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गीता दर्शन भाग-20
बिलकुल बुद्धिहीन! सिर्फ यही आपको खबर देने के लिए कि बुद्धि | मुश्किल थी। से जो नहीं हो सकेगा, वह बुद्धि को छोड़कर हो पाता है। और यह इसलिए कृष्ण के व्यक्तित्व का जो गहरा रूप है, वह तो उनका भी खबर देने के लिए कि घंटेभर मैंने आपकी बुद्धि को समझाने की | नाचता हुआ, बांसुरी बजाता हुआ रूप है। गीता सुनकर कहीं ऐसा कोशिश की. जिनकी समझ में आ गया होगा, उनको इस नत्य में भी खयाल न हो कि गीता सिर्फ एक दर्शन शास्त्र का विवेचन है. एक समझ में आना चाहिए। और अगर समझ में इसमें न आए, तो उनके | मेटाफिजिक्स है। गीता सुनकर ऐसा भी लगे कि वह एक पास केवल बौद्धिक शब्द पहुंचे और कुछ भी नहीं पहुंचा है। जीवन-संगीत भी है। ऐसा भी लगे कि वह नाचने की एक कला
अगर मेरी बातें समझ में आई हैं, तो आपका हृदय खुलेगा, भी है। नाचना चाहेगा, प्रफुल्लित होगा, प्रमुदित होगा। आप यही सोचते | | इसलिए मैंने जानकर, कंसीडर्डली. पीछे पांच-सात मिनटहुए नहीं जाएंगे कि जो बोला, वह तर्कयुक्त मालूम होता है। आप | पांच-सात मिनट आपके अधैर्य को देखकर; नहीं तो मैं तो चाहता ऐसा अनुभव करते जाएंगे कि जो बोला, वह हृदय को स्पर्शित कि घंटेभर चर्चा हो, तो घंटेभर नृत्य हो। लेकिन आपकी हिम्मत करता मालूम पड़ता है।
बहुत कमजोर है, इसलिए पांच मिनट! पांच मिनट में ही कई की हृदय को स्पर्शित करना और बात है। इसलिए चाहता हूं कि अंत | दम टूट जाती है, वे भागने की तैयारी में हो जाते हैं। उन्हें पता नहीं हृदय की किसी घटना से हो। इसलिए यहां चाहा कि दस मिनट, | कि क्या हो रहा है। उन्हें पता नहीं कि क्या बंट रहा है। उन्हें पता पांच मिनट भूल जाएं विचार को, शब्द को; घंटेभर मैं बोलता हूं, | नहीं कि क्या घटना घट रही है। उसे पांच मिनट प्रेम से देख लें; छोड़ें उसे। शब्द असमर्थ हैं। शब्द की असमर्थता आपको बताना उसे पी जाएं। और मैं आपसे कहता हूं कि जो मेरे समझामे से नहीं चाहता हूं। और यह भी बताना चाहता हूं कि शायद जो मैं न कह हो सका होगा, जो कृष्ण के कहने से नहीं हो सका होगा, वह भी पाया होऊं, जो कृष्ण भी न कह पाए हों, वह इन नाचते हुए उस नृत्य से हो सकता है। संन्यासियों के नत्य से आपको उसकी झलक मिल जाए।
अव्यवस्थित इसलिए कि व्यवस्था का संबंध बद्धि से है। हृदय और ध्यान रहे, अर्जुन नहीं समझ पाया कृष्ण से जितना, उतना का व्यवस्था से कोई संबंध नहीं है। जिस दिन नृत्य व्यवस्थित हो कृष्ण से गोपियां समझ गईं। लेकिन गोपियों को कृष्ण ने कोई गीता | जाता है, बौद्धिक हो जाता है, इंटेलेक्चुअल हो जाता है। एक-एक नहीं कही थी। उनके साथ नाच लिए थे। गोपियों से कोई गीता नहीं | । पद है, एक-एक चाप है। सब इंतजाम है। वह गणित हो जाता है। कही, बांसुरी बजाकर नाच लिए थे किसी वंशी वट में, यमुना के । शास्त्रीय संगीत बिलकुल मैथमेटिकल है। वह गणित है। कहना तट पर। और गोपियां जितना समझीं, उतना अर्जुन नहीं समझ | चाहिए, वह गणित ही है। पाया। अर्जुन को गीता कही है। बड़ा बौद्धिक कम्युनिकेशन है, यह कोई संगीत नहीं है, यह कोई गणित नहीं है। यह तो हृदय बड़ा बुद्धिगत संवाद है।
का उन्मेष है। हृदय के उन्मेष में हिसाब नहीं होता। गणित में दो आपसे मैं भी बुद्धि की बात कहता हूं, लेकिन कृष्ण का और भी और दो चार होते हैं, प्रेम में जरूरी नहीं है। प्रेम में दो और दो पांच गहरा पहल है. वह भी आपसे छट न जाए। गीता पढने वाले लोगों | भी हो सकते हैं। प्रेम के पास हिसाब नहीं है। ये तो प्रेम में आए से अक्सर छूट जाता है। कृष्ण सिर्फ गीता कहने वाले कृष्ण ही नहीं | | हुए संन्यासी हैं, वे नाच रहे हैं। हैं, कृष्ण नाचने वाले कृष्ण भी हैं। और वह उनका असली, और | मुझे कहा किसी ने कि इनको थोड़ी ट्रेनिंग दे देनी चाहिए कि ये ज्यादा गहरा, और ज्यादा महत्वपूर्ण रूप है।
| थोड़ा ढंग से नाचें। तो ट्रेनिंग से नाचने वाले तो सारी दुनिया में बहुत गीता न भी कही होती, तो कोई और भी कह सकता था, यह मैं | हैं; कोई कमी है! सो तो आप जाकर थिएटर में देख आते हैं; सब आपसे कहता हूं। गीता बुद्ध भी कह सकते हैं, महावीर भी कह ट्रेनिंग से नाच चल रहा है। लेकिन ट्रेनिंग से जब कोई नाचता है, सकते हैं, क्राइस्ट भी कह सकते हैं। अगर कृष्ण ने गीता न कही | तो शरीर ही नाचता है; हृदय नहीं नाचता। ट्रेनिंग से कहीं नाच हुए होती, तो कोई और कह सकता था। लेकिन अगर कृष्ण न नाचे | हैं? हां, नाच हो जाएगा, लेकिन वह वेश्या का होगा, अभिनेता का होते, तो न बुद्ध नाच सकते, न महावीर नाच सकते, न जीसस नाच | होगा, एक्टर का होगा, एक्ट्रेस का होगा। संन्यासी का नहीं होगा। सकते। वह अधूरा रह गया होता। वह बात और किसी से होनी संन्यासी के नृत्य में कुछ भेद है। वह नृत्य नहीं है, वह हृदय का
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