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________________ तीन सूत्र-आत्म-ज्ञान के लिए ठीक रास्ते पर पड़ रहे हैं। और पास पहुंचता है, अभी भी बगीचा | | ने कहा कि बस, अब बहुत हो गया! यू हैव फूल्ड मी ट्वाइस। दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन फूलों की सुगंध आने लगती है। तो वह थ्राइस, इट इज़ टू मच टु एक्सपेक्ट! दो दफे तुम मुझे मूर्ख बना सोचता है कि मेरे कदम ठीक रास्ते पर पड़ रहे हैं। चुके। लेकिन तीसरी बार, अब यह जरूरत से ज्यादा है। अब मैं ठीक ऐसे ही, अगर आपके भीतर समता का भाव आने लगे, हिम्मत नहीं कर सकता। उस आदमी ने कहा, मैंने तुम्हें कहां मूर्ख तो आप समझना कि परमात्मा की तरफ कदम पड़ रहे हैं। और बनाया! दो दफे तो मैंने तुम्हें रुपए लौटा दिए। उस आदमी ने कहा अगर विषमता का भाव आने लगे, तो समझना कि कदम विपरीत | कि तुमने लौटा दिए होंगे, लेकिन मैंने दो में से एक भी दफे नहीं पड़ रहे हैं। हवाएं गर्म होने लगें, तो समझना कि बगीचे से उलटे | सोचा था कि तुम लौटाओगे। तुम न लौटाते, तो मैं समझता कि मैं जा रहे हैं। और सगंध की जगह दर्गंध से चित्त भरने लगे. तो होशियार हैं। बात पक्की हो गई। जो मैंने जाना था, वह हो गया। समझना कि बगीचे के विपरीत जा रहे हैं। | तुमने लौटाए, उससे तो मैं मूर्ख बना। मैंने सोचा था, रुपए लौटेंगे इसलिए कृष्ण कहते हैं, समत्व को जो उपलब्ध हो जाए, वही | | नहीं, और तुमने लौटा दिए। एक दफे तुमने मूर्ख बना दिया। फिर उस परमात्मा से भी एक हो पाता है, तदरूप हो पाता है। और जब | | भी दूसरी बार मैंने सोचा था कि रुपए लौटेंगे नहीं। फिर भी तुमने कोई उस परमात्मा से एक हो जाता है, तो हाथी में, घोड़े में, गाय | | मुझे मूर्ख बना दिया। लेकिन अब क्षमा करो। अब बहुत ज्यादा है। में किसी में भी-कृष्ण ने सारे नाम गिनाए, फिर वह परमात्मा तीन बार भरोसा करना बहुत मुश्किल है, उसने कहा कि अब मुझे को ही देखता है। तुम क्षमा कर दो। वह मित्र तो समझ ही नहीं पाया कि बात क्या है। यह दूसरा भी एक महत्वपूर्ण नियम है जीवन का कि हम बाहर अक्सर ऐसा होता है। हम समझ ही नहीं पाते कि बात क्या है। वही देखते हैं, जो हमारे भीतर गहरे में होता है। हम अपने से ज्यादा दूसरा आदमी अपने भीतर से बात करता है, हम अपने भीतर से इस जगत में कभी कुछ नहीं देख पाते। बाहर हम वही देखते हैं, जो बात करते हैं। इसलिए दुनिया में संवाद बहुत कम होते हैं। सब गहरे में हमारे भीतर होता है। अपने भीतर से बात करते हैं। और आप जब बात करते हैं, तो कोई आदमी आपके पास आता है। फौरन देखते हैं कि पता नहीं, | | उससे बात नहीं करते, जो आपके सामने मौजूद है। आप उस इमेज रुपए मांगने तो नहीं आ गया! अभी उसने कुछ कहा नहीं है। से बात करते हैं, जो आप सोचते हैं कि आपके सामने मौजूद है। मैंने सुना है, एक आदमी ने किसी मित्र से रुपए मांगे, सौ रुपए ___ पति कुछ कहता है, पत्नी कुछ समझती है। पत्नी कुछ कहती है, मांगे। चौंककर उस मित्र ने देखा। स्वभावतः, जैसा कि किसी से | पति कुछ समझता है। पत्नी बहुत कहती है, यह मेरा मतलब ही भी रुपए मांगो, जिस तरह वह देखता है, वैसे उसने देखा। सोचा नहीं, तब भी पति कुछ और समझता है। पति बहुत कहता है, यह कि गए। लेकिन सौ रुपए देना उसकी सामर्थ्य के भीतर था। मित्रता | मेरा कभी मतलब नहीं, लेकिन पत्नी फिर भी कुछ और समझती खोनी उसने ठीक नहीं समझी। सोचा, सौ रुपए जाएंगे, यही उचित | | है! बात क्या है? इस दुनिया में संवाद ही नहीं हो पाता। है। सौ रुपए दे दिए। हम वही समझते हैं, जो हम प्रोजेक्ट करते हैं। जब किसी कमरे लेकिन ठीक पंद्रह दिन बाद जो वायदा था, उस दिन, बारह बजे में दो आदमी मिलते हैं, तो वहां दो आदमी नहीं मिलते; वहां छः दोपहर का जैसा वचन था, उस आदमी ने लाकर सौ रुपए लौटा | | आदमी मिलते हैं। कम से कम छः, ज्यादा हो सकते हैं! एक तो मैं, दिए। फिर उसने चौंककर देखा। यह बिलकुल भरोसे के बाहर की जैसा मैं हूं; और एक वह, जिससे मैं मिल रहा हूं, जैसा वह है। ये बात थी। | दो आदमी तो मुश्किल से मिलते हैं। इनका तो कोई मिलन होता ही लेकिन पंद्रह दिन बाद उसने फिर पांच सौ रुपए मांगे। अब उसकी | नहीं, जैसे हम हैं। एक वह जैसा मैं दिखलाने की कोशिश करता हूं हृदय की धड़कन बहुत बढ़ गई। लेकिन फिर भी उसकी सीमा के | कि मैं हूं, और एक वह जैसा वह दिखलाने की कोशिश करता है भीतर था, उसने पांच सौ रुपए दे दिए। और आश्चर्यों का आश्चर्य कि वह है। इनका भी मिलन कभी-कभी होता है। एक वह, जैसा कि वह फिर पंद्रह दिन बाद, ठीक वक्त पर, जो समय तय था, उसने | | मैं समझता हूं कि वह है, और एक वह, जैसा वह समझता है कि लाकर पांच सौ रुपए लौटा दिए। वह और भी चकित हो गया। । | मैं हूं, इन दोनों की मुलाकात होती है। तो छः आदमी! जब दो पंद्रह दिन बाद फिर उस आदमी ने हजार रुपए मांगे। उस मित्र | आदमी मिलें, तो समझ लेना, छः आदमी। उनमें दो जो मिलते हैं, 381
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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