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________________ अहंकार की छाया है ममत्व जो सकाम जीता है, उसे फल कभी नहीं मिलता। और जो | | पहुंचे, अब पहुंचे। कहीं पहुंचते नहीं। चक्कर खाकर नीचे गिर निष्काम जीता है, उसके जीवन पर प्रतिपल फल की वर्षा होती है! पड़ते हैं। और लकड़ी के घोड़े की चकरी पर से तो उतरकर अपने लेकिन बड़ा उलटा नियम है जिंदगी का। जो मांगता है, वह भिखारी | | घर वापस लौट आते हैं; लेकिन जिंदगी की चकरी से जब चक्कर की तरह मांगता रहता है, उसे कभी नहीं मिलता। और जो नहीं | खाकर गिरते हैं, तो कब्र में वापस पहुंचते हैं; घर-वर नहीं पहुंचते। मांगता, वह सम्राट की तरह खड़ा हो जाता है और सब उसे मिल | - जिंदगीभर कामना दौड़ाती है-लकड़ी के घोड़े ही हैं; कहीं जाता है। | पहुंचाते नहीं-दौड़ाती है। शायद आपको खयाल न हो, यह जीसस ने कहा है, जो बचाएगा, वह खो देगा; और जो खो संस्कृत का शब्द संसार बहुत अदभुत है। इसका मतलब होता है, देगा, वह पा लेगा। |चक्कर, दि व्हील। वह जो भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर व्हील बना अजीब-सी बात कही है! जो बचाएगा, वह खो देगा। हम सब | । हुआ है, वह नेहरू को पता नहीं था, नहीं तो वे कभी न बनाते। बचा रहे हैं। आखिर में खाली, शून्य हाथ में रह आएगा। और जो | उनको पता नहीं था कि वह बुद्ध का प्रतीक है। और अशोक ने खो देगा, वह पा लेगा। उससे फिर कुछ छीना नहीं जा सकता है। | अपने स्तंभ पर खुदवाया था इसलिए कि यह संसार चकरी की तरह कृष्ण की बात को भी ठीक से समझ लें। वे कहते हैं, दो तरह है। इस पर बैठकर घूमते रहोगे सदा, पहुंचोगे कहीं नहीं। उनको के लोग हैं। एक कामना से जीने वाले, सकामी। कुछ भी करेंगे, | पता नहीं था, नहीं तो वे कभी न बनवाते, क्योंकि दिल्ली में तो सिर्फ पहले पक्का कर लेंगे, फल क्या मिलेगा! प्रेम तक करने जाएंगे, | चकरी वाले ही लोग इकट्ठे होते हैं। जिनको अपने गांव छोटे पड़ते तो पहले पक्का कर लेंगे, फल क्या मिलेगा! प्रार्थना करने जाएंगे, | हैं, उनको जरा बड़े घोड़े चाहिए। दिल्ली में काफी सरकस चलता तो पहले पक्का कर लेंगे कि फल क्या मिलेगा। फल पहले. फिर है बड़े घोड़ों वाला। उस पर बैठकर वे चक्कर खाते रहते हैं। पांच कुछ कदम उठाएंगे। इन्हें फल कभी नहीं मिलेगा। मेहनत ये बहुत | | साल के बाद फिर जनता से कहते हैं कि हमें पहुंचाओ; हमें फिर करेंगे। दौड़ेंगे बहुत, पहुंचेंगे कहीं भी नहीं। इनकी हालत चक्कर खाना है! करीब-करीब वैसी होगी...।। __यह पूरा का पूरा संसार सकाम चक्कर है, ए व्हील आफ मुझे याद आता है कि मेरे गांव के पास वर्ष में कोई दो-तीन बार | डिजायरिंग। बस, इच्छा होती है, यह मिल जाएगा, यह मिल मेला भरता था। और बचपन से ही एक बात मेरी समझ में कभी भी | जाएगा। चक्कर लगा लेते हैं, मिलता कभी कुछ नहीं है। मरते हुए नहीं आई कि उस मेले में लकड़ी के घोड़ों की चकरी लगती थी। | आदमी से पूछो कि क्या मिला? और जितने भी लोग जाते, उस पर बैठते; पैसे खर्च करते; उस मैंने उस शिक्षक से पूछा था, कहां पहुंचे? वे चौंककर खड़े हो चक्कर में गोल चक्कर खाते। बच्चे चक्कर खात थे, तो ठीक। एक गए। उन्होंने मुझसे उलटा ही कहा। उन्होंने कहा कि अभी तुम न दिन मैंने देखा कि मेरे स्कूल के शिक्षक भी उस पर बैठकर चक्कर | | समझ सकोगे, तुम्हारी उम्र कम है। खा रहे हैं! मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने जाकर उनसे पूछा-काफी | | उन्होंने मुझसे कहा, अभी तुम न समझ सकोगे, तुम्हारी उम्र कम चक्कर वे ले चुके, उनकी जेब के सब पैसे खाली हो गए उस है। मैं अभी तक नहीं समझा। अभी भी गांव जाता हूं, तो उनके पास चक्कर में-मैंने उनसे पूछा कि आप पहुंचे कहां? चले तो बहुत। जाता हूं कि अब जरा मेरी उम्र तो काफी हो गई, अब समझा दें। उन्होंने कहा, पहुंचे! लकड़ी के घोड़े पर बैठकर चकरी में घूम रहे | | उस चकरी पर आप बैठे थे, कहां पहुंचे? अब मुझसे इस बार मैं हैं। पहुंच कहीं भी नहीं रहे, सिर्फ चकरा रहे हैं। गया, तो वे कहने लगे, छोड़ो भी उस बकवास को। तीस साल हो __ अनेक को उतरकर चक्कर खाते देखा। किसी को वामिट होते | | | गए! मैंने कहा, उस वक्त आपने कहा था कि उम्र कम है। अब देखी। समझ में मेरे कभी न आया कि यह हो क्या रहा है। लेकिन | तीस साल...। कब? कहीं ऐसा न हो कि दुबारा मैं आऊं और आप अब धीरे-धीरे समझ में आता है कि वह मेले की चकरी तो बहुत | न बचें, क्योंकि आपकी उम्र अब अस्सी साल होती है। मुझे कब छोटी है, उस पर तो कभी कोई बैठता है। संसार की चकरी पर सब | बताइएगा कि आप पहुंचे कहां थे उस चकरी पर बैठकर! बैठे रहते हैं। कहीं पहुंचते नहीं। हालांकि हर पल लगता है कि अब | वे मुझे देखते हैं कि डर जाते हैं। वे समझते हैं कि मैं आया, वह पहुंचे, अब पहुंचे! घोड़ा बढ़ता ही चला जाता है। लगता है, अब | चकरी का सवाल उठेगा। एक दफा मैंने उनको बैठा देख लिया! |347
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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