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• वासना अशुद्धि है
कि नहीं निपट पाएगी! कोई अड़चन तो नहीं आ जाएगी! कोई ग्रह, इसलिए जिनको भी फल मिल सकता है बिना कर्म के, वे जरूर मंगल बाधा तो नहीं देंगे। कोई पंडित पत्री में उपद्रव तो खड़ा नहीं फल को बिना कर्म के पाने की कोशिश करेंगे। जो विद्यार्थी बिना करेगा! बच्चा बहुत चिंतित है। उसके लिए खेल नहीं है। उसके । पढ़े पास हो सकता है, वह पढ़ना छोड़ देगा। अगर सरल कर्म से लिए मामला गंभीर है; काम है। बाप मजे से खेल रहा है साथ में। काम हो सकता है, कि शिक्षक को जरा छुरा दिखाने से काम हो कर्म तो कर रहा है, भीतर कर्ता बिलकुल नहीं है।
सकता है, तो सरल कर्म कर लेगा। चोरी से हो सकता है, तो उससे कर्म तो कर रहा है, कर्ता क्यों नहीं है? क्योंकि बच्चा फल में कर लेगा। सालभर का उपद्रव छोड़ देगा, दो-चार दिन में हो सकता उत्सुक है, एक्साइटेड है, उत्तेजित है। सांझ बैंड-बाजे बजेंगे, है, उससे कर लेगा। रिश्वत से हो सकता है, उससे कर लेगा। बारात निकलेगी। भारी काम उसके सिर पर है। सब ठीक से निपट किसी का भी रस कर्म में नहीं है। ध्यान रहे, दुनिया में रिश्वत न जाए, इसकी चिंता है। सारे मित्र इकट्ठे होने वाले हैं, कोई भूल-चूक हो, बेईमानी न हो, अगर लोगों का रस कर्म में हो। रस तो है फल न हो जाए। चिंतित है, उद्विग्न है, परेशान है। हो सकता है, रातभर | में, तो फल फिर जैसे मिल जाए, उससे ही आदमी पा लेता है। और नींद न आए। रातभर सपने में भी शादी करे, तैयारियां करे। | कम कर्म से मिल जाए, तो और बेहतर है। खुशामद से मिल जाए, उठ-उठकर बैठ जाए। यह सब हो सकता है। लेकिन पिता भी वही और बेहतर। तैयारी कर रहा है, लेकिन कोई फल का सवाल नहीं है। सांझ क्या मंदिर में जाकर लोग परमात्मा के सामने खुशामद कर रहे हैं, होगा, इससे कोई मतलब नहीं है। खेल है, फल का कोई सवाल | स्तुति कर रहे हैं, रिश्वत का वचन दे रहे हैं कि एक नारियल चढ़ा नहीं है।
देंगे पांच आने का, जरा लड़के को पास करा दो! पक्का रहा, पांच कृष्ण कहते हैं, दूसरी बात अर्जुन, सरल है कि तू फल का आने का नारियल जरूर देंगे। 'खयाल छोड़ दे और कर्म में लगा रह।
अब जिसके पास सब कुछ हो, उसको आप पांच आने का फल का खयाल छोड़ते ही कर्ता तो गिर जाएगा। क्योंकि फल नारियल और देने का वायदा कर रहे हैं। अगर मान जाए, तो बुद्ध अगर न हो, तो कर्ता को कोई मजा ही नहीं है; उसको बचने का | | है। अगर परमात्मा आपकी मान जाए पांच आने के नारियल से, तो कोई रस नहीं है। मैं कर्म करने से नहीं बचता हूं; मैं बचता हूं, कर्म बुद्ध है निपट! लेकिन बुद्ध आप ही हैं। क्या देने गए हैं? क्या से जो मिलेगा. उसकी आकांक्षा से. उसको पाने से, उसको इकट्ठा रिश्वत बता रहे हैं? करने से। मेरा जो लोभ है, वह फल के लिए है।
इसलिए भारत जैसे मुल्क में इतनी रिश्वत बढ़ सकी, उसका अगर आपको कोई कहे कि आप जो कर्म कर रहे हैं, यह बिना कारण है गहरे में कि हम तो रिश्वत देने वाली पुरानी कौम हैं। हम किए आपको फल मिल सकता है, आप कर्म करने को राजी नहीं तो भगवान को सदा से-जब भगवान तक रिश्वत में पांच आने होंगे। आप कहेंगे, बिलकुल ठीक। यही तो हम पहले से चाहते थे। के राजी होता है, तो डिप्टी कलेक्टर नहीं होगा? तो कोई डिप्टी नहीं मिल सकता था बिना कर्म के, इसलिए कर्म करते थे। अगर कलेक्टर भगवान से बड़ी चीज है? कि कोई मिनिस्टर कोई भगवान बिना कर्म के मिल सकता है, तो सिर्फ पागल ही कर्म करने को | से बड़ी चीज है? अरे! हम भगवान को भी रास्ते पर ले आते हैं राजी होगा। हम अभी तैयार हैं।
पांच आने का नारियल चढ़ाकर! मिनिस्टर है बेचारा! इसको तो आपकी उत्सुकता कर्म में नहीं है; कर्म मजबूरी है। आपकी | | निपटा ही लेंगे। और जब मिनिस्टर देखता है कि भगवान तक नहीं उत्सुकता फल में है। फल आकांक्षा है, कर्म मजबूरी है। कर्म करना | | छोड़ रहे हैं नारियल, तो हम काहे को छोड़ें! पड़ता है, क्योंकि उसके बिना फल नहीं है। फल मिल जाए बिना और अगर किसी दिन कोई दिक्कत भी आई भगवान के सामने, कर्म के, तो कर्म फौरन छोड़ देंगे आप।
| तो कह देंगे कि तुम तो हजारों साल से ले रहे हो; हमने तो कर्ता का रस कहां है, कर्म में या फल में ? कर्ता का रस फल में | | अभी-अभी, अभी यही कोई बीस साल पहले शुरू किया। इतना है। दिखता है जुड़ा हुआ कर्म से, असल में जुड़ा है फल से। कर्ता | अनुभव भी नहीं है। और तुम तो सदा से बैठे हो सिंहासन पर, तुम्हें जो है, वह एरोड टुवर्ड्स दि रिजल्ट। उसका तीर जो है, वह हमेशा | कोई जल्दी भी नहीं है। हमारे सिंहासन का कोई भरोसा ही नहीं है। फल की तरफ है। कर्म की तरफ तो मजबूरी है।
तो जितनी जल्दी ले लें, ले लेते हैं।
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