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गीता दर्शन भाग-20
संसार की विजय-यात्रा पूरी हो जाएगी, और भीतर हम पाएंगे कि | मैं एक स्त्री को देखने गया, वह नौ महीने से बेहोश थी, कोमा हम खाली हाथ आए और खाली हाथ जा रहे हैं।
| में पड़ी है। और डाक्टर कहते हैं, अब कभी होश में नहीं आएगी। __ इंद्रियों पर थोड़ी जागरूकता लानी जरूरी है। इसलिए कृष्ण के चार साल तक बेहोश रह सकती है और बेहोशी में ही मर जाएगी। ये वचन सिर्फ व्याख्या से समझ में आ जाएंगे, इस भूल में पड़ने | लेकिन बराबर ग्लूकोज दिया जा रहा है, दूध पिलाया जा रहा है, की कोई भी जरूरत नहीं है। ये सारे सूत्र साधना के सूत्र हैं। | पेट पचा रहा है; वह नौ महीने से बेहोश है। शरीर खून बना रहा
लेकिन मजा है, हमारे मुल्क में लोग गीता का पाठ कर रहे हैं! | है। सांस चल रही है। कौन ले रहा है? यह काम कौन कर रहा है? सोचते हैं, पाठ से कुछ हो जाएगा। पाठ तोते भी कर लेते हैं। और | | आप? तो वह औरत तो बेहोश पड़ी है; वह तो है ही नहीं अब एक पाठ करने वाले अक्सर धीरे-धीरे तोते हो जाते हैं। सब कंठस्थ हो | अर्थ में। प्रकृति किए चली जा रही है! जाता है। दोहराना आ जाता है। यंत्रवत गीता बोलने लगते हैं। सब। ___ इंद्रियां प्रकृति के हाथ हैं, हमारे भीतर फैले हुए। इंद्रियां प्रकृति अर्थ उन्हें पता हैं। सब शब्द उन्हें पता हैं। गीता पूरी कंठस्थ है। | के हाथ हैं, हमारे द्वारा बाहर के आकाश और जगत तक फैले हुए। करने को कुछ बचता नहीं। कृष्ण अपना सिर ठोकते होंगे। | इंद्रियां प्रकृति का यंत्र हैं, वे अपना काम कर रही हैं, भूलकर उनसे
गीता के सूत्र साधना के सूत्र हैं। समझ लिया कि ठीक बात है, अपने को न जोड़ें। जो इंद्रियों से अपने को जोड़ता है, वह अज्ञानी इंद्रियां अपना काम करती हैं। लेकिन कल सुबह फिर कहा कि मुझे है। जो इंद्रियों से अपने को अलग देख लेता है, वह ज्ञानी है। भूख लगी है, तो गलती है। फिर समझे नहीं। फिर भीतर से थोड़ा सोचना चाहिए, मुझे भूख लगती है?
इंद्रियों के प्रत्येक कृत्य में खोजकर देखें, कर्ता आप नहीं हैं। प्रश्न : भगवान श्री, कल आपने अंतर्मुखी व बहिर्मुखी इंद्रियों का समस्त कर्म प्रकृति से हो रहा है। आपकी कोई भी जरूरत व्यक्तित्व की सविस्तार चर्चा की। इस संबंध में एक नहीं है। कभी आप खयाल करते हैं! खाना तो आप मुंह में डाल बात और स्पष्ट करना है। किसी का अंतर्मुखी होना लेते हैं; पचाते आप हैं? कौन पचाता है? खाना आप खाते हैं; अथवा किसी का बहिर्मुखी होना, इसके क्या मौलिक पचाता कौन है? कभी पता चलता है, कौन पचा रहा है? इंद्रिय आधार व कारण हैं? और क्या बहिर्मुखता या पचा रही है। पता ही नहीं चलता, कौन पचा रहा है! कौन इस रोटी | अंतर्मुखता अपरिवर्तनीय है? स्वतः कृष्ण अंतर्मुखी हैं को खून बना रहा है! मिरेकल घट रहा है पेट के भीतर। या बहिर्मुखी? __ अभी वैज्ञानिक फिलहाल समर्थ नहीं हैं। कहते हैं कि शायद
अभी और काफी समय लगेगा, तब हम रोटी से सीधा खून बना सकेंगे। आपका पेट कर ही रहा है वह काम बिना किसी बड़े नाभी हम हैं, जहां भी हम हैं, जैसे भी हम हैं, वह हमारे
आइंस्टीन की बुद्धि के। इंद्रिय कुछ आइंस्टीन से कम बुद्धिमान | UII अनंत जन्मों की यात्राओं का इकट्ठा जोड़ है। अनंत मालूम नहीं पड़ती! प्रकृति कुछ कम रहस्यपूर्ण नहीं मालूम पड़ती।
संस्कार का जोड़ है। बहिर्मुखी हैं तो, अंतर्मुखी हैं तो। वैज्ञानिक कहते हैं, और अगर हम किसी दिन रोटी से खुन बनाने | | जो हमने किया है—अंतहीन आवर्तन लिए हैं जीवन के–जो हमने में समर्थ भी हो गए, तो एक आदमी का पेट जो काम करता है, | | किया है, उस सबका इकट्ठा रूप ही हमारा आज का होना है। उतना काम करने के लिए कम से कम एक वर्ग मील जमीन पर उदाहरण के लिए, कल आपने दिन में आठ दफे क्रोध किया। फैक्टरी बनानी पड़ेगी! एक पेट में जो काम चलता है, एक वर्ग | आठ बार क्रोधित हुए, नाराज हुए, आग से भर गए, आंखें खून से मील का भारी कारखाना होगा, तब कहीं हम रोटी को खून तक ले | भर गईं। मैं भी कल था; कल मैंने आठ बार क्रोध नहीं किया। हम जा सकते हैं। वह भी अभी सूत्र साफ नहीं हो सके। लेकिन आप दोनों रात साथ-साथ सोए। एक ही कमरे में सोए। लेकिन मेरे सपने रोज कर रहे हैं। कौन कर रहा है? आप कर रहे हैं? आप तो सो अलग होंगे, आपके सपने अलग होंगे। कमरा एक होगा। बिस्तर जाते हैं रात, तब भी होता रहता है। आप शराब पीकर नाली में पड़े | एक जैसा हो सकता है। सब एक जैसा है। मेरे सपने अलग होंगे, रहते हैं, तब भी होता रहता है।
आपके सपने अलग होंगे। क्योंकि आठ बार दिन में क्रोध किया.
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