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ॐ गीता दर्शन भाग-26
यत्सांख्यैः प्राप्यते स्थानं तद्योगैरपि गम्यते । बदलाहट कर लें। आप कह रहे हैं कि हनुमान जब अशोक वाटिका एकं सांख्यं च योगं च यः पश्यति स पश्यति ।। ५।। में गए, तो चारों तरफ शुभ्र, चांद की चांदनी की तरह फूल खिले तथा ज्ञानयोगियों द्वारा जो परमधर्म प्राप्त किया जाता है, थे। यह बात गलत है। हनुमान जब अशोक वाटिका में गए, तब निष्काम कर्मयोगियों द्वारा भी वहीं प्राप्त किया जाता है। फूल सुर्ख चारों ओर खिले थे, सफेद फूल नहीं खिले थे। लेकिन इसलिए जो पुरुष ज्ञानयोग और निष्काम कर्मयोग को | रामदास ने कहा, चुपचाप बैठ जाओ। बकवास मत करो। फूल फलरूप से एक देखता है, वह ही यथार्थ देखता है। सफेद थे।
___ अभी हनुमान अप्रकट थे। जाहिर होकर उन्होंने नहीं कहा था कि
मैं हनुमान हूं। उन्होंने फिर कहा कि महाशय, सुधार कर लें। मैं 7 खते सभी हैं; यथार्थ बहुत कम लोग देखते हैं। जो हमें किसी कारण से कह रहा हूं। रामदास ने कहा, बीच में गड़बड़ मत ५ दिखाई पड़ता है, वह वही नहीं होता, जो है। वरन हम | करो। फूल सफेद थे। और चुपचाप बैठ जाओ। मजबूरी में हनुमान
___ वही देख लेते हैं, जो हम देखना चाहते हैं। हमारी दृष्टि को क्रोध आ गया। और खुद को देखी हुई बात को कोई आदमी दर्शन को विकृत कर जाती है। हमारी आंखें दृश्य को देखती ही | | झूठ कहे! तो वे प्रकट हुए और उन्होंने कहा, मैं खुद हनुमान हूं। नहीं, दृश्य को निर्मित भी कर जाती हैं।
| अब बोलो तुम क्या कहते हो? फूल लाल थे। सुधार कर लो! जीवन में चारों ओर बिना व्याख्या के हम कुछ भी अनुभव नहीं | | रामदास ने कहा कि फिर भी कहता हूं कि चुपचाप बैठ जाओ और कर पाते हैं। और व्याख्या के साथ किया गया अनुभव विकृत | गड़बड़ मत करो। हनुमान हो, तो भले हो। फूल सफेद थे। अनुभव है। जो भी हम देखते हैं, उसमें हम भी सम्मिलित हो जाते यह तो बहुत उपद्रव की बात हो गई। कोई रास्ता न था, तो हैं। दर्शन विकृत हो जाता है।
हनुमान और रामदास को राम के सामने ले जाया गया। और एक छोटी-सी घटना मुझे याद आती है। सुना है मैंने कि रामदास हनुमान ने कहा कि यह एक आदमी है जिसको मैं कह रहा हूं कि ने हजारों वर्षों बाद, राम के होने के हजारों वर्षों बाद, राम की कथा फूल लाल थे, और जो कहता है कि फूल सफेद थे। मैं हनुमाना पुनः लिखी। राम तो एक हुए हैं, लेकिन कथाएं तो उतनी हो सकती | हजारों साल बाद ये सज्जन कहानी लिख रहे हैं। लेकिन हद जिद्दी' हैं, जितने लिखने वाले हैं। लेकिन कथा कुछ ऐसी थी कि हनुमान | आदमी है! मुझसे कहता है, चुपचाप बैठ जाओ। अब आप ही को खबर लगी कि तुम्हारे भी सुनने योग्य है। हनुमान तो प्रत्यक्षदर्शी | | निर्णय दे दें। थे कथा के। फिर भी रोज-रोज खबर आने लगी, तो हनुमान चोरी राम ने कहा, हनुमान, तुम क्षमा मांग लो। फूल सफेद ही थे; से उस कथा को सुनने जाते थे जिसे रामदास दिनभर लिखते और | रामदास ठीक कहते हैं। तुम इतने क्रोध में थे कि तुम्हारी आंखें खून सांझ इकट्ठे भक्तों के बीच सुनाते। कहानी है, पर अर्थपूर्ण है। और | से भरी थीं। तुमने लाल फूल देखे होंगे। लेकिन फूल सफेद ही थे। बहुत बार कहानियां सत्य से भी ज्यादा अर्थपूर्ण होती हैं। ___ संभव है। कहानी भला संभव न हो, लेकिन खून से भरी आंखों
राम की कथा चलती रही। हनुमान आनंदित थे। हैरान थे यह में सफेद फूल लाल दिखाई पड़ सकते हैं, यह संभव है। बात जानकर, कि रामदास हजारों साल के बाद, कथा को ठीक। हम जो देखते हैं, उसमें हमारी आंख तत्काल प्रविष्ट हो जाती वैसा कह रहे हैं, जैसी वह घटी थी। यह बड़ी कठिन बात है। जो है। हम वही नहीं देखते, जो है। और जो व्यक्ति वही देखने में समर्थ आंख के सामने देखते हैं, वे भी ठीक वैसा ही वर्णन नहीं करते, हो जाता है, जो है, उसे ही कृष्ण ज्ञानी कहते हैं। जैसा घटता है। आंख सम्मिलित हो जाती है। दृष्टि प्रवेश कर जाती ___ कृष्ण यहां कह रहे हैं कि कर्म से, निष्काम कर्म से या है। हजारों साल बाद यह आदमी कहानी कह रहा है और ठीक ऐसी | कर्म-संन्यास से; कर्मयोग से या कर्मत्याग से, एक ही परम स्थिति कि हनुमान भी भूल-चूक नहीं निकाल पाते हैं। कहीं जैसे कोई | उपलब्ध होती है। व्याख्या नहीं है। जैसे घटना सामने घटती हो।
लेकिन ऐसा तो केवल वे ही देख पाते हैं, जो वही देखते हैं, जो लेकिन एक जगह हनुमान को भूल मिल गई। हनुमान ने खड़े है। जिनकी दृष्टि दर्शन में बाधा नहीं बनती। जिनके अपने खयाल होकर कहा कि माफ करें, और सब तो ठीक है, इसमें थोड़ी-सी यथार्थ के ऊपर आरोपित नहीं होते, इम्पोज नहीं होते। जो अपने को
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