं हटने का मन हो जाता | | तरफ पानी है और आप अस्पर्शित, अनटच्ड रह जाएंगे। उस क्षण है। इसीलिए तो जो हम पा लेते हैं, बस वह बेकार हो जाता है। | इतने आनंद की प्रतीति होगी, जिसका हिसाब नहीं। आंखें फिर कहीं और अटक जाती हैं। जिसने भी गाली के क्षण में या सम्मान के क्षण में भीतर खड़े लेकिन एक और अर्थ में भी इस बात को समझ लेना जरूरी है। होने को पा लिया, जस्ट स्टैंडिंग को पा लिया, वह इतने अतिरेक कोई आपके गले में फूल की मालाएं डाल रहा है। प्रीतिकर लगता | आनंद से भर जाता है, जिसका कोई हिसाब नहीं। क्यों? क्योंकि है। स्वागत, सम्मान, प्रतिष्ठा प्रीतिकर लगती है। कोई जूते की पहली बार वह स्वतंत्र हुआ। अब कोई उसे बाहर से चलित नहीं मालाएं डाल दे गले में, अप्रीतिकर लगता है। कर सकता है। अब वह यंत्र नहीं है, मनुष्य हुआ। हम बटन दबाते ___ कृष्ण कहते हैं, ये व्याख्याओं से जो भीतर आंदोलित हो जाता | | हैं, बिजली जल जाती है। हम बटन दबाते हैं, बिजली बुझ जाती है, वह प्रभु की सतत आनंद की स्थिति में प्रवेश नहीं कर सकता। | है। बिजली परतंत्र है, बटन दबाने से जलती और बुझती है। किसी क्योंकि गले में डाले गए फूल कि गले में डाले गए कांटे, चेतना | ने गाली दी; हमारे भीतर दुख छा गया। किसी ने कहा कि आप तो को इससे अंतर नहीं पड़ना चाहिए। चेतना को अंतर पड़ता है, बड़े महान हैं; हमारे भीतर खुशी की लहर दौड़ गई। तो हममें और इसका अर्थ यह हुआ कि बाहर के लोग आपको प्रभावित कर | | बिजली में बहुत फर्क न हुआ, बटन दबाई... सकते हैं। और जब तक बाहर के लोग आपको प्रभावित कर सकते __ अभी अमेरिका में कुछ मनोवैज्ञानिक, इरिक फ्रोम, डा.सर्ज हैं, तब तक भीतर की धारा में प्रवेश नहीं होता। और कुछ दूसरे मनोवैज्ञानिक एक छोटा-सा प्रयोग कर रहे हैं, जो बाहर से जो प्रभावित होगा, उसकी चेतना बाहर की तरफ बहती मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा। वह प्रयोग यह है कि हमारे रहेगी। जब बाहर से कोई बिलकुल अप्रभावित, तटस्थ हो जाता | मस्तिष्क में कुछ सेंटर्स हैं, कुछ केंद्र हैं, जिनमें अगर बिजली की है, तभी चेतना अंतर्गमन को उपलब्ध होती है। | धारा प्रवाहित की जाए, तो बड़ा प्रीतिकर लगता है। और दूसरे भी जब मिले स्वागत, जब मिले सम्मान, जब प्रेम की वर्षा होती कुछ केंद्र हैं हमारे मस्तिष्क में, जिनमें बिजली की धारा प्रवाहित की लगे, तब भी भीतर साक्षी रह जाना, देखना कि लोग फूल डाल रहे | | | जाए, तो बड़ा अप्रीतिकर लगता है। सिर्फ बिजली की धारा! तो हैं। जब मिले अपमान, जब बरसें गालियां, तब भी साक्षी रह जाना इलेक्ट्रोड, बिजली का तार डाल देते हैं खोपड़ी के भीतर, और जिस 387
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy