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________________ ॐ गीता दर्शन भाग-20 चुनाव! और दो ही नहीं, अनंत हैं मार्ग। रहा है कि सब संन्यासी गलत, ये बुद्ध और महावीर, ये सब चुनने वालों की वजह से समझदारों को भी नासमझों की भाषा | छोड़कर चले गए लोग नासमझ, तब तत्काल वे चौंके होंगे। उसकी में बोलना पड़ा और कहना पड़ा कि यही ठीक है। और अगर किसी आंख की चमक उन्हें पकड़ में आई होगी। उन्होंने फौरन कहा कि समझदार ने ऐसा कहा कि यह भी ठीक है, वह भी ठीक है; यह भी मूढजन ही ऐसा समझते हैं अर्जुन, कि ये दोनों मार्ग अलग हैं। ठीक है, वह भी ठीक है, तो सुनने वाले उसे छोड़कर चले गए। पंडितजन तो समझते हैं, दोनों एक हैं। तब उसको बेचारे को उसकी देखें महावीर! इतनी प्रतिभा के आदमी पृथ्वी पर दो-चार ही हुए भभक थोड़ी-सी आई होगी। उस पर उन्होंने फिर पानी डाल दिया। हैं, लेकिन महावीर को कोई जगत में स्थान नहीं मिल सका। न वह अर्जुन फिर बेकार हुआ। वह फिर अपनी जगह शिथिल होकर मिलने का कुल एक कारण है; एक भूल हो गई उनसे, नासमझों | | बैठ गया होगा-शिथिल गात। फिर सोचने लगा होगा, टु बी, की भाषा बोलने से चूक गए। महावीर ने कह दिया, यह भी ठीक, | | आर नाट टु बी! अब क्या करना है, यह या वह? वह भी ठीक। महावीर का विचार कहलाता है, स्यातवाद। वे कहते कृष्ण उसकी अकड़ नहीं टिकने देते। ऐसा गीता में बहुत बाहर हैं, सब ठीक! वे कहते हैं, ऐसा झूठ भी नहीं हो सकता, जिसमें | | आएगा। जब भी वे देखेंगे कि अर्जुन अकड़ा, लगा कि समझदार कुछ ठीक न हो। यह भी ठीक है, इससे उलटा भी ठीक है। दोनों हुआ जा रहा है, फौरन थोड़ा-सा पानी डालेंगे। उसकी अकड़, से उलटा भी ठीक है। सुनने वालों ने कहा कि फिर माफ करिए; | उसका कलफ फिर धुल जाएगा। तब हम जाते हैं! हम उस आदमी को खोजेंगे, जो कहता हो, यह | बीच में जरूर अर्जुन की आंख में कृष्ण ने देखा है। अन्यथा ठीक। या तो आपको पता नहीं, और या फिर आपको कुछ ऐसा । अभी मूों को याद करने की कोई जरूरत न थी। अर्जुन में मूर्ख पता है, जो अपने काम का नहीं। आ गया होगा। अन्यथा यह वक्तव्य बेमानी है। अर्जुन की आंख महावीर को मरे पच्चीस सौ साल हुए। हिंदुस्तान में महावीर को में मूर्ख दिखाई पड़ गया होगा। मानने वालों की संख्या आज भी तीस लाख के ऊपर नहीं जा पाती। और ऐसा नहीं है कि मूर्ख ही मूर्ख होते हैं। समझदार से पच्चीस सौ साल में पच्चीस आदमी भी अगर महावीर से दीक्षित समझदार आदमी के मूर्ख क्षण होते हैं। समझदार से समझदार हुए होते, तो उनकी संतान इतनी हो जाती! क्या हुआ? आदमी की आंखों में से कभी मूर्ख झांकने लगता है। और ' और ये जो तीस लाख मानते हैं, इनमें से तीन भी मानते हों, ऐसा कभी-कभी महा मंदबुद्धि आदमी की आंख से भी बुद्धिमान झांकता नहीं है। ये तीस लाख जन्म से मानते हैं। क्योंकि महावीर से राजी | है। आदमी के भीतर की चेतना बड़ी तरल है। होना बहुत मुश्किल है। वे कहते हैं कि जो आदमी कहता है, यही तो जब वह कृष्ण अर्जुन को देखते होंगे, कुछ बुद्धिमान हो रहा ठीक, वह बिलकुल उपद्रव की बात कर रहा है। यह कभी मत | है, तब वे कुछ और कहते हैं। जब वे देखते होंगे कि मूर्खता सघन कहो, यही ठीक। इतना ही कहो, यह भी ठीक, वह भी ठीक। पर हो रही है, तब वे कुछ और कहते हैं। ऐसे आदमी को अनुयायी नहीं मिल सकता। ऐसे आदमी को कैसे चूंकि यह वक्तव्य सीधा अर्जुन को दिया गया है, इसलिए अर्जुन अनुयायी मिलेगा! का एक-एक हाव, एक-एक भाव, एक-एक आंख की भंगिमा, कृष्ण की भी वही कठिनाई है। वे अर्जुन को जब बताते हैं कोई एक-एक इशारा, इसमें सब पकड़ा गया है। गीता सिर्फ कही नहीं बात ठीक, तो यह वक्तव्य जो उन्होंने दूसरा दिया, अर्जुन की आंख गई है; लिखी नहीं गई है; संवाद है दो जीते व्यक्तियों के बीच। पूरे में देखकर दिया होगा। इसमें तो उल्लेख नहीं है, लेकिन निश्चित वक्त चेतना तालमेल कर रही है। पूरे वक्त एक डायलाग है। आंख को देखकर दिया होगा। पश्चिम में एक बहुत बड़ा विचारक अभी था, मार्टिन बूवर। वह जब कृष्ण समझा रहे होंगे निष्काम कर्म, तब अर्जुन धीरे-धीरे कहता था, जगत में सबसे बड़ी घटना है, डायलाग, संवाद। क्या अकड़कर बैठ गया होगा। उसने कहा होगा कि तब ठीक है। तो मतलब था? वह कहता था, संवाद बड़ी घटना है। संवाद का अर्थ सब संन्यासी गलत। हम पहले ही जानते थे कि संन्यास वगैरह से है, दो व्यक्तियों के बीच के हृदय ऐसे मिल जाएं कि जरा-सा कुछ होने वाला नहीं! छोड़ने से क्या मिलेगा! | अंतर, और संवादित हो सके। जरा-सा भेद, और तरंगें पहुंच जाएं, जब उसकी आंख में यह झलक देखी होगी कृष्ण ने कि वह सोच तरंगों को खबर मिल जाए। 29
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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