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| गीता दर्शन भाग-29
बिलकुल झूठे होते हैं। उनसे जो कम झूठे हैं, वे कभी-कभी मिलते हैं। और जो आथेंटिक हैं, उनका कोई मिलन ही नहीं हो पाता । उसका कारण है।
हम दूसरे में वही देखते हैं, जो हमारे भीतर होता है। जो आदमी परमात्मा से तदरूप हो जाएगा, वह अपने चारों ओर परमात्मा को देखना शुरू कर देगा। इसके अलावा उपाय नहीं बचेगा। उपाय नहीं है फिर । देखेगा ही। क्योंकि जब भीतर परमात्मा दिखाई पड़ेगा, तो आपकी आंखों के पार भी परमात्मा दिखाई पड़ेगा। जब अपनी हड्डी के पार परमात्मा दिखाई पड़ेगा, तो दूसरे की हड्डी में भी छिपा वही दिखाई पड़ेगा। जब अपनी देह के भीतर उसका मंदिर मालूम पड़ेगा, तो दूसरे की देह के भीतर भी उसका मंदिर मालूम पड़ेगा। इसलिए कृष्ण कहते हैं, सब में वह परमात्मा को देखना शुरू कर देता है।
हम तो अपने में ही नहीं देखते, तो दूसरे में देखने की तो बात बहुत मुश्किल है! सारी यात्रा अपने ही घर से शुरू करनी पड़ती है। अभी तो मुझे अपने में ही पता न चलता हो कि परमात्मा है, तो मैं आपमें कैसे देख सकूंगा? अपने भीतर तो पता चलता है, चोर है, बेईमान है। तो मैं दूसरे में भी चोर और बेईमान ही देख सकता हूं। पढूंगा मैं, किताब आपकी होगी, लेकिन पढूंगा वही, जो मैं पढ़ सकता हूं। अर्थ मैं वही निकालूंगा, जो मैं निकाल सकता हूं।
इसलिए इस जगत में हर किताब गलत पढ़ी जाती है, हर आदमी गलत पढ़ा जाता है। पढ़ा ही जाएगा, क्योंकि पढ़ने वाला वही पढ़ सकता है।
बुद्ध ने कहा है – एक रात ऐसा हुआ कि बुद्ध की सभा में, जैसे आज आप यहां इकट्ठे हैं, ऐसे ही हजारों लोग इकट्ठे थे – बुद्ध ने कहा कि सुनो भिक्षुओ, मैं जो कहता हूं, तुम वही नहीं समझोगे । तुम वही समझोगे, जो तुम समझ सकते हो । एक भिक्षु ने खड़े होकर कहा कि यह आप क्या कहते हैं! हम तो वही समझेंगे, जो आप कहते हैं। हम वह कैसे समझेंगे, जो आप नहीं कहते हैं? बुद्ध ने कहा, सुनो, कल रात ऐसा हुआ। कल रात भी तुम आए थे। कल रात एक चोर भी आया था; एक वेश्या भी आई थी। और जब रात अंतिम प्रवचन के बाद... ।
जैसा मैं आपसे कहता हूं कि अब कीर्तन में डूब जाएं, ऐसा बुद्ध कहते थे, अब ध्यान में लग जाएं। लेकिन यह रोज-रोज क्या कहना। तो बुद्ध रोज इतना ही कह देते थे बोलने के बाद कि अब रात का जो आखिरी काम है, उसमें लग जाओ।
तो कल, बुद्ध ने कहा, जब मैंने कहा, अब रात के आखिरी काम में लग जाओ अर्थात ध्यान में चले जाओ, तो भिक्षु तो आंख बंद | करके ध्यान में चले गए। चोर को खयाल आया कि रात काफी हो गई और काम में लगने का वक्त आ गया। और वेश्या को खयाल आया कि उठूं । ग्राहक आने शुरू हो गए होंगे।
बुद्ध ने कहा कि आखिरी काम में लग जाओ। जिसे ध्यान करना था, वह ध्यान में चला गया। जिसे चोरी करनी थी, वह चोरी करने | चला गया। जिसे शरीर बेचना था, वह शरीर बेचने जा चुकी ।
बुद्ध ने कहा, मैंने तो भिक्षुओ, एक ही बात कही थी, लेकिन तीन अर्थ हो गए।
नहीं; हम वही पढ़ लेते, वही समझ लेते, हम वही मान लेते, वही जान लेते, जो हमारे भीतर है। हमारा जगत हमारा प्रोजेक्शन | है। एक - एक आदमी अपनी दुनिया को अपने साथ लेकर चलता है। एक- एक आदमी अपनी दुनिया को अपने साथ लेकर चलता है। कोई भी चीज बाहर घटे, हमें अपनी ही बात याद आती है।
मैंने सुना है कि एक गांव में भूकंप आ गया। भूकंप जैसी चीज ! एक आदमी रास्ते से गुजर रहा है — बहुत लोग गुजर रहे हैं - एक | आदमी रास्ते से गुजर रहा है । भूकंप आया जोर से। मकान कंपने लगे। मकानों से चीजें नीचे गिरने लगीं। दूसरे लोग चिल्लाकर भागे कि हे राम ! मर जाएंगे। उस आदमी ने कहा, हे भगवान! मुझे खयाल आया कि मेरी पत्नी ने मुझे चिट्ठी डालने को दी थी दो दिन पहले, और वह अभी तक मेरे खीसे में रखी है! भूकंप देखकर खयाल आया ! पड़ोस वाले आदमी ने कहा कि तू यह क्या कह रहा है ! भूकंप देखकर तुझे यह खयाल आया कि पत्नी ने चिट्ठी दी थी डालने को, वह अभी तक खीसे में रखी है। उसने कहा कि हां, क्योंकि अगर चिट्ठी नहीं डाली गई है, यह पता चल गया, तो मेरे घर में भूकंप आता है !
वह दूसरा आदमी समझ ही नहीं सका कि भूकंप से और चिट्ठी डालने का क्या संबंध हो सकता है। कोई भी तो संबंध नहीं है, इररेलेवेंट है। लेकिन किसी का हो सकता है। अपने-अपने घर की बात है! अपने-अपने अनुभव की बात है।
भूकंप से खयाल आया घर का कि चिट्ठी अभी तक डाली नहीं | गई। भागा। लोग जान बचाने भागे। वह भी अपनी जान बचाने भागा ! वह चिट्ठी लेकर जल्दी से भागा कि वह चिट्ठी डाल दे।
आदमी के भीतर एक जाल है। उसी जाल से वह सारे जगत को बाहर से नापता - जोखता है। इसलिए जब आपको कोई आदमी चोर
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