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________________ गीता दर्शन भाग-20 यह जो हमारा चित्त है, वह सदा फल के लिए उत्सुक है। | हो जाता है, जिसमें अब कोई फर्क नहीं पड़ेंगे! जिंदगी, जब हम इसलिए कछ भी कर्म से बच सके और फल मिल जाए तो हम ले पाते हैं जीने के लिए. खडे होते हैं. तब तक करीब-करीब हमारे लेंगे। इसलिए कृष्ण कहते हैं कि निष्काम कर्मयोग चिंता नहीं करता | भीतर तय हो गई होती है। उसका एक पैटर्न, उसका एक ढांचा कि तुम कर्म छोड़ो। वह चिंता करता है कि तुम फल छोड़ो। तुम | निर्मित हो गया होता है। फल की फिक्र छोड़ दो। अर्जुन आज युद्ध के मैदान पर खड़ा है, कोरी स्लेट की तरह और फल की फिक्र दो तरह से छोड़ी जा सकती है। एक रास्ता | नहीं। अगर कोरी स्लेट की तरह होता, तो कृष्ण उससे कहते कि ये तो यह है कि हम मान लें कि परमात्मा है; जो उसकी मर्जी। वह दो रास्ते हैं, तू कोई भी लिख ले; दोनों ही सरल हैं। क्योंकि तेरी नियतिवादी जो मैंने बात कही, जो मानता है कि नियति है, परमात्मा | स्लेट कोरी है। कुछ भी लिख। जो भी लिखेगा, वही काम दे को फल देना है, देगा; नहीं देना है, नहीं देगा। जो नियति की धारणा जाएगा। लेकिन अर्जुन कोरी स्लेट की तरह नहीं खड़ा है। बहुत से जीता है गहरे में, वह छोड़ पाता है। वह कहता है, ठीक है; फल | | कुछ लिखा जा चुका है। जगह अब कुछ और लिखने को है नहीं; हमारे हाथ में नहीं है; परमात्मा जाने। हम ही हमारे हाथ में नहीं हैं, | भरा हुआ खड़ा है। क्षत्रिय होना निर्णीत हो चुका है। क्षत्रिय होना तो फल भी हमारे हाथ में कैसे हो सकता है? | उसका पूरा हो चुका है। अब उसको ब्राह्मण बनाने की कोशिश बड़ी __ या फिर वह फल छोड़ देता है, दूसरा, जो कि मानता है कि मैं | | उपद्रव की है। तो हूं ही नहीं। मिट्टी का जोड़ हूं। मुझसे क्या फल आएगा! मैं क्या | ब्राह्मण बनाने का मतलब है, नई, अब स से शुरू करनी पड़ेगी फल निकाल पाऊंगा! ना-कुछ हूं, मुझसे कुछ भी निकलने वाला यात्रा। अर्जुन को अगर वापस उसकी मां के पेट में, गर्भ में ले जाया नहीं है। बुद्ध का मार्ग है, वह कहता है, कुछ निकलने वाला नहीं जा सके, तो फिर से बात हो सकती है। अन्यथा नहीं हो सकती है। है, इसलिए फल छोड़ देता है। मैं ही नहीं हूं, तो फल लेगा कौन? | | या फिर उसका परा ब्रेनवाश करना पडे। तब कष्ण के वक्त में इसलिए फल छोड़ देता है। उसका उपाय नहीं था; अब है। उसकी खोपड़ी बिलकुल साफ तीसरा भी मार्ग है, वह कृष्ण का मार्ग या महावीर का मार्ग, कि करनी पड़े बिजली के धक्कों से। हालांकि जरूरी नहीं है कि खोपड़ी पीछे भीतर प्र प्रवेश करता है और उसको खोज लेता है, जिसे किसी साफ करने के बाद वह कोई बेहतर आदमी बन सके। जरूरी नहीं फल की जरूरत नहीं है। उसे खोज लेता है, जिसे सब मिला ही है। बहुत डर तो यही है कि वह आदमी सदा के लिए लंगड़ा हो हुआ है। इसलिए कोई मांग नहीं रह जाती। तो भी फल गिर जाता जाए। क्योंकि तीस साल की उम्र में अगर हम किसी आदमी के है। फल गिर जाए, तो कर्ता खो जाता है। लेकिन निष्काम कर्म में | मस्तिष्क को फिर से साफ करें, तो उसकी उम्र तो तीस साल होगी कर्म बना रहता है और कर्म-संन्यास में कर्म भी गिर जाता है, उतना और पहले दिन के बच्चे जैसा व्यवहार करेगा। बहुत उपद्रव का ही फर्क है। मामला है। अर्जुन से कहते हैं कृष्ण कि सरल है निष्काम कर्म। अर्जुन को तो अर्जुन एक सुनिश्चित व्यक्तित्व लेकर खड़ा है, एक देखकर कहते हैं, मैं फिर दोहरा दूं। जरूरी नहीं है कि आपके लिए | पर्सनैलिटी है उसके पास। तो जब कृष्ण उससे कहते हैं कि अर्जुन, भी सरल हो। अर्जुन से कहते हैं कि तेरे लिए सरल है अर्जुन, | तू जो कि कर्म में ही जीया और बड़ा हुआ है, कर्म ही जिसका निष्काम कर्म। अर्जुन के लिए आसान है फल को छोड़ना। कर्म को | | स्वभाव है, कर्म के बिना जिसने कभी कुछ न जाना, न सोचा, न छोड़ना कठिन है। | किया। जिसके व्यक्तित्व की सारी गरिमा उसके कर्म के शिखर पर इसके लिए दो-तीन बातें खयाल में ले लें। है। जिसका सारा गौरव, जिसकी सारी चमक, जिसकी सारी मां के पेट में सात महीने का बच्चा करीब-करीब पच्चीस | | सफलता उसके कर्म की कुशलता है। इस आदमी को कृष्ण कहते प्रतिशत निर्मित हो जाता है; पच्चीस प्रतिशत। बाकी पचहत्तर | हैं कि तेरे लिए सरल है कि तू फल को छोड़ दे। प्रतिशत बाकी सत्तर साल में निर्मित होगा। सात महीने का बच्चा और ध्यान रखें, क्षत्रिय के लिए फल को छोड़ना आसान है, कर्म पच्चीस प्रतिशत बिलकुल निर्मित हो जाता है, जिसमें अब कोई | | को छोड़ना कठिन है। क्षत्रिय के लिए फल को छोड़ना आसान है, अंतर नहीं पड़ेंगे। सात साल का बच्चा तो पचहत्तर प्रतिशत निर्मित कर्म को छोड़ना कठिन है। ब्राह्मण के लिए कर्म को छोड़ना आसान 32A
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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