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________________ मन का ढांचा-जन्मों-जन्मों का बच्चा अगर पूछने लगे, अगर सभी को मर जाना है, तो फिर इस | स्थायी है। और जिंदगी का आखिरी पड़ाव मौत है। जो आखिरी सब दौड़-धूप का क्या फायदा? पड़ाव को सम्हाल लेता है, वही आगे की यात्रा को सम्हालता है। लेकिन मां-बाप अपने बच्चे के कंधे पर यात्रा करना चाहते हैं और जो यहां बीच की व्यर्थ की बातों को सम्हाल रहा है, वह कुछ लंबी। वह श्रवण के अंधे मां-बाप ने तो तीर्थयात्रा की थी, बाकी सम्हाल नहीं पाता, सिर्फ समय को खोता है। इसलिए हम बहिर्मुखी सब मां-बाप भी अपने बच्चों पर धन की, यश की यात्रा करना | हो जाते हैं। चाहते हैं। सभी अंधे यात्रा करना चाहते हैं। वह कोई श्रवण के | लेकिन जो बहिर्मुखी है, आज अगर हम उसे चाहें कि वह मां-बाप करना चाहते थे, ऐसा नहीं। सभी अंधे यात्रा करना चाहते | | अंतर्मुखी हो जाए, तो बहुत कठिन है। जन्मों की यात्रा है उसकी हैं। फिर भी उन्होंने बेचारों ने तीर्थयात्रा की थी। सभी मां-बाप अपने | बहिर्मुखता की। अगर हम कहें कि तू अंतर्मुखी हो जा, तो वह बच्चों के कंधों से यात्रा करना चाहते हैं, इसलिए बच्चा अगर यात्रा कहेगा कि असंभव मालूम होता है। फिर अगले जन्म तक प्रतीक्षा करने में सहायता न दें, तो मां-बाप बड़े पीड़ित होते हैं। करनी पड़ेगी। लेकिन अगले जन्म में भी वह अंतर्मुखी हो नहीं एक मेरे मित्र हैं। उनका युवा पुत्र मर गया। पुत्र एक राज्य में पाएगा। क्योंकि इस जिंदगी का और जुड़ जाएगा बहिर्मुखता की मिनिस्टर था। बड़े पीड़ित हुए, बड़े दुखी हुए। मेरे निकट हैं। मैंने | यात्रा का हिस्सा। वह और भी बहिर्मुखी हो जाएगा। उनसे पूछा, इतनी पीड़ा, इतना दुख, बात क्या है? कहने लगे कि इसलिए कोई जरूरत नहीं है कि बहिर्मुखी अंतर्मुखी हो, तभी अगली बार उसके चीफ मिनिस्टर हो जाने की बिलकुल संभावना | धार्मिक हो सके। बहिर्मुखी बहिर्मुखी रहते हुए धार्मिक हो सकता थी। मैं तो बहुत चौंका। मैंने सोचा भी नहीं था कि गहरे में पीड़ा | है। उसकी धर्म की साधना में भेद होंगे। वही भेद कृष्ण स्पष्ट कर कहां छिदती है। | रहे हैं। वे कह रहे हैं, भेद यही है कि बहिर्मुखी कर्म को छोड़ नहीं • चीफ मिनिस्टर हो जाने की संभावना थी। खद भी होना चाहा है। सकेगा। कर्म को करे, फल को छोड़ दे। कर्म में दौड़े, फल को जिंदगीभर उन्होंने; हो नहीं पाए हैं। अब अपने अहंकार को पुत्र के | छोड़ दे। कर्म करे, कर्ता को भुला दे। बहिर्मुखी रहे, लेकिन इस कंधों पर रखकर यात्रा करना चाहते थे। वह हो जाता। वह मर गया। | बहिर्मुखी यात्रा को भी धन से हटाकर धर्म पर लगा दे। पदार्थ से कहने लगे कि अब मैं तो बिलकुल मरा ही जैसा हो गया हूं। मैंने हटाकर परमात्मा पर लगा दे। पद से हटाकर परमपद पर लगा दे। कहा, अभी दूसरा बेटा है, उस पर कुछ इरादे बांधो! कहे, वह है इतना करे। धीरे-धीरे वहीं पहुंच जाएगा, जहां अंतर्मुखी पहुंचता है। तो जरूर, लेकिन उतना योग्य नहीं है। अंतर्मुखी का मार्ग अलग होगा। यह बदलाहट कठिन है। नके घर गया, पत्र मर गया है, लेकिन वे सब तारों लेकिन कभी-कभी बदलाहट होती है। असंभव नहीं है। मैंने कहा की गड्डी पास में लिए बैठे हैं! जब मैं उनके घर गया सांत्वना प्रकट साधारणतः बहिर्मुखी अंतर्मुखी नहीं बनाया जा सकता। अंतर्मुखी करने कि न हों परेशान, तो गडी उन्होंने सरका दी। कहा कि देखें. बहिर्मखी नहीं बनाया जा सकता। लेकिन कभी-कभी बदलाहट राष्ट्रपति का भी तार आया, प्रधान मंत्री का भी तार आया। लड़के होती है। का मरना, आंसू बह रहे हैं। लेकिन राष्ट्रपति का तार आया है, बदलाहट दो कारणों से होती है। या तो कोई इतना बहिर्मुखी हो उसकी चमक भी है आंखों में। आदमी का मन! | कि उसके जीवन में अंतर्मुखता न के बराबर, शून्य शेष रह जाए। बाप बेटों पर यात्रा करना चाहते हैं। जो खुद नहीं कर पाए, सिर्फ बहिर्मुखी ही हो जाए। धन ही धन, धन ही धन; मकान, धन, अनफुलफिल्ड ड्रीम्स, अधूरे रह गए, अतृप्त सपने बच्चों पर पूरा | दौलत, यश, इसी-इसी में डूब जाए। इतना डूब जाए, और उसी करना चाहते हैं। तो इसलिए वे उनको बहिर्मुखी बनाएंगे ही; वे | | डूबे में कोई इतना बड़ा धक्का, कोई इतना बड़ा शॉक आ जाए कि उनको छोड़ नहीं सकते। अंतर्मुखी वे हो जाएं, तो कठिनाई हो | | सब छितर-बितर हो जाए, तो एकदम से कनवर्शन होता है। इतना जाएगी। | बड़ा धक्का आए कि उसके बाहर के बनाए हुए सारे महल ताश के जिंदगी का खयाल रखा, तो जिंदगी में उपयोगिता बहिर्मुखता की पत्तों की तरह एकदम गिर जाएं। सब राख हो जाए। इतने बड़े धक्के है। अगर मृत्यु का स्मरण रखा, तो उपयोगिता अंतर्मुखता की है। | में संभावना है कि वह एकदम लौट जाए। और ध्यान रखें, जिंदगी तो चली जाएगी; मृत्यु बहुत थिर और । लेकिन अगर छोटा-मोटा बहिर्मुखी होगा, तो नहीं लौटेगा। 1335
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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