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• अहंकार की छाया है ममत्व
जाएगा। नृत्य से शुरू भी करेगा, थोड़ी देर में नृत्य खो जाएगा। तो चलता ही रहता है! तो मैं उससे कहता हूं, पहले खूब चला लो। अंततः वह गिर पड़ेगा, चुप हो जाएगा, मौन में डूब जाएगा। चिल्लाओ जोर से। रोओ, कूदो, नाचो, गाओ। खूब चला लो।
बहिर्मुखी नृत्य की चरम स्थिति में जो अनुभव करेगा, वही | | इतना चला लो कि तुम्हारा चलने का जो मन है, उसको पूरी-पूरी अंतर्मुखी गिरकर, बिलकुल मुर्दे की भांति पड़कर अनुभव करेगा। | तृप्ति मिल जाए। उसी तृप्ति के मार्ग से पहुंचो वहां, जहां चलना दोनों अपनी-अपनी यात्रा पर निकल जाएंगे।
ठहर जाता है। और मेरी अपनी समझ ऐसी है कि भविष्य के लिए ऐसी विधियां | | मेरी पद्धति में बहिर्मुखी अंतर्मुखी दोनों के लिए समान प्रवेश है। खोजी जानी चाहिए, जो विधियां दोनों के लिए उपयोगी हो सकें | ये जो अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के मार्ग हैं, ये कोई विपरीत
और जिस भांति का व्यक्ति भी उसमें प्रवेश करे, वह अपने लिए मार्ग नहीं हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों के लिए एक ही जगह द्वार खोज ले।
पहुंचा देने वाले मार्ग हैं। यह कीर्तन है। इसमें अंतर्मुखी थोड़ी ही देर में गाना छोड़ देगा, नाचना छोड़ देगा, डूब जाएगा, खो जाएगा कहीं। बहिर्मुखी नाच में गहरा चला जाएगा, और इतना गहरा चला जाएगा, आखिर में प्रश्नः भगवान श्री, इस गीता ज्ञान यज्ञ से नाचने-गाने नाच ही बचेगा, नाचने वाला खो जाएगा। तब फिर वह भी वहीं का क्या संबंध है, इसे और स्पष्ट कीजिए। और इस पहुंच जाएगा, जहां वह नाच खो गया और एक आदमी शून्य हो संकीर्तन में नाचना अस्तव्यस्त, डिसआर्डरली और गया। फिर नाच ही रह गया और नृत्य करने वाला खो गया, वह मनमाना क्यों है, इसे भी साफ करें। भी भीतर शून्य हो गया। दोनों की परम स्थिति एक हो जाएगी। लेकिन दोनों एक ही विधि से प्रवेश कर पा सकते हैं।
ठीक ऐसा ही मेरा ध्यान भी है। उसमें तीन चरण एक्सट्रोवर्ट हैं। मनभावतः, ऐसा खयाल और मित्रों को भी उठा। उन्होंने पहले चरण में गहरी श्वास है, वह बहिर्मुखी के लिए बड़ी उपयोगी रप भी मुझे पूछा है कि गीता ज्ञान यज्ञ से कीर्तन का, धुन है। दूसरे चरण में नृत्य है, कूदना है, चिल्लाना है, वह भी बहिर्मुखी ____का, नृत्य का क्या संबंध? और फिर नृत्य भी हो, तो के लिए बड़ा उपयोगी है। तीसरे चरण में, मैं कौन हूं, इसकी | | व्यवस्थित हो, तालबद्ध हो! डिसआर्डरली, अव्यवस्थित, अराजक, इंक्वायरी, जिज्ञासा है। जोर से पूछना है, मैं कौन हूं। वह भी | | केआटिक, इसका क्या मतलब है? बहिर्मुखी के लिए बहुत उपयोगी है। और चौथे में बिलकुल मौन | | इसका मतलब है। हो जाना है।
एक तो मैं आपको यह जाहिर कर दूं कि जो गीता मैं समझा रहा पूछेगे आप कि चार चरणों में एक रखा सिर्फ अंतर्मुखी के लिए, | हूं, आप समझने से ही समझ लेंगे, ऐसा मेरा भरोसा नहीं। समझने तीन रखे बहिर्मुखी के लिए? क्योंकि मैं कहता हूं कि आज का युग से केवल बुद्धि तक बात पहुंचती है, हृदय तक नहीं पहुंचती। और बहिर्मुखी है। सौ आदमी करने आएंगे, तो मुश्किल है कि पच्चीस गीता जिसे समझनी हो, वह अगर सिर्फ बुद्धि से समझने चलेगा, भी अंतर्मुखी हों, पचहत्तर तो बहिर्मुखी—निन्यानबे की संभावना तो पंडित तो हो जाएगा, ज्ञानी नहीं हो पाएगा। इंटलेक्ट बता सकती है बहिर्मुखी होने की और एक की अंतर्मुखी होने की। उसके लिए है, क्या अर्थ है। विश्लेषण कर सकती है। तोड़-तोड़कर तर्क भी जगह बना रखी है।
व्यवस्था दे सकती है, लेकिन हृदय को छूती नहीं। तर्क से हृदय के इसलिए अंतर्मुखी व्यक्ति जब मेरे पास आता है, तो वह कहता | | फूल खिलते नहीं। और न ही तर्क और बुद्धि से हृदय की वीणा की है, सांस लेते बनती ही नहीं; नाचते बनता ही नहीं; पूर्वी किससे? | झंकार पैदा होती है। कौन पूछे? कौन पूछे, मैं कौन हूं! वह कहता है, हमें तो सीधा चौथे। जानता हूं भलीभांति कि आज की दुनिया में कोई उपाय नहीं है में जाना अच्छा लगता है। मैं उसको कहता हूं, चौथे में चले जाओ। कि आपसे बुद्धि के द्वारा कहा जाए। बुद्धि से कहना पड़ेगा,
लेकिन बहिर्मुखी व्यक्ति से कहें कि चुपचाप बैठ जाओ; वह इसलिए घंटे सवा घंटे आपके साथ बुद्धि के साथ मेहनत करता हूं कहेगा, मुश्किल मालूम पड़ता है। कैसे चुपचाप बैठे जाएं? कुछ आपकी। और आखिर में बिलकुल निर्बुद्धि एक काम करवाता हूं।
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