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________________ ॐगीता दर्शन भाग-20 नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित् । | अब तक विज्ञान यह भी मानने को राजी नहीं था कि एक तत्व है। पश्यऽशृण्वस्पृशञ्जिवनश्नन्गच्छन्स्वपश्वसन् ।।८।। वह कहता था, एक सौ आठ तत्व हैं। प्रलपन्विसृजनगृह्णन्नुन्मिपन्निमिषन्नपि। ऊपर से देखने पर अनंत तत्व मालूम पड़ते हैं जगत में। तत्वों इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ।। ९ ।। के भीतर जब विज्ञान का प्रवेश हआ. तो पता चला कि सभी तत्व और हे अर्जुन, तत्व को जानने वाला सांख्ययोगी तो देखता एक ही तत्व के भिन्न-भिन्न रूप हैं। जैसे एक ही सोने के बहुत-से हुआ, सुनता हुआ, स्पर्श करता हुआ, सूंघता हुआ, भोजन आभूषण हों। रूप अलग हैं। वह जो रूपायित हुआ है, जो पीछे करता हुआ, गमन करता हुआ, सोता हुआ, श्वास लेता छिपा है, वह एक है। इसे विज्ञान अब स्वीकार करता है कि वह हुआ, बोलता हुआ, त्यागता हुआ, ग्रहण करता हुआ तथा एक तत्व विद्युत ऊर्जा है, शक्ति है। अभी उसे धर्म की दूसरी बात आंखों को खोलता और मींचता हुआ भी, सब इंद्रियां | से भी सहमत होना पड़ेगा। अब तक वह पहली बात से भी सहमत अपने-अपने अर्थों में बर्त रही है, इस प्रकार समझता हुआ | नहीं था कि तत्व एक है। वह कहता था, तत्व अनेक हैं। निःसंदेह ऐसे माने कि मैं कुछ भी नहीं करता हूं। अब तक विज्ञान प्लूरालिस्ट था, अनेक को मानता था। अब | विज्ञान मानिस्ट हुआ, अब वह एक को मानने लंगा। वह कहता है, एक ही ऊर्जा है। पानी में भी वही ऊर्जा है और पत्थर में भी वही न त्व को जानता हुआ पुरुष सब करते हुए भी ऐसा ही | ऊर्जा है। उस ऊर्जा के कणों का विभिन्न जमाव है। बस, उसका ही (1 जानता है, जैसे मैं कुछ भी नहीं करता हूं। इंद्रियां बर्तती सारा अंतर है। वह अंतर ठीक आभूषण जैसे सोने के विभिन्न जमाव हैं अपने-अपने स्वभाव से। इंद्रियों के वर्तन को, तत्व से निर्मित होते हैं, वैसा ही अंतर है। और बहुत देर नहीं है कि एक को जानने वाला पुरुष, अपना कर्म नहीं मानता है। तत्व को जानने तत्व को हम अब दूसरे तत्वों में रूपांतरित कर सकेंगे। . वाला पुरुष कर्ता नहीं होता, वरन इंद्रियों के कर्मों का मात्र साक्षी | बहुत जमाने तक अल्केमिस्ट खोजते थे, कोई ऐसी तरकीब कि होता है। जिससे लोहा सोना हो जाए। अब बहुत कठिन नहीं है। क्योंकि इसे दो-तीन आयामों से समझ लेना उपयोगी है। लोहा भी उसी ऊर्जा से बना है, जिससे सोना बना है। और लोहा एक, तत्व को जानने वाला पुरुष। कौन है जो तत्व को जानता सोना बन सकता है और सोना लोहा बन सकता है। ज्यादा देर नहीं है? ध्यान रहे, कृष्ण नहीं कहते, तत्वों को जानने वाला पुरुष। है, मौलिक बात तय हो गई है कि दोनों को बनाने वाला संघटक कहते हैं, तत्व को जानने वाला पुरुष। एक ही तत्व है। इसलिए रूपांतरण हो सकता है। तत्व एक ही है। वह जो जीवन के, गहन जीवन के प्राण में छिपा ऐसे भी आप देखते हैं, कोयले को पड़ा हुआ। सोचते न होंगे है, वह अस्तित्व एक ही है। कि हीरा भी कोयला है। हीरा भी कोयला है! हीरा भी कोयले का हम साधारणतः पांच तत्वों की बात करते हैं, वे तत्व नहीं हैं। | ही रूप है। लाखों साल तक जमीन के नीचे गर्मी में दबा रहने पर मिट्टी है, पानी है, आग है, आकाश है, वायु है; वे वस्तुतः तत्व कोयला हीरे में रूपांतरित होता है। एक ही तत्व हैं; दोनों में कोई नहीं हैं। और विज्ञान तो एक सौ आठ तत्वों की बात करता है। | भी भेद नहीं है। लेकिन अब इधर विज्ञान को यह खयाल आना शुरू हुआ कि जो | | सारे तत्वों के भीतर एक है। धर्म की इस पहली घोषणा से विज्ञान उसने एक सौ आठ तत्व सोचे थे, वे कोई भी तत्व नहीं हैं। | रिलक्टेंटली, बहुत झिझकते-झिझकते राजी हो गया है। मजबूरी विज्ञान भी एक सौ आठ तत्वों की लंबी संख्या के बाद एक नए | थी। विज्ञान सत्य को इनकार नहीं कर सकता है। अब दूसरा कदम नतीजे पर पहुंच रहा है और वह यह कि ये एक सौ आठ तत्व भी | | और शेष रह गया है। और वह कदम यह है कि वह एक तत्व चेतन एक ही तत्व के रूप हैं। उस तत्व को विज्ञान इलेक्ट्रिसिटी कहता | | है या अचेतन? अब तक विज्ञान माने चला जाता है कि वह अचेतन है, विद्युत कहता है। कृष्ण उस तत्व को विद्युत नहीं कहते, चेतना | | है। यह उसका दूसरा आग्रह है। पहला आग्रह था, अनेक हैं तत्व। कहते हैं, कांशसनेस कहते हैं। शायद बहुत शीघ्र विज्ञान को | वह गिर गया। दूसरा आग्रह अभी शेष है कि वह तत्व अचेतन है। स्वीकार कर लेना पड़ेगा कि वह तत्व चेतना ही है। क्यों? क्योंकि धर्म का खयाल है कि वह तत्व अचेतन नहीं है। और उसके | 328
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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