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गीता दर्शन भाग-20
अभी तक इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाए कि वे मुझसे कह दें कि कहीं | प्रश्नः भगवान श्री, आपने पिछली चर्चा में कहा है नहीं पहुंचा। इतना कमजोर है आदमी! एक दफा मुझसे कह दें, | | कि प्रार्थना बहिर्मुखी लोगों की साधना है और ध्यान झंझट मिट जाए। मैं तो नहीं छोडूंगा। मैं तो जब भी जाता हूं, पहले अंतर्मुखी लोगों की साधना है। तब तो आज के इस उनके घर पहुंचता हूं कि अब बता दें। एक साल और बीत गया। बहिर्मुखी युग को प्रार्थना की साधना में ले जाना
अभी तक मेरी समझ में नहीं आया कि आप कहां पहुंचे थे। चाहिए। लेकिन आप तो ध्यान का आंदोलन चलाते ___ वह आदमी शक्तिशाली है, जो कमजोरी को स्वीकार कर लेता | | हैं! आपकी नई ध्यान पद्धति अंतर्मुखी व बहिर्मुखी है, क्योंकि तब कमजोरी के पार हुआ जा सकता है। सकाम दौड़ता | | व्यक्तित्व के लिए किस ढंग से संबंधित है? इन दोनों है बहुत, पहुंचता कहीं भी नहीं है, सिवाय दुख के। निष्काम कहीं बातों पर प्रकाश डालें। भी नहीं पहुंचना चाहता है, और जहां खड़ा होता है, वही से पहुंच जाता है।
तो यह मत सोचना आप कि निष्काम व्यक्ति को फल नहीं | निश्चित ही, ध्यान अंतर्मुखी व्यक्ति की यात्रा रही है और मिलता। निष्काम को ही फल मिलता है। लेकिन निष्काम फल IUI प्रार्थना बहिर्मुखी व्यक्ति की यात्रा रही है। लेकिन चाहता नहीं। वह कर्म को पूरा कर लेता है और चुप रह जाता है। ध्यान के हजारों मार्ग संभव हो सकते हैं और प्रार्थना परमात्मा पर छोड़ देता है।
के भी हजारों रूप संभव हो सकते हैं। और ऐसा भी नहीं है कि इतने भरोसे से जो समर्पण कर सकता है परमात्मा पर, वह अगर | | ध्यान के जितने रूप आज तक रहे हैं, उनसे और ज्यादा रूप नहीं निष्फल चला जाए, तो इस पृथ्वी पर धर्म की फिर कोई जगह नहीं | | हो सकते। और ऐसा भी नहीं है कि जितनी प्रार्थनाओं की पद्धतियां है। जो इतने भरोसे से परमात्मा पर छोड़ देता है कि करूंगा मैं और अब तक खोजी गई हैं, उससे और ज्यादा पद्धतियां नहीं खोजी जा सो जाऊंगा, फल तेरे ऊपर रहा। अगर वह भी निष्फल चला जाए, | सकती हैं। तो फिर इस पृथ्वी पर धर्म की कोई भी जगह नहीं है। ___ मैं जिस ध्यान की पद्धति की बात करता हूं, वह बहुत गहरे अर्थों
लेकिन वह कभी निष्फल नहीं गया। इसलिए धर्म का कितना ही में दोनों का जोड़ है। मैं जिसे ध्यान कहता हूं, वह दोनों का जोड़ ह्रास होता चला जाए, धर्म मर नहीं सकता। और धर्म का कितना | है। उसमें तीन हिस्से बहिर्मुखी व्यक्ति के लिए हैं और चौथा हिस्सा ही विरोध होता रहे, कोई न कोई उसे फिर जगा लेता है, फिर | | अंतर्मुखी व्यक्ति के लिए है। जो तीन हिस्से उस ध्यान के कर लेगा पुनरुज्जीवित कर देता है।
बहिर्मुखी व्यक्ति भी, वह भी वहीं पहुंच जाएगा, जहां अंतर्मुखी जिसको भी जिंदगी में इस राज का पता चल जाता है कि बिना व्यक्ति पहुंचता है। और अंतर्मुखी व्यक्ति को पहले तीन हिस्सों को मांगे मिलता है और मांगने से नहीं मिलता, वही व्यक्ति धार्मिक हो | | करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी, वह पहले ही हिस्से से चौथे में जाता है। और जब तक आपको इस सीक्रेट का पता नहीं है, आप छलांग लगा जाएगा। चाहे हिंदू हों, चाहे मुसलमान, चाहे जैन, चाहे ईसाई, चाहे आप | | ध्यान की ऐसी प्रक्रिया संभव है, जिसमें बहिर्मुखी और अंतर्मुखी कोई भी हों; मंदिर जाते हों, मस्जिद जाते हों-कुछ भी न होगा। | | दोनों के लिए द्वार खोजा जा सके। और प्रार्थना भी ऐसी खोजी जा
जिस दिन आपको यह पता चल जाएगा कि जो नहीं मांगता, उसे | सकती है, जिसमें अंतर्मुखी और बहिर्मुखी दोनों के लिए द्वार खोजा मिलता है। जो प्रभु पर छोड़ देता है, वह पा लेता है। और जो अपने जा सके। ही हाथ में सब कुंजी रखता है, वह सब गंवा देता है। जब तक ___ उदाहरण के लिए, आपने यहां कीर्तन देखा है। इस कीर्तन में आपको इसका पता नहीं है। तब तक आपकी जिंदगी में धर्म का | | अंतर्मुखी भी सम्मिलित हो सकता है, बहिर्मुखी भी सम्मिलित हो अवतरण नहीं हो सकता है।
सकता है। लेकिन थोड़ी ही देर में फर्क पड़ने शुरू हो जाएंगे। ___ इस सूत्र में कृष्ण ने धर्म की बुनियादी 'की', कुंजी की बात कही | | बहिर्मुखी नृत्य में गहरा बढ़ता चला जाएगा। उसकी आवाज प्रकट
| होने लगेगी, उसका गीत झरने लगेगा, उसका नृत्य बढ़ने लगेगा। | अंतर्मुखी अगर गीत से शुरू भी करेगा, थोड़ी देर में गीत खो
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