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________________ गीता दर्शन भाग-20 आखिरी एक्सट्रीम पर गया हुआ बहिर्मुखी होगा, तो लौट सकता है। को क्यों फंसाते हो? तुम्हारा काम, तुम जानो! बूढ़ा आदमी हूं, मुझे अंत पर पहुंच गया हो, जो भी पाने जैसा था पा लिया हो, और फिर | दो रोटी देते हो, इतना तुम्हारा कर्तव्य है बेटे होने की तरह। सब जमीन पर गिरकर मिट्टी में मिल जाए। तो ऐसा आदमी-अब सारा भवन गिर गया उसका। सारी हत्याएं आंख के सामने खड़ी आगे तो कोई उपाय बचता नहीं—पीछे लौट जाता है। | हो गईं, सारे डाके। जिनके लिए किए थे, वे भागीदार बनने को राजी लेकिन अगर पूरा बहिर्मुखी न हो, पचहत्तर परसेंट हो, तो अभी | नहीं हैं ! लौट पड़ा। आदमी बदल गया। कोई सोच नहीं सकता था, पच्चीस परसेंट आगे यात्रा बाकी रहती है। वह सोचता है, कोई बात | इस डकैत और लुटेरे से रामायण का जन्म होगा। लौट गया नहीं। इस मध्यावधि चुनाव में नहीं आए, कोई फिक्र नहीं। डेढ़ साल | | बिलकुल। बात ही खतम हो गई। वह जिस साधु से उसको संदेश और रुक जाओ। और रुक जाओ, डेढ़ साल और प्रतीक्षा करो। मिला था, वह साधु तो पीछे पड़ गया होगा, वाल्मीकि और भी फिर एक दांव लगाया जाए। अभी मोरारजी तक नहीं थके हैं। अभी आगे निकल गया। डेढ़ साल के बाद दांव लगाने की आकांक्षा है! बहिर्मुखता अगर | क्या हुआ? एक दुर्घटना। एक ऐसा धक्का, जिसमें सारा पूरी हो, तो भी किसी बड़ी दुर्घटना के क्षण में-दुर्घटना के क्षण | मकान जिस बुनियाद पर खड़ा था, वह ढह गया। कभी ऐसा में व्यक्ति सब छोड़ देता है, कि ठीक है, जाने दो। मिट्टी हो गया कनवर्शन...। जो किया। ठीक उलटे पर लौट जाता है। इसी को मैं कनवर्शन कहता हूं। हिंदू मुसलमान हो जाए, इसको इसलिए कभी कोई वाल्मीकि गहन पाप करते-करते क्षणभर में | | मैं कनवर्शन नहीं कहता। यह निपट नासमझी है। ईसाई हिंदू हो संत हो जाता है। बहिर्मुखी है पूरा; अंतर्मुखी हो जाता है। एक गहन | | जाए, यह पागलपन है। इसमें कोई मतलब नहीं है। ये सब घटना घट गई, एक बहुत बड़ा शॉक, जो सोचा भी नहीं था। | पोलिटिकल स्टंट हैं कि कोई हिंदू को ईसाई बनाता रहे; कोई ईसाई वाल्मीकि को खयाल न था। वाल्मीकि तो बाद में हुए। तब तो | | को हिंदू बनाता रहे। कोई आर्यसमाजी किसी को शुद्ध करे; कोई उनका नाम बाल्या भील था। काम था, डकैती, हत्या। | किसी को अशुद्ध करे। यह सब पागलपन है। एक साधु को लूट लिया। पर उस साधु ने कहा कि तुम इतना | | एक ही कनवर्शन है, और वह कनवर्शन है, संसार से चित्त हट उपद्रव, इतनी लूट-खसोट, यह सब करते हो। किसके लिए? मुझे | जाए और परमात्मा की तरफ चला जाए। एक ही रूपांतरण है, और मारना जरूर। रस्सी से बांधकर एक वृक्ष से कस दिया। कहा, । कोई रूपांतरण नहीं है। ऐसे क्षणों में कभी होता है कि बहिर्मुखी मारना जरूर। लेकिन इतना जवाब तो दे दो! क्योंकि मेरा तो काम | | एकदम अंतर्मुखी हो जाता है। लेकिन यह कभी-कभी होता है। पूरा हो गया, साधु ने कहा, मेरे मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता। | मुश्किल से होता है। इसका हिसाब नहीं रखना चाहिए। यह लेकिन इतना तो बता दो कि यह करते किसलिए हो? उसने कहा, | | एक्सेप्शनल है, अपवाद है। इसको नियम नहीं बनाना चाहिए। अपने घर वालों के लिए। तो उस साधु ने कहा, मुझे यहां बांध | नियम तो यही है कि आप जो हैं, उसका ही उपयोग करके धर्म की जाओ और जरा घर वालों से पूछकर आओ कि इस हत्या का जो | | यात्रा पर निकलें। प्रतीक्षा न करें कि अंतर्मुखी हो जाएंगे, तब। फल होगा, उसके लिए वे बंटाने को राजी हैं? भागीदार होंगे? ___ इसमें एक-दो बातें और खयाल में ले लें। आदमी शांत और सीधा मालम पडता था। मरने को तैयार था।। साधारणतः आदमी बीच में होते हैं, न पूरे अंतर्मुखी होते हैं, न भागता नहीं था। सीधा बंधकर खड़ा हो गया था। बाल्या ने सोचा, पूरे बहिर्मुखी होते हैं; मीडियाकर होते हैं। इनकी बड़ी तकलीफ पूछ लूं। हर्ज क्या है! लौटकर घर जाकर पत्नी से पूछा कि मैं इतनी होती है। इनकी जिंदगी में सब कुछ कुनकुना, ल्यूकवार्म होता है। . इतने डाके डालता है। कल अगर इसके फल में न तो इतना उबलता कि भाप बन जाए. न इतना ठंडा होता कि बर्फ मुझे नर्क जाना पड़े, तो कौन-कौन मेरे साथ चलेगा? पत्नी ने कहा, | | बन जाए। बस कुनकुना रहता है। दोनों तरफ यात्रा हो सकती है। यह तुम जानो। यह तुम्हारा काम! इससे हमारा क्या लेना-देना? | | | पानी बहुत ठंडा हो जाए, तो बर्फ हो जाता है; पानी नहीं रह जाता। हमें तो तुम पत्नी बनाकर घर ले आए हो। दो रोटी दे देते हो, काफी | | | उबल जाए, भाप बन जाए, तो फिर पानी नहीं रह जाता। लेकिन है। तुम कहां से रोटी लाते हो, यह तुम जानो। तुम कैसे रोटी लाते कुनकुना बना रहे-न इधर, न उधर-वह पानी ही बना रहता है। हो, यह तम्हारा काम है। पिता से पूछा। पिता ने कहा कि मुझ बूढ़े न कभी वह सौ डिग्री तक पहंचता है कि भाप बनकर उड़ जाए हत्याएं 336
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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