________________
सत्य एक–जानने वाले अनेक
हो जाते हैं। दो के पीछे रख दें, तो बीस हो जाते हैं। और दो शून्यों आधी रात तक लिखता ही रहता था। क्योंकि बड़ा था काम और को आस-पास रख दें, तो कुछ मतलब नहीं होता। दो शून्य भी नहीं जिंदगी थी छोटी। और भरोसा नहीं था कि किताब पूरी हो सके। होते जुड़कर। शून्य दो नहीं होते; शून्य एक ही रहता है। शून्य का आधी किताब जब पूरी हो गई थी, एक दिन दोपहर को घर के कोई जोड़ नहीं होता। बुद्ध और महावीर नहीं मिले, क्योंकि दो शून्य | आस-पास जोर से शोरगुल मचा। लेकिन वह तो अपने काम में के जुड़ने का कोई अर्थ नहीं था। बात क्या होती? कहने को क्या | लगा रहा। शोरगुल बढ़ता चला गया। तब वह उठकर बाहर आया, था? बोलने को क्या था? बताने को क्या था?
उसने कहा, बात क्या है! लोग भाग रहे थे। पूछा, बात क्या है? इसलिए सत्य को जब भी कोई जानता है, तो जो नहीं जानते, किसी ने कहा, हत्या हो गई। तुम्हारे मकान के पीछे मर्डर हो गया। उनसे बोलता है। बस, उपद्रव शुरू हो जाता है। जो नहीं जानता, एक से पूछा; उसने कुछ कहा कि किस तरह हुआ। दूसरे से पूछा; वह सुनता है। स्वभावतः, जो कहा जाता है, वह कभी नहीं सुना | उसने कुछ कहा। वे सब आंखों देखे हुए, चश्मदीद गवाह थे। जाता; कुछ और ही सुना जाता है। हम वही सुन सकते हैं, जो हम | बर्क भागा हुआ अपने मकान के पीछे पहुंचा। वहां लोग मौजूद जानते हैं। अब यह बड़ी कठिनाई हो गई। यह पैराडाक्स हो गया! थे। भीड़ लगी थी। लाश सामने पड़ी थी। हत्यारा पकड़ लिया गया
हम वही सुन सकते हैं, जो हम जानते हैं। जो हम नहीं जानते, था। लेकिन सबके वर्सन अलग थे। देखने वाला कोई कह रहा था वह हम सुन नहीं सकते। नहीं; सुन तो लेंगे। कान सुनने का काम कि जिम्मेवार कौन है। कोई कह रहा था कि जो मारा गया, वह ठीक पूरा कर देंगे। लेकिन भीतर वह जो मन है, वह समझ नहीं पाएगा। | ही मारा गया। कोई कह रहा था, जिसने मारा, उसने बहुत बुरा नहीं; समझ भी लेगा, लेकिन कुछ और समझ लेगा, जो कहा नहीं | किया। कोई कह रहा था, हत्यारा जिम्मेवार नहीं है। कोई कह रहा गया है। हम वही समझते हैं, जो हम समझ सकते हैं।
था कि हत्यारा जिम्मेवार है। बर्क ने सबसे पूछा और लौटकर पंद्रह · कृष्ण अर्जुन से बोल रहे हैं। स्वभावतः, अर्जुन वही समझेगा, | साल जो किताब में मेहनत लगाई थी, उसमें आग लगा दी। उसने जो अर्जुन समझ सकता है। वह तो अर्जुन कभी नहीं समझ सकता, | | लिखा कि जब मेरे घर के पीछे हत्या हो जाए, और आंखों देखने जो कृष्ण बोल रहे हैं। क्योंकि अगर अर्जुन वह समझ सकता, तो | वाले लोगों की गवाहियां अलग हों, तो पांच हजार साल पहले क्या कृष्ण का बोलना फिजूल हो जाता, बेकार हो जाता।। हुआ था, इसको पांच हजार साल बाद मैं लिखं, यह व्यर्थ है। इस
र शिष्य के बीच फासला न हो. तब बातचीत हो सकती झंझट में मैं नहीं पहुंगा। बर्क ने अपने पत्र में लिखा है कि इतिहास है, लेकिन तब बातचीत बेकार हो जाती है। और गुरु और शिष्य | सरासर झूठ है। सच्चा इतिहास लिखा ही नहीं जा सकता। के बीच फासला हो, तब बातचीत हो नहीं सकती, हालांकि तब __ जैसे ही कृष्ण बोलते हैं, सत्य बदलने लगा। जैसे ही पहुंचा दूसरे बातचीत की जरूरत होती है! ऐसी स्वाभाविक कठिनाई है। के पास, रूप बदला, लुप्त होना शुरू हुआ। लेकिन यह तो मैंने
तो महावीर बोलते हैं उनसे, जो नहीं जानते। बुद्ध बोलते हैं बाहर की बात कही। अगर हम थोड़े और भीतर पहुंचें, तो और भी उनसे, जो नहीं जानते। जो नहीं जानते हैं, वे सुनते हैं; सुनकर अर्थ | एक कठिनाई है। सत्य बोला गया, तब तो लुप्त होता ही है, सुनने निकालते हैं। अर्थ उनके अपने होते हैं। बुद्ध अगर हजार लोगों में | वाले के कारण; लेकिन जब बोला जाता है, तो बोलने की प्रक्रिया बोलते हैं, तो हजार अर्थ होते हैं। मैं आपसे जो कुछ कहूंगा; इस | के कारण भी लुप्त होता है। भूल में मैं नहीं हो सकता कि आप सब उससे एक ही अर्थ निकाल | असल में सत्य है विराट, और शब्द है संकीर्ण। शब्द बहुत लेंगे। यह असंभव है। जितने यहां मित्र इकट्ठे हैं, उतने ही अर्थ | छोटा है, सत्य बहुत बड़ा है। उस सत्य को जैसे ही शब्द में रखने लेकर जाएंगे। उतने अर्थ मेरे बोलने में नहीं हैं, मेरे बोलने में | की कोई चेष्टा करता है, कठिनाई शुरू हो जाती है। इसलिए सभी सुनिश्चित एक ही अर्थ है। लेकिन आप अपने अर्थ लेकर जाएंगे। जानने वाले निरंतर कहने के बाद, यह कहते चले जाते हैं कि जो
एडमंड बर्क दुनिया का इतिहास लिख रहा था। कोई पंद्रह साल | कहना था, वह कहा नहीं जा सका। जो कहना चाहा था, वह उसने मेहनत की थी और आधा इतिहास लिख चुका था। पंद्रह | | अनकहा छूट गया। साल और, तीस साल; करीब अपनी पूरी जिंदगी की समझदारी का | ___ रवींद्रनाथ मर रहे थे। एक मित्र आया और उसने कहा कि समय वह इतिहास पर लगा रहा था। सुबह से उठता था, तो रात धन्यभागी हो तुम! तुमने तो छह हजार गीत लिखे। तुम्हें तो तृप्त हो