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________________ गीता दर्शन भाग-20 अभी अमेरिका में एक वैज्ञानिक ने, एक वनस्पति-शास्त्री ने एक तो कभी अंतर्मुखी। इस स्थिति में कृपया समझाएं कि बहुत अनूठा प्रयोग किया और बहुत हैरान हुआ। उसने एक कोई व्यक्ति ठीक-ठीक कैसे निर्णय करे कि वह वट-वृक्ष लगाया एक गमले में। गम पकर लगाया। अंतर्मुखी है अथवा बहिर्मुखी है? जितना पानी उसमें डालता था, उसका नाप रखता था। वृक्ष बड़ा होने लगा। फिर जब वृक्ष पूरा बड़ा हो गया, तो वृक्ष और गमले को उसने नापा। हैरान हुआ। वृक्ष को निकालकर नापा, तो और हैरान हुआ। न हिर्मुखता का अर्थ है, कि व्यक्ति की चेतना निरंतर वृक्ष तो सैकड़ों पौंड का हो गया और गमले की मिट्टी केवल डेढ़ पौंड | प बाहर की तरफ दौड़ती है। वह बाहर कोई भी हो सकता कम हुई। और वह भी उसका कहना है कि वृक्ष में नहीं गई। वह डेढ़ है। धन हो सकता है, धर्म हो सकता है। पद हो सकता पौंड मिट्टी भी पानी डालने में, हवा में, यहां-वहां उड़ गई। है, परमात्मा हो सकता है। इससे फर्क नहीं पड़ता। किस चीज की यह वृक्ष कहां से आया? यह सैकड़ों पौंड का वृक्ष! इसमें | तरफ दौड़ती है, इससे फर्क नहीं पड़ता। बहिर्मुखी चेतना, थोड़ा-सा दान मिट्टी ने दिया, बड़ा दान आकाश ने दिया, हवाओं एक्सट्रोवर्ट कांशसनेस, बाहर की तरफ दौड़ती है। भीतर से बाहर ने दिया, पानी ने दिया। की तरफ यात्रा होती रहती है। और शायद अभी हमें पता नहीं-विज्ञान को कम से कम पता इसका पता लगाया जा सकता है। कभी आंख बंद करके बैठे। नहीं—कि इस सब दान के बाद भी एक और अज्ञात स्रोत है। देखें कि चेतना कहां दौड़ रही है। अगर बहिर्मुखी हैं, तो चेतना परमात्मा का, जो प्रतिपल दे रहा है। उसने दिया। पर उसका तो | | बाहर की तरफ दौड़ती हुई पाएंगे। धन के संबंध में सोच रहे होंगे, किसी पौंड में वजन नहीं नापा जा सकता। वह किसी माप के बाहर | मित्रों के संबंध में, शत्रुओं के संबंध में या परमात्मा के संबंध में, है। लेकिन वैज्ञानिक सोचते थे कि शायद यह सारी की सारी मिट्टी | इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बाहर, कोई और, कोई आब्जेक्ट चित्त है, तो गलत हो गई बात। इसमें आकाश भी समाया हुआ है। | को पकड़े रहेगा। दौड़ते रहेंगे बाहर की तरफ। इसलिए जब इसको जला देंगे, तो आकाश आकाश में चला बहिर्मुखी लोगों ने ही परमात्मा को ऊपर आकाश में बना रखा जाएगा। पानी पानी भाप बन जाएगा। मिट्टी जितनी है, वह फिर | है। हाथ भी जोड़ेंगे वे, तो आकाश के परमात्मा को जोड़ेंगे। पूछे, वापस राख होकर मिट्टी में खो जाएगी। परमात्मा कहां है? तो बहिर्मुखी आकाश की तरफ देखेगा। पूछे, नहीं, आकाश और पृथ्वी अलग नहीं हैं। नहीं, मिट्टी और चेतना | | परमात्मा कहां है? तो अंतर्मुखी आंख बंद करके भीतर की तरफ भी अलग नहीं हैं। नहीं, पदार्थ और परमात्मा भी अलग नहीं हैं। | देखेगा। लेकिन अज्ञानी सब चीजों को दो में करके देखते हैं—विरोध में, अंतर्मुखी का लक्षण यह है कि जब आप आंख बंद करके बैठे, पोलेरिटी में। जब तक अज्ञानी दो न बना ले, तब तक देख ही नहीं | | तो पाएं कि बाहर की तरफ चित्त नहीं दौड़ता। भीतर की तरफ डूबता पाता है। और ज्ञानी जब तक दो में एक को न देख ले, तब तक देख | जा रहा है, सिंकिंग की फीलिंग होगी, जैसे कोई नदी में डूब रहा है। ही नहीं पाता। | भीतर की तरफ डूबते जा रहे हैं। बहिर्मुखी को बाहर दौड़ने में बड़ा इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो ऐसा देखता है, वही देखता है। | रस मालूम पड़ेगा। अंतर्मुखी को भीतर डूबने में बड़ा रस मालूम कर्म-संन्यास भी और कर्मयोग भी एक ही परम स्थिति को उपलब्ध | पड़ेगा। बहिर्मुखी को भीतर डूबना मौत जैसा मालूम पड़ेगा कि मर करा देते हैं। जाएंगे। इससे तो बेहतर है कि कुछ और कर लें। अंतर्मुखी को बाहर की बात सोचना-विचारना बहुत ही कष्टपूर्ण, बहुत भारी, बहुत बोझिल हो जाएगा। अंतर्मुखी एकांत मांगेगा, बहिर्मुखी भीड़ प्रश्नः भगवान श्री, पहले दिन आपने कहा कि चाहेगा। ये लक्षण बता रहा हूं। कर्म-संन्यास अंतर्मुखी व्यक्ति की साधना है तथा अंतर्मुखी को एकांत में छोड़ दो, तो प्रसन्न हो जाएगा। भीड़ में निष्काम कर्म बहिर्मुखी व्यक्ति की साधना है। लेकिन | | खड़ा कर दो, तो उदास हो जाएगा। अंतर्मुखी भीड़ से लौटेगा, तो लोगों का अनुभव है कि कभी वे बहिर्मुखी होते हैं, || | उसको लगेगा, कुछ खोकर लौट रहा हूं। और एकांत से लौटेगा, | 304
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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