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वासना अशुद्धि है -
है, फल को छोड़ना कठिन है। व्यक्तित्व की बनावटें हैं। और उसकी कला है।
ब्राह्मण वैसे ही कर्म में नहीं होता। ब्राह्मण कर्म के जाल के बाहर समुराई के युद्ध का जो सूत्र है, वह यह है कि जब तुम तलवार खड़ा रहता है। समाज ने फल उसके लिए निश्चित कर रखा था। चलाओ, तब तलवार ही बचे, तुम न बचो। तलवार ही चले। तुम फल से वह राजी था। कर्म वह सदा से छोड़े हुए था। यद्यपि थोड़ा तो अपने को छोड़ो। तलवार ही हो जाओ। और यह भी मत सोचना कर्म करने से ज्यादा फल मिल सकता था, लेकिन नहीं, वह बहुत | कि एक क्षण बाद क्या होगा, क्योंकि एक क्षण के बाद का तुम थोडे फल से राजी था. लेकिन कर्म की झंझट में नहीं था। कर्म | सोचोगे, तो तुम्हारे सामने की तलवार तुम्हारी गर्दन काट जाएगी। छोड़कर खड़ा था।
तुम तो अभी देखना, जो हो रहा है। एक क्षण के बाद भी हटे, चेतना __ अब महावीर या बुद्ध कर्म करें, तो क्या पैदा नहीं कर ले सकते इतनी भी हटी, कि चूके। हैं। लेकिन महावीर या बुद्ध भिक्षा का पात्र लेकर दो रोटी भीख मांग तो अगर दो समुराई कभी युद्ध में पड़ जाएं, तो बड़ा मुश्किल हो लेते हैं। उतने से तृप्त हैं। ब्राह्मण इस देश का सदा से कर्म छोड़कर जाता है। युद्ध निर्णायक नहीं हो पाता। बड़ी कठिनाई हो जाती है, जीया है। थोड़े-से फल से राजी है, अल्प फल से राजी है। कर्म के क्योंकि दोनों उसी क्षण में जीते हैं। जो भी आगे की सोचता है, वही छोड़ने में उसे कोई कठिनाई नहीं है।
हार जाता है। क्षत्रिय फल को बिलकुल छोड़ सकता है, लेकिन कर्म को नहीं | तो क्षत्रिय के लिए सरल है कि फल की फिक्र छोड़ दे। वैश्य के छोड़ सकता। क्षत्रिय के लिए सवाल यह नहीं है कि हारूंगा या | लिए सरल नहीं है कि फल की फिक्र छोड़ दे। वैश्य कह सकता है, जीतूंगा। क्षत्रिय के लिए यह भी सवाल नहीं है कि विजय मिलेगी | कर्म छोड़ सकते हैं। फल! फल जरा छोड़ना मुश्किल है। क्षत्रिय या हार हो जाएगी। क्षत्रिय के लिए सवाल यह है कि मैं लड़ा या कह सकता है, फल छोड़ सकते हैं। लेकिन कम! कम छोड़ना जरा नहीं लड़ा। क्षत्रिय को अंततः निर्णय इससे होगा कि वह लड़ा या| मुश्किल है। ट्रेनिंग है, प्रशिक्षण है। नहीं लड़ा। लड़ने से भागा तो नहीं! क्षत्रिय अगर लड़ते हुए मर ___ तो कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि तेरे लिए सुगम है, सरल है, जाएगा, तो भी भागे हुए क्षत्रिय से ज्यादा शांति से मरेगा। कर्म से | फल की आकांक्षा छोड़, युद्ध में उतर जा। कर्म पूरा कर और शेष नहीं भागा; कर्म से नहीं हटा। लड़ लिया। जो कर सकता था, वह प्रभु पर छोड़ दे। तेरे लिए पहली बात आसान नहीं है कि तू कहे कि किया। जो हो सकता था, वह हुआ। फल का कोई बड़ा सवाल नहीं मैं कर्म छोड़कर चला जाऊं। है उसके लिए।
अगर यह अर्जुन कर्म छोड़कर चला भी जाए, मान लें एक क्षण और क्षत्रिय अगर फल की सोचे, तो क्षत्रिय नहीं हो सकता। को कि गीता यहीं समाप्त हो जाती है और अर्जुन छोड़कर चले जाते क्योंकि युद्ध के क्षण में फल को भूल जाना पड़ता है। दुकान एक हैं जंगल में। क्या करेंगे? कोई आसनी बिछाकर किसी झाड़ के बात है, युद्ध दूसरी बात है। दुकान पर आप बैठकर आराम से सोच नीचे ध्यान करेंगे? ध्यान भी करेंगे, तो पास की झाड़ी में चलता सकते हैं कि क्या लाभ होगा, क्या हानि होगी। क्योंकि कर्म कोई हुआ शेर दिखाई पड़ेगा। धनुष-बाण खींच लेंगे। पक्षी सुनाई पड़ेंगे जान नहीं ले रहा है अभी आपकी। ग्राहक कोई आपकी गर्दन नहीं वृक्ष पर; याद आएगी बचपन की कि निशानेबाज था। आंख ही पकड़े हुए है। ग्राहक सामने बैठा है; आप सोच सकते हैं। आज दिखाई पड़ती थी मुझे। और मेरे सारे साथियों को पूरा पक्षी दिखाई नहीं करेंगे सौदा, कल कर लेंगे। क्षत्रिय के सामने तो कर्म इतना पड़ता था। गुरु द्रोण ने कहा था कि तू ही एक धनुर्धर है। यह याद प्रखर है कि अगर वह फल को सोचने में चला जाए, चूक जाए, आएगा। यह ट्रेनिंग है उसकी। ज्यादा देर ध्यान-व्यान नहीं करेगा, तो गर्दन कट जाए। उसको तो कर्म में ही होना चाहिए। बहुत जल्दी शिकार करने में लग जाएगा। आदमी वैसा है।
इसलिए जापान में, जहां कि क्षत्रियों का शायद आज की दुनिया कृष्ण उसे भलीभांति पहचानते हैं। कृष्ण उसके मन में गहरे में जीवित वर्ग है, समुराई। सारी पृथ्वी पर क्षत्रियों का एकमात्र, | देखते हैं कि वह आदमी कैसा है। वह लड़ने का कोई न कोई उपाय ठीक जैसा कि अर्जुन रहा होगा। अर्जुन को मैं समुराई कहता हूं! खोज लेगा जंगल में। वह कोई न कोई उपद्रव में पड़ेगा। वह बिना कभी समुराई हमने पैदा किए थे। अब वे नहीं हैं। जापान में एक | लड़े नहीं जी सकेगा। क्योंकि बिना लड़े तलवार पर जंग चढ़ छोटा-सा वर्ग है, समुराई। लड़ना ही उसका जीवन, उसका आनंद जाएगी। बिना लड़े क्षत्रिय पर भी जंग चढ़ जाती है। उसकी तो धार,
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