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________________ मन का ढांचा-जन्मों-जन्मों का कारण हैं। क्योंकि धर्म का खयाल है कि निकृष्ट से श्रेष्ठ अगर | | अगर छिपी न हो, तो प्रकट कहां से होगी! यह भी बिल्ट-इन है, जन्मता है, तो मानना होगा कि वह उसमें कहीं छिपा था, सदा | इसका भी पदार्थ में छिपा हुआ रूप है। फिर यह कहना गलत है मौजूद था। अगर बीज से वृक्ष पैदा होता है, तो चाहे दिखाई पड़ता | | कि पदार्थ में छिपी है, क्योंकि धर्म भी कहता है, एक ही तत्व है; हो और चाहे न दिखाई पड़ता हो. वक्ष बीज में छिपा था. और विज्ञान भी कहता है, एक ही तत्व है। पदार्थ में छिपी है, ऐसा पोटेंशियली मौजूद था। अन्यथा पैदा नहीं हो सकता है। यदि चेतना | कहने से दो तत्वों का खयाल आता है—पदार्थ है कुछ, चेतना पैदा हो रही है जगत में कहीं भी, और पदार्थ से ही पैदा हो रही है, | उसमें छिपी है। इसलिए विज्ञान के हिसाब से भी कहना ठीक नहीं तो समझना पड़ेगा कि वह पदार्थ में कहीं गहरे में छिपी है, मौजूद | | कि पदार्थ में छिपी है। धर्म के लिहाज से भी कहना ठीक नहीं कि है। उसकी मौजूदगी को इनकार करना अवैज्ञानिक है, वैज्ञानिक पदार्थ में छिपी है। फिर तो यही कहना ठीक है कि विज्ञान जिसे नहीं। जो भी प्रकट हो सकता है, वह छिपा है और मौजूद है। | विद्युत कहता है, धर्म उसे चेतना कहता है। और धर्म की बात ही अनमैनिफेस्टेड है, अव्यक्त है, अप्रकट है। ज्यादा सही मालूम पड़ती है। क्योंकि जो प्रकट होता है, वह कहीं लेकिन विज्ञान कहता है कि एक ही चीज है अब जगत में, वह | | मौजूद होना चाहिए। अन्यथा वह प्रकट नहीं हो सकता है। है विद्युत ऊर्जा। और धर्म भी कहता है, एक ही चीज है जगत में, | | कृष्ण कहते हैं, जो इस एक तत्व को जानता है। वह है चेतना। यह चेतना अप्रकट हो सकती है विद्युत ऊर्जा में। ___ इसलिए तत्वों की बात उन्होंने नहीं कही। एक ही काफी है। मनुष्य में आकर विकसित होकर प्रकट हो जाती है। | अज्ञानी बहुत चीजों को जानते हैं; ज्ञानी एक को ही जानता है। __ एक छोटा बच्चा है। वह कल जवान होगा, परसों बूढ़ा होगा। | इसलिए कई बार ऐसा हो सकता है कि अज्ञानी के साथ ज्ञानी परीक्षा आज विज्ञान, मानता है कि जवान और बूढ़े होने का में हार जाए। बिल्ट-इन-प्रोग्रेम उसके जेनेटिक सेल में मौजूद है। वह जो बच्चे | अगर हम बुद्ध और महावीर को किसी अज्ञानी के साथ परीक्षा का पहला अणु है मां-बाप से मिला, उसमें उसकी पूरी जिंदगी का में बिठा दें, तो हार जाने का डर है! अज्ञानी बहुत चीजें जानता है। ब्लूप्रिंट, पूरा नक्शा मौजूद है। अन्यथा वह हो नहीं सकता। । | अगर अज्ञानी पूछने लगे कि आक्सीजन क्या है? तो बुद्ध जरा एक बीज आप जमीन में गाड़ देते हैं। फिर उसमें से अंकुर | मुश्किल में पड़ेंगे। या अज्ञानी पूछने लगे कि साइकिल का पंक्चर निकलता है, फिर पत्ते आते हैं। बड़ी हैरानी की बात है कि इस बीज | कैसे जुड़ता है? तो महावीर को जरा अड़चन आएगी। और जरा में ठीक वैसे ही पत्ते आते हैं, जैसे इस बीज के पिता वृक्ष में थे। यह | | क्या, काफी अड़चन आएगी! साइकिल रिपेयरिंग से उनका कभी पत्तों का बिल्ट-इन-प्रोग्रेम अगर बीज के भीतर छिपा हुआ न हो, | | कोई संबंध नहीं रहा। तो बड़ा चमत्कार है। यह वैसे ही पत्ते वापस कैसे आ सकते हैं? | । अज्ञानी बहुत चीजें जानता है। एक को छोड़कर सब जानता है। या तो फिर यह बीज अदभुत होशियार है, या फिर इस बीज के पीछे ज्ञानी सबको छोड़ देता है और एक को जानता है। लेकिन उस एक कोई बहुत बड़ा जादूगर बैठा है। इस बीज में भी वैसे ही फूल | | को जानकर वह सब जान लेता है। और अज्ञानी सबको जानकर लगेंगे, जैसे उस वृक्ष में लगे थे, जिससे यह बीज आया है। वे ही कुछ भी नहीं जानता है। वृक्ष की पत्तियां होंगी, वे ही शाखाएं होंगी। वही फैलाव होगा। वही | | इसलिए कृष्ण कहते हैं, एक को जान लेता है जो-एक तत्व रूप-रंग होगा। वही फूल फिर से खिलेंगे। और इस एक बीज से | | को-ऐसे ज्ञानवान व्यक्ति को, ऐसे सांख्य को उपलब्ध व्यक्ति फिर करोड़ों बीज पैदा होंगे—वही बीज, जिनसे यह पैदा हुआ था। | को, इंद्रियों का कर्म अपना किया हुआ नहीं, इंद्रियों का ही किया इस बीज के भीतर बिल्ट-इन, छिपा हुआ प्रोग्रेम है। हुआ मालूम पड़ता है। वैज्ञानिक आज कह सकते हैं कि बीज में वृक्ष पूरी तरह छिपा ___ यह दूसरी बात समझ लेनी जरूरी है। हुआ है। प्रकट होने की देर है। समय लगेगा प्रकट होने में। लेकिन इंद्रियां आपके काम कर रही हैं, लेकिन निरंतर आप एक भ्रांत जो प्रकट होगा, वह मौजूद था। कह सकते हैं, बीज वृक्ष है, | | आइडेंटिटी, एक झूठा तादात्म्य कर लेते हैं और सोचते हैं, मैं कर अदृश्य; और वृक्ष बीज है, दृश्य हो गया। | रहा हूं। जब आपको भूख लगती है, तब आप कहते हैं, मुझे भूख लेकिन इतनी जगत में चेतना दिखाई पड़ती है, यह पदार्थ में लगी है। कृपा करके फिर से सोचना, भूख आपको लगती है या पेट 1329
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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