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गीता दर्शन भाग-20
सोने की हैं, लेकिन फिर भी दीवारें हैं। माना कि बंधन नीति के सोने | हिस्सा क्या है कर्म का? भीतरी हिस्सा कर्ता है, दि डुअर। डूइंग बाहर के हैं, लोहे की जंजीरें नहीं हैं; हीरे-जवाहरातों से जड़ी हैं, लेकिन | है; डुअर भीतर है। ये एक ही घटना के दो हिस्से हैं। बाहर कर्म छुटे, फिर भी जंजीरें हैं।
तो भीतर कर्ता विदा हो जाएगा। सच में ही कर्म छूट जाए, तो कर्ता कृष्ण तो परम मुक्ति की बात कर रहे हैं। वे कह रहे हैं, ये तीन | | तत्काल विदा हो जाएगा, क्योंकि कर्म के बिना कर्ता हो नहीं सकता। शर्त तू पूरी कर, फिर तू कुछ भी कर। फिर अगर तू भागता भी हो | कर्ता का मतलब ही यह है कि जो कर्म करता है। यहां से, तो मैं तुझसे नहीं कहूंगा कि तू रुक। तू लड़ता हो, तो मैं लेकिन भाषा में गलती होती है। एक पंखा है आपके हाथ में। मैं नहीं कहूंगा कि मत लड़। लेकिन ये तीन शर्त पूरी हो जानी चाहिए। | पूछता हूं, पंखे का क्या अर्थ है? आप कहते हैं, जो हवा करता है।
इस लिहाज से इस जमीन पर जगत के श्रेष्ठतम वक्तव्य दिए जा | लेकिन अभी पंखा हवा नहीं कर रहा है, आप हाथ में पकड़े हुए सके हैं। पृथ्वी पर किसी भी देश में इतने श्रेष्ठ वक्तव्य देने की | | बैठे हैं। अभी पंखा है या नहीं? पंखे की परिभाषा है, जो हवा करता स्थिति कभी भी पैदा नहीं हुई थी। इतनी उड़ान की और इतनी ऊंची | है; डोलता है, हवा करता है। अभी डोल नहीं रहा है। तो अगर ठीक बात, बादलों के पार, जहां सब अतिक्रमण हो जाता है, वहीं है परम | | सिमैनटिक्स, ठीक भाषा का प्रयोग करें, तो अभी वह पंखा है नहीं। स्वतंत्रता और परम मुक्ति। ऐसे व्यक्ति को कोई भी कर्म नहीं | पंखा तो वह है, जो पंख की तरह हवा करता है। पोटेंशियल है बांधता है।
अभी, कर सकता है। इसलिए हम कामचलाऊ दुनिया में कहते हैं, पंखा है। इसका मतलब यह है कि पंखा हो सकता है। इसका
उपयोग करें, तो यह पंखे का काम दे सकता है। . प्रश्नः भगवान श्री, आपने कर्म-संन्यास का अर्थ | | एक किताब रखी है। किताब का मतलब यह है कि जिसमें कुछ कर्म-त्याग कहा है। लेकिन पिछले छठवें श्लोक में | | ज्ञान संगृहीत है। लेकिन मैं किताब उठाकर आपके सिर पर मार देता कर्म-संन्यास का अर्थ संपूर्ण कर्मों में कर्तापन का | हूं, उस वक्त वह किताब नहीं है। उस वक्त वह पत्थर का काम कर त्याग कहा गया है। कृपया कर्म-संन्यास के इन दो | | रही है। भाषा में तो अब भी किताब है। हम कहेंगे, किताब फेंककर अर्थों में दिखाई पड़ने वाली भिन्नता को स्पष्ट करें। | मार दी। लेकिन किताब, किताब का मतलब ही यह है कि जिसमें
| ज्ञान संगृहीत है। कहीं संगृहीत ज्ञान फेंककर मारा जा सकता है?
लेकिन जब मैं किताब को फेंककर मार रहा हूं, तो वस्तुतः मैं किताब कर्म-संन्यास का बहिअर्थ तो कर्म का त्याग है। अंतर्थ | का उपयोग किताब की तरह नहीं कर रहा हूं, पत्थर की तरह कर पा भी है। क्योंकि मनुष्य के जीवन में जो भी घटना रहा हूं। अगर वैज्ञानिक ढंग से कहना हो, तो उसको अब किताब
___ घटेगी, उसके दो पहलू होंगे, बाहर भी, भीतर भी। नहीं कहना चाहिए। अब वह किताब नहीं है। अब इस वक्त वह अगर कर्म-संन्यासी को आप देखेंगे बाहर से, तो दिखाई पड़ेगा कि | पत्थर है। कर्म का त्याग किया।
जब तक आप कर्म कर रहे हैं, तब तक आप कर्ता हैं। कर्म बंद महावीर चले जंगल की तरफ; छोड़ दिया राजमहल, धन, घर, | | हुआ, कर्ता खो गया। कर्ता बचता नहीं। इससे उलटा भी सही है। द्वार, प्रियजन, परिजन। हम देखने खड़े होंगे मार्ग में, तो क्या कर्ता खो जाए, कर्म खो जाता है। दिखाई पड़ेगा? दिखाई पड़ेगा कि महावीर जा रहे हैं सब छोड़कर। | जहां तक दूसरों के देखने का संबंध है, वहां पहले कर्म खोता है। कर्म छोड़कर जा रहे हैं। अगर हम कहेंगे कि महावीर के कर्म और जहां तक स्वयं के देखने का संबंध है, पहले कर्ता खोता है। संन्यास का क्या अर्थ है? तो अर्थ होगा, कर्म का त्याग। लेकिन | अगर मैं अपने भीतर से देखें, तो पहले मेरा कर्ता खो जाएगा, तभी अगर महावीर से पूछे कि उनके भीतर क्या हो रहा है? क्योंकि | | मेरा कर्म खोएगा। पहले मैं कर्ता नहीं रह जाऊंगा, तभी मेरा कर्म गिर घर-द्वार, महल, हाथी, घोड़े भीतर नहीं हैं। कर्म, प्रिय, परिजन | जाएगा। लेकिन जहां तक आप देखेंगे, पहले कर्म गिरेगा, पीछे आप भीतर नहीं हैं। भीतर क्या है?
अनुमान लगाएंगे कि कर्ता भी खो गया होगा। क्योंकि मेरे भीतर के जब बाहर से कोई कर्म छोड़ता है, तो भीतर क्या छूटता है? भीतरी कर्ता को आप देख नहीं सकते, सिर्फ मैं ही देख सकता हूं।
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