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O सम्यक दृष्टि -
देखना है। जो ऐसा नहीं जानते, उनका देखना मिथ्या देखना है। | और कहां आकाश शुरू होता है? आकाश पृथ्वी को सब ओर से ___एक अंतिम बात और इस संबंध में आपसे कहूं, और वह यह | | घेरे हुए है। गड्ढा खोदें पृथ्वी में। तो कुआं खोदते हैं, तब आप है, न देखना, गलत देखने से बेहतर है। न देखना, आंख का बंद | सोचते हैं कि आप पृथ्वी खोद रहे हैं? आप गलती कर रहे हैं। आप होना, मिथ्या देखने से बेहतर है। न देखने वाला किसी न किसी | सिर्फ मिट्टी अलग कर रहे हैं और आकाश को प्रकट कर रहे हैं। दिन जल्दी ही देखने पर पहुंच जाएगा। लेकिन गलत देखने वाले जब आप गड्डा खोदकर कुआं खोदते हैं, तो जमीन के भीतर की ठीक देखने पर पहुंचने में बड़ी लंबी यात्रा है।
आकाश मिल जाता है। खोदते चले जाएं और आकाश मिलता ___ अज्ञान मिथ्या ज्ञान से भी खतरनाक है। फाल्स नालेज इग्नोरेंस चला जाएगा। आर-पार हो जाएं; यहां से खोदें और अमेरिका में से भी खतरनाक है। क्योंकि अज्ञान में एक विनम्रता है, मिथ्या ज्ञान | निकल जाएं, तो बीच में आकाश ही आकाशं मिलता चला जाएगा। में विनम्रता नहीं है। अज्ञानी कहता है. मैं नहीं जानता। एक गहरी | वैज्ञानिक कहते हैं कि पथ्वी भी श्वास लेती है. पोरस है। पथ्वी विनम्रता है, ईगोलेसनेस है। अज्ञानी अनुभव करता है कि मैं नहीं | भी छिद्रहीन नहीं है; सछिद्र है। वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर हम पृथ्वी जानता, तो जानने की संभावना निरंतर मौजूद रहती है। | को कनडेंस कर सकें, उसमें जितना आकाश है उसको बाहर निकाल
मिथ्या ज्ञानी सोचता है कि मैं जानता हूं, बिलकुल ठीक से सकें, तो एक छोटी-सी बच्चे के खेलने की गेंद के बराबर कर सकते जानता हूं, जानने का द्वार भी बंद हो गया। जानने की यात्रा भी शुरू | हैं। लेकिन वह बच्चे की गेंद भी पोरस होगी और विज्ञान अगर किसी नहीं होगी। और मिथ्या ज्ञानी को खयाल है कि मैं जानता हूं, तो वह | दिन और समर्थ हो जाए, तो उसे और छोटा कर सकता है। जिस चीज को जानता है, उसे जोर से पकड़े बैठा रहता है। और आकाश और पृथ्वी अलग नहीं, एक ही हैं। पृथ्वी आकाश से जब तक मिथ्या ज्ञान न हट जाए, तब तक सम्यक ज्ञान के उतरने | ही बनती है, वैज्ञानिक कहते हैं। आकाश से ही जन्मती है। जैसे का कोई उपाय नहीं है।
पानी में भंवर पड़ती है, पानी की ही भंवर। ऐसे ही आकाश जब - हाथ खाली हो, बेहतर। तो किसी दिन हीरे दिखाई पड़ जाएं, तो | | भंवर से भर जाता है, नेबुला बन जाता है, तो पृथ्वी बनती है। फिर
खाली हाथ उन्हें उठा ले सकते हैं। लेकिन हाथ कंकड़-पत्थर को एक दिन पृथ्वी आकाश में खो जाती है। हीरे समझकर बांधकर मुट्ठियां बंद हुए बैठे हों, तो खतरनाक। रोज न मालूम कितने ग्रह आकाश में वापस खो रहे हैं, जैसे रोज क्योंकि हीरे भी दिखाई पड़ जाएं, तो शायद ही दिखाई पड़ें। क्योंकि | आदमी मृत्यु में खो जाते हैं। और रोज बच्चे पैदा होते रहते हैं। जिसकी मुट्ठी में रंगीन पत्थर बंद हैं और जो सोच रहा है कि मेरे आदमी ही पैदा होते हैं, ऐसा नहीं; चांद-तारे भी रोज पैदा होते हैं। पास हीरे हैं, वह शायद ही अपनी मुट्ठी को छोड़ इस बड़े जगत में और रोज चांद-तारे मरते रहते हैं। पैदा होते हैं शून्य आकाश से, खोजने निकले कि हीरे कहीं और हैं। हीरे तो उसके पास हैं ही, विलीन हो जाते हैं शून्य आकाश में। आकाश और पृथ्वी दो नहीं। इसलिए उसकी यात्रा बंद है।
गेहूं आप खा लेते हैं, खून बन जाता है। चेतना बन जाती है। कृष्ण कहते हैं, जो इन दो विरोधों के बीच एक को देख पाता है, कहते हैं, पत्थर और चेतना अलग है। सिर्फ नासमझ कहते हैं। वही ठीक देखता है।
क्योंकि मिट्टी भी आपके भीतर जाकर चेतन हो जाती है। आपका दो विरोधों के बीच एक को देख पाना इस जगत का सबसे बड़ा शरीर मिट्टी से ज्यादा क्या है? इसलिए कल जब मर जाएंगे, तो . अनुभव है। दो विरोधों के बीच एक को देख पाना गहरी से गहरी, | डस्ट अनटु डस्ट, मिट्टी मिट्टी में गिर जाएगी। मरे हुए आदमी को सूक्ष्म से सूक्ष्म दृष्टि है। नहीं दिखाई पड़ता। आकाश और पृथ्वी हम कहते हैं कि मिट्टी उठाओ जल्दी। कल तक आदमी था, जिंदा एक नहीं दिखाई पड़ते। कहां आकाश, कहां पृथ्वी! दो दिखाई पड़ते था, जीवित था। कोई कह देता, मिट्टी हो, तो छुरा निकालकर खड़ा हैं साफ! जन्म और मृत्यु एक दिखाई नहीं पड़ते; साफ दो दिखाई हो जाता। आज हम कहते हैं, मिट्टी जल्दी उठाओ। पड़ते हैं। पत्थर और चेतना एक नहीं दिखाई पड़ते; साफ दो दिखाई सब मिट्टी में खो जाता है। मिट्टी से ही आया था, इसीलिए मिट्टी पड़ते हैं।
में खो जाता है। रोज मिट्टी ही खा रहे हैं। जिसको आप भोजन कहते लेकिन हमारा साफ दिखाई पड़ना बहुत ही गलत है। आकाश | | हैं, मिट्टी से ज्यादा नहीं है। हां, दो-चार स्टेजेज पार करके आता और पृथ्वी दो नहीं हैं। बता सकते हैं, कहां पृथ्वी समाप्त होती है । है, इसलिए खयाल में नहीं आता।
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