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________________ O सम्यक दृष्टि होना जारी है। चोर वह अब भी है। प्रतीक्षा कर रहा है, कब अवसर | किसी झील में दिखाई पड़ जाएगा। कभी किसी पानी के झरने में मिले। शायद और बड़ा चोर होकर बाहर निकलेगा। दिखाई पड़ जाएगा। कभी कोई राहगीर गुजरता होगा, उसकी आंख अब तक तो यही हुआ है। अब तक कोई कारागृह किसी चोर | में दिखाई पड़ जाएगा। को चोरी से मुक्त नहीं करा पाया है, सिर्फ निष्णात चोर बनाकर ___ सुना है मैंने कि एक संन्यासी तीस वर्ष तक हिमालय पर था। बाहर भेजता है—ट्रेंड! क्योंकि और सदगुरु वहां उपलब्ध हो जाते | तीस वर्ष जिस चीज को छुड़ाने आया था, वह कभी की छूट गई। हैं! और भी गहन ज्ञानी, अनुभवी पुरुष! और चोर को भी पता चल | फिर आश्वस्त हो गया। अहंकार से पीड़ित था, उसी से बचने सब जाता है कि यह चोरी का दंड नहीं मिल रहा है। यह दंड तो चोरी छोडकर हिमालय आया था। गल गया. हिमालय की ठंड। नहीं ठीक से न करने का मिल रहा है। अभ्यास करूं, और-और साधू बचा होगा। लेकिन कहीं ठंड से. सर्दी से अहंकार गलते हैं? कुशलता, तो फिर यह भूल नहीं होगी। हिमालय की ऊंचाई अहंकार न चढ़ पाया होगा! इतनी ऊंचाई पर कोई अदालत, कोई जेलखाना अब तक किसी चोर को चोरी से | | थक गया होगा, सांस भर गई होगी! नीचे ही रुक गया होगा, नहीं छुड़ा पाया। कर्म से छुड़ा देता है। वही भ्रम है, जो कई बार | संन्यासी ऊपर चला गया होगा। लेकिन अहंकार कहीं थकता है कर्मत्यागी भी कर बैठता है । ऊंचाइयां चढ़ने से? कर्मत्यागी सोचता है कि ठीक है, बाजार में बैठता हूं, तो लोभ | । सच तो यह है कि अहंकार ऊंचाइयां चढ़ने से बड़ा प्रसन्न होता पकड़ता है। तो बाजार छोड़ दूं। जैसे कि बाजार में लोभ पैदा करने है। अहंकार ऊंचाइयां चढ़ने की आकांक्षा का नाम है। जितना ऊंचा का कोई उपाय हो! लोभ तो होता है भीतर। बाजार में तो लोभ नहीं| शिखर हो, उतना ही उसका दम फूलता नहीं और मजबूत होता है। होता। सोचता है, बाजार में लोभ पकड़ता है, बाजार छोड़ दूं। स्त्री | लेकिन तीस साल अहंकार की रेखा भी पता न चलती थी। को देखकर वासना जगती है, स्त्री की तरफ पीठ कर लूं। पद को भरोसा हो गया पक्का। बहुत तरह से खोजकर देखा, कहीं अहंकार देखकर मन होता है कि पद पर चढ़कर बैठ जाऊं, तो ऐसी जगह न था। फिर उसने सोचा, अब क्या डर है! अब वापस चलूं। नीचे चला जाऊं, जहां पद ही न हो। तो कोई कर्म को छोड़कर भाग | उतरकर एक गांव के पास रहने लगा। गांव के लोग आने लगे। सकता है। सौ में से निन्यानबे मौके पर डर इस बात का है कि कर्म | दर्पण वापस लौट आए। कोई पैर छूने लगा, कोई महात्मा कहने तो छूट जाए और आकांक्षा और वासना न छूटे। तब वह जंगल के लगा। भीतर कोई चीज जो तीस साल से बिलकुल पता न थी, झाड़ के नीचे बैठकर भी वही आदमी होगा, जो बाजार में था। धीरे-धीरे उठने लगी। पर अभी भी उसे पता नहीं है, क्योंकि आदमी में कोई क्वालिटेटिव, कोई गुणात्मक अंतर नहीं पड़ेगा। पहचान भूल गई, रिकग्नीशन भूल गया। तीस साल से देखा नहीं, परिस्थिति बदल जाएगी. मनःस्थिति नहीं बदलेगी। | एकदम से समझ में नहीं आता कि क्या हो रहा है। लेकिन कुछ हो एकदम से समझ में नहीं आता कि क्या हो मनःस्थिति बदलनी बड़ी कठिन बात है! और जो मनःस्थिति रहा है। कोई चीज, कोई गर्मी, कोई ऊष्मा चारों तरफ खून में फैलती बदल सकता है, कृष्ण कहते हैं, वह छोड़कर भी क्यों जाएं? वह चली जाती है। यहां भी बदल सकता है। और जो यहां नहीं बदल सकता, क्या फिर बड़ा मेला भरता था, कुंभ का भरता होगा। कुंभ का मेला भरोसा है कि वह वहां बदल सकेगा? जाऊंगा तो मैं ही, मैं चाहे | महात्माओं की परीक्षा के लिए बड़ी अच्छी जगह है! बाजार में रहूं और चाहे हिमालय पर चला जाऊं। बाजार तो यहीं ___ गांव के लोगों ने कहा, इतने बड़े महात्मा और कुंभ के मेला नहीं रह जाएगा बंबई में, मैं हिमालय चला जाऊंगा। लेकिन मैं तो अपने | चलेंगे, तो नहीं चलेगा। बड़ा महात्मा और कुंभ के मेला न जाए, साथ ही चला जाऊंगा। मेरे सारे रोग, मेरे सारे मन की रुग्णताएं मेरे ऐसा हो नहीं सकता। चलना ही पड़ेगा। फिर महात्मा ने कहा, अब साथ चली जाएंगी। उनको यहां नहीं छोड़कर जा सकूँगा। । | डर भी क्या है! जिस चीज से डरते थे, वह तो खतम ही हो चुकी। हां, अवसर हो सकता है यहां छूट जाए। हो सकता है, दर्पण | चल सकते हैं। यहां छूट जाए, लेकिन चेहरा तो मेरा मेरे साथ चला जाएगा। और लेकिन यह खयाल भी आ जाना कि मेरा अहंकार खतम हो चुका यह भी हो सकता है कि दर्पण न हो, तो चेहरा दिखाई न पड़े। है, बड़ा गहरा अहंकार है। इसका उसे पता नहीं। चल पड़ा। जब लेकिन इससे चेहरा नहीं है, यह तो नहीं है। चेहरा तो है ही। कभी कुंभ के मेले में पहुंचे, भीड़ थी भारी, महात्मा को कोई पहचानता 309
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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