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________________ ॐ सत्य एक–जानने वाले अनेक ® वह तस्वीर होगी। अर्थ है, वह मैं आपको कहूं। सत्य के लुप्तप्राय होने का यही अर्थ है कि कितना ही लुप्त हो __ पहला तो यह, जो भी ऋषि होता, वह राजा हो जाता है। राजा जाए, फिर भी असत्य नहीं हो जाता है। सत्य की फीकी प्रतिध्वनि | ऋषि हो जाता है, ऐसा नहीं। जो भी ऋषि हो जाता है, वह एक तरह उसमें शेष रहती है। जो जानते हैं, वे उस प्रतिध्वनि को पुनः | की बादशाहत पा लेता है। जो भी ऋषि हो जाता है, वह राजा हो ही पहचान सकते हैं। जो जानते हैं, वे उस प्रतिध्वनि की प्रत्यभिज्ञा जाता है। कर सकते हैं। सच तो यह है कि बिना ऋषि हुए राजा होने का सिर्फ धोखा होता है, राजा कोई होता नहीं। बिना ऋषि हुए तो भिखारी ही होते हैं, राजा भी। पात्र बड़ा होता है भिक्षा का, इसलिए सबको दिखाई नहीं प्रश्न: भगवान श्री, दो बातें समझनी हैं। आपने सत्य पड़ता; बहुत बड़ा पात्र होता है, इसलिए दिखाई नहीं पड़ता। या शब्द का उपयोग किया है और प्रथम दो श्लोक में इसलिए भी दिखाई नहीं पड़ता कि बाकी भिखारी जरा छोटे भिखारी योग शब्द का उपयोग है। कृपया योग शब्द की होते हैं। भिखारियों में भी हायरेरकी होती है! छोटे भिखारी, बड़े परिभाषा व अर्थ समझाएं। और दूसरी बात, ऋषि भिखारी, पहुंचे हुए भिखारी! ऐसी उनकी हायरेरकी होती है। शब्द के साथ राज शब्द भी जुड़ा हुआ है। ऋषि के तो राजा जो है, वह भिखारियों के ऊपर सबसे ऊपर है, बदले राजर्षि शब्द का क्या विशेष अर्थ है? | भिखारियों की धारा में सबसे ऊपर है। पद उसका भिखारियों में परम है। इसलिए भिखारियों की बड़ी दुनिया में राजा भी राजा | मालूम पड़ता है; है तो भिखारी ही। जहां तक मांग है, वहां तक 1 त्य है अनुभूति; योग है अनुभूति की प्रक्रिया। सत्य है | | भिखारीपन है; जहां तक हम कुछ मांगते हैं और चाहते हैं, वहां तक रा दर्शन; योग है द्वार। सत्य जाना जाता है; जिससे जाना | भिखारी हैं। जाता है, वह है योग। योग और सत्य एक ही सिक्के | स्वामी राम अमेरिका गए, तो वे अपने को बादशाह ही कहते के दो पहलू हैं। जिस मार्ग से यात्रा करनी पड़ती है, वह है योग; थे। वे जब भी बोलते थे, तो वे राम बादशाह कहते थे-खुद को और जिस मंजिल पर मार्ग पहुंच जाता है, वह है सत्य। और मंजिल ही। वे कहते थे कि आज राम बादशाह किसी के घर भोजन करने और मार्ग अलग-अलग नहीं हैं। मंजिल मार्ग का ही आखिरी छोर | गए थे। अमेरिका का तत्कालीन राष्ट्रपति राम से मिलने आया था। है; मार्ग मंजिल की ही शुरुआत है। पहला कदम भी आखिरी कदम उसे बड़ा हास्यास्पद लगा यह कि एक फकीर, जिसके पास कुछ है, क्योंकि पहला कदम आखिरी कदम का प्रारंभ है। और आखिरी | भी नहीं है, वह अपने को बादशाह कहे! तो उसने पूछा कि मुझे कदम भी पहला कदम है, क्योंकि पहले कदम के बिना आखिरी | थोड़ी हैरानी होती है। और सब तो ठीक है, लेकिन यह बादशाह कदम हो नहीं सकता है। आप अपने को क्यों कहते हैं? इसलिए मैंने सत्य की बात कही, समझनी ज्यादा आसान | तो राम ने कहा, इसलिए कि अब ऐसी कोई भी चीज नहीं है, होगी। और योग की बात जानकर छोड़ी, क्योंकि आगे योग के | जिसकी मांग मेरे भीतर बची हो। अब मैं भिखमंगा नहीं हूं। अब संबंध में बहुत बात आएगी और तब योग को विस्तार से समझा | ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे तुम मुझमें लालच पैदा कर सको, जा सकता है। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमें मुझे तुम लोभ में फंसा सको। इसलिए दूसरी बात पूछी है, राजऋषि कहा है। अपने को बादशाह कहता हूं। और इसलिए भी अपने को बादशाह साधारणतः जो गलत अर्थ प्रचलित है, वह तो यही है कि अगर | | कहता हूं कि जिस दिन से अपना खयाल छोड़ा, उस दिन से सभी कोई राजा ऋषि हो जाए, तो राजऋषि है। गलत है अर्थः प्रचलित | अपना हो गया है। जिस दिन से यह खयाल छूटा कि मेरा है यह, है जरूर। सच तो यह है कि जो भी प्रचलित होता है, उसके सौ में | | उसी दिन से तेरा का खयाल भी विदा हो गया। सारी दुनिया अब निन्यानबे मौके गलत होने के होते हैं। प्रचलित होने के कारण ही मेरी है। चांद-तारे मेरे हैं। अब सब मेरा है, क्योंकि अब कुछ भी गलत होने के मौके होते हैं। राजऋषि का मेरे लिए तीन दिशाओं से मेरा नहीं है।
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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