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________________ मन का ढांचा-जन्मों-जन्मों का आकाश में। न कभी वह इतने शून्य डिग्री के नीचे पहुंचता है कि | अपना गीत गाने को नहीं है। बांसुरी तो पोली है, बांस का टुकड़ा जमकर पानी बर्फ हो जाए। है पोला। बस, परमात्मा जो बजा दे, वही बज जाएगा। कृष्ण जैसे अंतर्मुखता भी एक छोर है, बहिर्मुखता दूसरा छोर है। दोनों छोरों | व्यक्ति इसीलिए अवतार हैं, व्यक्ति नहीं हैं। पर्सनैलिटी गई। शून्य में से कहीं से भी छलांग लग सकती है। लेकिन बीच में से कहीं की भांति हैं खाली, रिक्त। अपना कुछ भी नहीं बचा। अब तो छलांग नहीं लग सकती। इसलिए बीच के लोग सबसे ज्यादा | परमात्मा जो करवा ले। इसलिए कृष्ण के पास व्यक्तित्व नहीं है, तकलीफ में पड़ जाते हैं। फिर भी बीच में भी बहुत कम लोग हैं, न | | न बहिर्मुखी, न अंतर्मुखी। कृष्ण के पास व्यक्तित्व ही नहीं है। के बराबर। और जिसकी समझ में आ जाए कि मैं बीच में हूं, उसे | इसमें एक खयाल और ले लें। भी देखना चाहिए कि उसका झुकाव क्या है। अगर बहिर्मुखता का महावीर भी जब ज्ञान को उपलब्ध हो जाते हैं, तो उनके पास कोई है, तो ठीक है। अंतर्मुखता का है, तो ठीक है। और अपनी नियति व्यक्तित्व नहीं बचता। बुद्ध भी जब ज्ञान को उपलब्ध हो जाते हैं, और अपने व्यक्तित्व को, अपने साइकोलाजिकल टाइप को ठीक से . तो उनके पास भी कोई व्यक्तित्व नहीं बचता। लेकिन महावीर की समझकर उसके अनुकूल साधना पद्धति को चुन लेना चाहिए। जो साधना पद्धति है, उस साधना पद्धति के कारण एक व्यक्तित्व यहां कृष्ण दो की बात कर रहे हैं, कर्म-संन्यास और कर्म-त्याग। | हमें मालूम पड़ता है। उनका कोई व्यक्तित्व बचता नहीं, लेकिन इन दो में से कोई भी एक चुन लेना चाहिए। क्या चुनते हैं, इससे | | साधना पद्धति का एक व्यक्तित्व हमें मालूम पड़ता है। बुद्ध का भी फर्क नहीं पड़ता। कहां पहुंचते हैं, असली सवाल यही है। एक व्यक्तित्व मालूम पड़ता है। उनकी भी एक साधना पद्धति है। कृष्ण इस मामले में बहुत विशिष्ट हैं। उनकी एक साधना पद्धति कृष्ण का व्यक्तित्व? नहीं है। वे समस्त साधना पद्धतियों की बात करते हैं। इसलिए उनका कोई व्यक्तित्व भी मालूम नहीं पड़ता। इसलिए कृष्ण को हां, पूछते हैं, कृष्ण का व्यक्तित्व कैसा है? यह थोड़ा कठिन है। | कोई जैसा चाहे, वैसा देख ले सकता है। भागवतकार कुछ और यह थोड़ा कठिन इसलिए है कि कृष्ण के पास व्यक्तित्व नहीं है। | अर्थों में देखते हैं कृष्ण को; कवि कुछ और अर्थों में देखते हैं। इसलिए कठिन है। केशव से पूछे, तो कुछ और कहेगा। सूर से पूछे, तो कुछ और जो पहुंच जाता है, उसके पास व्यक्तित्व खो जाता है। व्यक्तित्व | कहेंगे। गीता के कृष्ण कुछ और मालूम होते हैं, भागवत के कुछ उनके पास होते हैं, जो यात्रा में हैं। मंजिल पर व्यक्तित्व नहीं होते। और मालूम होते हैं! हजार तरह की बातें उनके व्यक्तित्व से मंजिल पर तो परमात्मा ही बचता है। व्यक्तित्व यात्रा में होते हैं। झलकती हैं। शून्य हैं। कोई एक साधना की पद्धति नहीं है। जैसे वाहन! मैं बैलगाड़ी पर बैठा हूं, आप हवाई जहाज पर बैठे हैं, | इसीलिए राम को हमने कभी पूर्णावतार नहीं कहा। क्योंकि राम कोई रेलगाड़ी में बैठा है, कोई मोटरगाड़ी में बैठा है। ये वाहन तो | की एक विशिष्ट साधना पद्धति है, जीवन की एक व्यवस्था है। वह यात्रा में होते हैं। मंजिल पर पहुंचे कि वाहन से उतर जाता है। | व्यवस्था ही उनका व्यक्तित्व मालूम पड़ती है। वे हमारे जगत से आदमी। फिर न हवाई जहाज में होते हैं आप, न बैलगाड़ी में होते | संबंधित होते हैं एक विशेष व्यक्तित्व को बीच में लेकर। कृष्ण हैं। बैलगाड़ी भी गई, हवाई जहाज भी गया, मंजिल आ गई। हमसे सीधे संबंधित हैं: कोई व्यक्तित्व नहीं है कृष्ण जैसे लोग मंजिल पर खड़े हुए लोग हैं। ये व्यक्तित्व से साथ में नहीं है। कोई मर्यादा नहीं, कोई सीमा नहीं। उतर गए। व्यक्तित्व गया। उसी व्यक्ति को हम अवतार कहते हैं, ___ इसलिए इस देश में हमने किसी को पूर्ण अवतार नहीं कहा जिसका व्यक्तित्व नहीं है। इसको समझ लें। उसी व्यक्ति को | सिवाय कृष्ण के। उसका कारण है। पूर्ण प्रकट हो रहा है उनसे। अवतार कहते हैं, जिसका कोई व्यक्तित्व नहीं है। जब अपना व्यक्तित्व से सदा अपूर्ण प्रकट होता है, चुना हुआ प्रकट होता है। व्यक्तित्व नहीं होता, तभी तो परमात्मा प्रकट होता है। जब तक खतरे हैं पूर्ण प्रकट करने में। खतरा सबसे बड़ा तो यह है कि अपना व्यक्तित्व होता है, तब तक प्रकट नहीं होता। | बहुत मिसअंडरस्टैंडिंग पैदा होगी। महावीर के संबंध में इतनी कृष्ण तो बांसुरी की तरह हैं। अपना कोई स्वर नहीं है। परमात्मा | गलतफहमी नहीं हो सकती. क्योंकि उनकी रूप-रेखा साफ है। वे जो बजा दे, वही। बांसुरी को कुछ गाना नहीं है। बांसुरी के पास जो कहते हैं, वह एक साधना है। बुद्ध के संबंध में भ्रांति नहीं हो 337
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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