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________________ O सम्यक दृष्टिल हटाकर देखते हैं, या ऐसा कहें कि जो शून्य होकर देखते हैं, जो | तक ही पहुंचते हुए दिखाई पड़ते हैं। वह तो कहेगा कि रावण भी बीच में नहीं आते। वे तो ऐसा ही देखते हैं कि चाहे कोई कर्म के | अपने रास्ते से परमात्मा तक ही पहुंच रहा है। और राम भी अपने जगत में जीकर आकांक्षाओं को छोड़कर चले, या कोई कर्म को ही रास्ते से परमात्मा तक ही पहुंच रहे हैं। उतना गहरा देखने पर तो छोड़कर चल दे, अंतिम उपलब्धि एक ही होती है। राम और रावण के बीच का भी फासला गिर जाएगा। लेकिन उतना लेकिन यह उनकी प्रतीति है, जिनके पास अपने कोई विचार गहरा देखना तभी संभव है, जब हमारे भीतर विचार का द्वैत आरोपित करने को नहीं हैं। यह उनकी स्थिति है, जो निर्विचार हैं। विसर्जित हो गया हो। यह उनकी स्थिति है. जिनके पास अपना कोई भी खयाल यथार्थ के हम देखते नहीं. हम विचार से देखते हैं। इस फर्क को खयाल ऊपर रोपने को नहीं है। लेकिन बाकी शेष सारे लोग दोनों में विरोध । में ले लें। एक फल के पास खडे हैं: गलाब का फल खिला है। देखेंगे। | आप सोचते होंगे, गुलाब के फूल को देखते हैं, तो गलत सोचते विरोध दिखाई पड़ता है। कहां तो कर्म का जीवन, और कहां सारे | हैं। गुलाब के फूल को देख भी नहीं पाते कि मन के जगत में विचारों कर्म को छोड़कर चले जाने वाला जीवन! अगर ये दोनों विरोधी नहीं का जाल खड़ा हो जाता है। लगता है मन को, सुंदर है फूल! एक हैं, तो फिर इस जगत में क्या विरोधी हो सकता है! कहां तो एक | विचार आ गया। अतीत में जो-जो गुलाब का अनुभव है, उस व्यक्ति, जो दैनंदिन जीवन के छोटे-छोटे कर्मों में घिरा है! कृष्ण, | सबकी स्मृति बीच में खड़ी हो गई। जो-जो सुना है, बचपन से युद्ध के मैदान पर खड़े हैं। कहां बुद्ध, जीवन का सारा संघर्ष | जो-जो कंडीशनिंग हुई है। जरूरी नहीं है कि अगर आपको बचपन छोड़कर हट गए हैं। कहां जनक, महलों में, जीवन के घने बाजार | से न समझाया गया हो कि गुलाब सुंदर है, तो आपको सुंदर दिखाई के बीच, साम्राज्य के बीच खड़े हैं! कहां महावीर, वस्त्र के भी रहने | | पड़े। जरूरी नहीं है। बहुत कुछ तो सिखावन है। से शरीर पर कहीं कर्म का कोई लेप न चढ़ जाए, इसलिए वस्त्र भी | अगर चीन में जाकर पूछे, तो गाल पर अगर हड्डी निकली हो, छोड़कर नग्न हो गए हैं! कहां मोहम्मद, तलवार लेकर जूझने को तो सुंदर है। हिंदुस्तान में नहीं होगी। बचपन से जाना है जिसे तैयार। कहां महावीर, पैर भी फूंककर रखेंगे कि चींटी न दब जाए! | सुंदर, वह सुंदर प्रतीत होने लगा है। सारी दुनिया में सौंदर्य के इन दोनों आदमियों को एक देख पाना अति कठिन है। सहज ही अलग-अलग मापदंड हैं। नीग्रो के लिए ओंठ का मोटा होना बहुत प्रतीत होता है कि विपरीत हैं दोनों बातें। विपरीत ही दिखाई पड़ती सुंदर है। इसलिए नीग्रो स्त्रियां अपने ओंठ में पत्थर बांधकर और हैं दोनों बातें। लटकाकर उसको चौड़ा करती रहेंगी। लेकिन हमारे मुल्क में ओंठ लेकिन कृष्ण कहते हैं, विपरीत उसे दिखाई पड़ती हैं, जो अज्ञानी का पतला होना सौंदर्य है। ओंठ किसी का मोटा है, तो उसको भीतर है। इसे थोड़ा ठीक से समझ लेना चाहिए। दबाता रहेगा कि मोटा ओंठ बाहर दिखाई न पड़ जाए। इस जगत में जो-जो चीज विपरीत दिखाई पड़ती है. वह अज्ञान गलाब का फल संदर दिखाई पड़ता है, यह सना-सीखा संस्कार के कारण ही विपरीत दिखाई पड़ती है। जहां-जहां भेद, जहां-जहां | | है। यह विचार है या कि यह दर्शन है? यह दर्शन तो तभी होगा, द्वैत, डुअलिटी दिखाई पड़ती है, वह अज्ञान के कारण ही दिखाई | जब गुलाब के फूल के पास खड़े हों और सिर्फ खड़े हों, सोचें जरा पड़ती है। अंधेरे और प्रकाश में भी विरोध नहीं है। और जन्म और भी न। आंख से गुलाब को उतर जाने दें, विचार को बीच में न आने मृत्यु में भी विरोध नहीं है। जन्म भी वही है, जो मृत्यु है। और अंधेरा दें। उसे प्राणों तक पहुंच जाने दें, विचार को बीच में न आने दें। भी वही है, जो प्रकाश है। वह घुल जाए, मिल जाए श्वासों में। वह एक हो जाए प्राणों से। लेकिन यह उसे दिखाई पड़ता है, जिसकी आंखों से सारा धुआं चेतना भीतर की, और गुलाब की चेतना कहीं आलिंगन में बद्ध हो विचार का हट गया और जिसके प्राणों से अहंकार की बदलियां हट जाए; कोई विचार न उठे; तब जो आप जानेंगे, वह गुलाब को गईं। और जिसका अंतःप्राण पारदर्शी, ट्रांसपैरेंट हो गया। जो दर्पण जानना है। अन्यथा जो आप जानते हैं, वह गुलाब के संबंध में जाने की तरह हो गया। जिसके पास अपना कुछ भी नहीं है; जो दिखाई। हुए को दोहराना है। वह गुलाब को जानना नहीं है। पड़ता है, वही झलकता है। जो व्यक्ति जीवन में इस भांति निर्विचार देखने में समर्थ हो जाता जो दर्पण की तरह हो गया, निद्वंद्व, उसे तो सारे रास्ते परमात्मा है, उस व्यक्ति को अत्यंत विरोधी मार्ग भी एक ही मालूम पड़ते हैं। 301
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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