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गीता दर्शन भाग-28
न प्रहष्येत्प्रियं प्राप्य नोद्विजेत्प्राप्य चाप्रियम् । शीघ्र ही आकर्षण की जगह तिरस्कार, और तिरस्कार के बाद स्थिरबुद्धिरसंमूढो ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः ।। २० ।। विकर्षण जगह बना लेता है। और जो पुरुष प्रिय को प्राप्त होकर हर्षित नहीं हो और सुना है मैंने, सिगमंड फ्रायड के एक शिष्य के पास एक व्यक्ति अप्रिय को प्राप्त होकर उद्वेगवान न हो. ऐसा स्थिर बद्धि, मनस चिकित्सा के लिए आया। उस व्यक्ति ने कहा, मैं बहत संशयरहित, ब्रह्मवेत्ता पुरुष सच्चिदानंदघन परब्रह्म परमात्मा | परेशान हूं। एक स्वप्न मुझे बार-बार आता है। हर रोज, हर रात। में एकीभाव से नित्य स्थित है।
और कभी तो रात में दो-चार बार भी आता है। मैं उस स्वप्न से इतना परेशान हो गया हूं कि कुछ रास्ता खोजने आपके पास आया
हूं। मनोवैज्ञानिक ने कहा, क्या है वह स्वप्न? उस व्यक्ति ने कहा 7 य को जो प्रिय समझकर आकर्षित न होता हो; अप्रिय | कि मैं बहुत हैरानी का सपना देखता हूं। हर रात नींद में, स्वप्न में [ को अप्रिय समझकर जो विकर्षित न होता हो; जो न पहुंच जाता हूं युवतियों के एक छात्रावास में। रोज, नियमित! और
मोहित होता हो, न विराग से भर जाता हो; जो न तो फिर धीरे से फुसफुसाकर कहा कि सारी युवतियां छात्रावास की किसी के द्वारा खींचा जा सके और न किसी के द्वारा विपरीत गति नग्न घूमती मालूम पड़ती हैं! में डाला जा सके-ऐसे स्वयं में ठहर गए व्यक्तित्व को, ऐसी मनोवैज्ञानिक ने कहा, घबड़ाओ मत। क्या तुम चाहते हो, यह स्वयं में ठहर गई बुद्धि को कृष्ण कहते हैं, सच्चिदानंद परमात्मा की स्वप्न बंद हो जाए? उस आदमी ने कहा, आप मुझे गलत समझे। स्थिति में सदा ही निवास मिल जाता है।
मेरा पूरा स्वप्न तो सुन लें। लेकिन जैसे ही मैं दरवाजे में प्रवेश करने इसमें दो-तीन बातें समझ लेने जैसी हैं।
लगता हूं उस छात्रावास के, मेरी नींद खुल जाती है। कुछ ऐसा करें किसे हम कहते हैं प्रिय? कौन-सी बात प्रीतिकर मालूम पड़ती | कि मेरी नींद दरवाजे में प्रवेश करते वक्त खुले न! है? कौन-सी बात अप्रीतिकर, अप्रिय मालूम पड़ती है? और किसी __ स्वभावतः, मनोवैज्ञानिक हैरान हुआ होगा। लेकिन वह आदमी बात के प्रीतिकर मालूम पड़ने में और अप्रीतिकर मालूम पड़ने में ईमानदार रहा होगा। उसने कहा, सपना तोड़ना नहीं चाहता। लेकिन कारण क्या होता है?
सपना पूरा ही नहीं हो पाता। भीतर प्रवेश करता हूं, दरवाजे पर पैर इंद्रियों को जो चीज तृप्ति देती मालूम पड़ती है—देती है या नहीं, रखता हूं कि नींद टूट जाती है। छात्रावास खो जाता है; नग्न यह दूसरी बात-इंद्रियों को जो चीज तृप्ति देती मालूम पड़ती है, युवतियां खो जाती हैं। मनोवैज्ञानिक ने कहा कि हम कुछ कोशिश वह प्रीतिकर लगती है। इंद्रियों को जो चीज तृप्ति देती नहीं मालूम | करें। सपना तोड़ना तो आसान था, लेकिन नींद को बचाना जरा पड़ती, उसके प्रति तिरस्कार शुरू हो जाता है। और इंद्रियों को जो कठिन है, फिर भी कोशिश करें। चीज विधायक रूप से कष्ट देती मालूम पड़ने लगती है, वह । उसे सम्मोहित किया। दो-चार दिन सम्मोहित करके, हिप्नोटाइज अप्रीतिकर हो जाती है। फिर जरूरी नहीं है कि आज इंद्रियों को जो करके उसे सुझाव दिए। चीज प्रीतिकर मालूम पड़े, कल भी मालूम पड़े। और यह भी जरूरी चौथे दिन वह आदमी बहुत क्रोध में आया। आधी रात दरवाजे नहीं है कि आज जो अप्रीतिकर मालूम पड़े, वह कल भी अप्रीतिकर खटखटाए। मनोवैज्ञानिक ने कहा कि इतनी रात आने की क्या मालूम पड़े। आज जो चीज इंद्रियों को प्रीतिकर मालूम पड़ती है, जरूरत? उसने कहा कि बहुत गलत किया तुमने। आज सपना नहीं बहुत संभावना यही है कि कल वह प्रीतिकर मालम नहीं पड़ेगी।
टटा। मैं भीतर भी प्रवेश कर गया। लेकिन मैं वापस चाहता है, वही जब तक कुछ मिलता नहीं, तब तक आकर्षित करता है। जैसे | | सपना ठीक था, जो दरवाजे पर टूट जाता था। ही मिलता है, व्यर्थ हो जाता है। सारा आकर्षण न मिले हुए का | | उस मनोवैज्ञानिक ने कहा, क्यों वापस चाहते हो? उसने कहा
आकर्षण है। दूर के ढोल सुहावने मालूम पड़ते हैं। जैसे-जैसे जाते | | कि कम से कम थोड़ा आकर्षण तो था; अब वह भी नहीं है। अभी हैं पास, वैसे-वैसे आकर्षण क्षीण होने लगता है। और मिल ही | | तक एक आशा तो थी कि कभी यह सपना नहीं टूटेगा। आज नहीं जाए जो चीज चाही हो, तो क्षणभर को भला धोखा हो जाए, मिलने | | टूटा है। लेकिन मिला तो कुछ भी नहीं। वरन मैंने कुछ खोया है। के क्षण में, लेकिन मिलते ही आकर्षण विदा होने लगता है। बहुत | मेरा अधूरा सपना वापस लौटा दो।
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