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निष्काम कर्म
सकाम कर्म, अपने ही हाथों पैदा किया गया एक असत्य है। | भला कहने वाला जानता हो कि बाकी मार्ग भी सही हैं, लेकिन निष्काम कर्म जीवन की शाश्वत धारा का सत्य है। उस सत्य और | जिससे वह कह रहा होता है, उससे तो वह एक ही मार्ग की बात इस असत्य के बीच कोई समझौता नहीं है।
कह रहा होता है। कहीं उसे यह भ्रांति न पैदा हो जाए कि यही मार्ग ठीक है।
ऐसी भ्रांति रोज पैदा हुई है। कृष्ण का सचेत होना संगतिपूर्ण है, सांख्ययोगी पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः। अर्थपूर्ण है। ऐसी भूल रोज हुई है। महावीर ने एक बात कही लोगों एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोविन्दते फलम् ।। ४ ।। को। जिनसे कही थी, उनके काम की जो बात थी, वह कह दी थी।
और हे अर्जुन! ऊपर कहे हुए संन्यास और निष्काम | लेकिन सुनने वाले ने समझा कि यही मार्ग सच है। बाकी सब मार्ग कर्मयोग को मूर्ख लोग अलग-अलग फल वाले कहते हैं, गलत हो गए। बद्ध ने एक बात कही. जो सनने वाले के लिए काम न कि पंडितजन । क्योंकि दोनों में से एक में भी अच्छी की थी। उस युग के लिए जो धर्म थी, उस मनुष्य की चेतना के लिए प्रकार स्थित हुआ पुरुष, दोनों के फलरूप परमात्मा को जो सहयोगी थी—कही। सुनने वाले ने समझा कि यही मार्ग है; प्राप्त होता है।
बाकी सब गलत है। क्राइस्ट ने कही एक बात; मोहम्मद ने कही एक बात। वे सभी बातें सही, सभी सार्थक। लेकिन सभी को सुनने
वाले मान लेते हैं कि यही ठीक है; बाकी गलत है। - स जगत के सारे भेद मूढजनों के भेद हैं। इस जगत के | __ और अज्ञानी को खुद को ठीक मानना तब तक आसान नहीं र बाहर जाने वाले मार्गों के सारे विरोध नासमझों के | | होता, जब तक वह दूसरों को गलत न मान ले। अपने को ठीक
विरोध हैं। चाहे हो कर्म-संन्यास, चाहे हो निष्काम | | मानता ही इसीलिए है कि दूसरे गलत हैं। अगर दूसरे भी सही हों, कर्म, ज्ञानी जानता है कि दोनों से एक ही अंत की उपलब्धि होती है। तो फिर खुद के सही होने की संभावना क्षीण हो जाती है। उसका
रास्ते हैं अनेक, मंजिल है एक। नावें हैं बहुत, पार होना है एक। अपने पर भरोसा ही तब तक रहता है, जब तक दूसरे गलत हों। कहीं से भी कोई चले, कैसे भी कोई चले, आकांक्षा हो सत्य की अगर दूसरे गलत न हों, तो उसका खुद का आत्मविश्वास क्षीण हो खोज की; कैसे भी कोई यात्रा करे, कैसे भी वाहन से और कैसे ही जाता है। तो खुद के आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए वह सबको पथों और कैसी ही सीढ़ियों से, आकांक्षा हो एक, आनंद को पाने | गलत कहता रहता है। वह-वह गलत; मैं ठीक। की, तो सब मार्गों से, सब द्वारों से वहीं पहुंच जाता है व्यक्ति; एक ___ इसलिए कृष्ण जैसे व्यक्ति को निरंतर सचेत रहना पड़ता है कि ही जगह पहुंच जाता है।
कहीं एक मार्ग को समझाते वक्त यह खयाल पैदा न हो जाए कि ___ इसलिए कृष्ण कहते हैं इस वक्तव्य में...। कृष्ण जैसे व्यक्तियों दूसरा मार्ग बिलकुल गलत है, भिन्न, अलग है, उससे नहीं पहुंचा को निरंतर ही सचेत होकर बोलना पड़ता है। पहले उन्होंने दो मार्गों जा सकता है। की बात कही। कहा कि एक मार्ग है, कर्म का त्याग। दूसरा मार्ग | __ मगर जो कृष्ण की मजबूरी है, उससे उलटी मजबूरी अर्जुन की है, कर्म में आकांक्षा का त्याग। ये दो मार्ग हैं। दोनों श्रेयस्कर हैं। | है। अगर कृष्ण स्पष्ट रूप से कह दें कि यही ठीक, और दूसरी बात लेकिन दूसरा सरल है। अर्जुन से कहा, दूसरा सरल है। फिर दूसरे | न करें, तो अर्जुन निश्चित होकर मार्ग पर लग जाए। अभी उसको मार्ग पर उन्होंने इतनी व्याख्या की और कहा कि दूसरे मार्ग का क्या कुछ थोड़ी निश्चितता बंधी होगी। सुना उसने कि निष्काम कर्म अर्थ है। राग और द्वेष के द्वंद्व के बाहर हो जाना दूसरे मार्ग का अर्थ | | ज्यादा हितकर है, तो उसने सोचा होगा कि ठीक है, संन्यास बेकार है। लेकिन तत्काल उन्हें इस सूत्र में कहना पड़ता है कि मूढजन ही | | है। अब निष्काम कर्म में लग जाना चाहिए। तत्काल कृष्ण कहते हैं दोनों को विपरीत मान लेंगे या भिन्न मान लेंगे, ज्ञानी तो दोनों को कि मूढजन ही ऐसा समझते हैं कि दोनों भिन्न हैं। एक ही मानते हैं।
अब फिर मुश्किल खड़ी हो जाएगी। अगर दोनों ही ठीक हैं, तो ऐसा क्या कहने की जरूरत पड़ती है? ऐसा कहने की इसलिए फिर चुनाव का सवाल खड़ा हो गया। एक गलत और एक ठीक जरूरत पड़ती है कि जब भी एक मार्ग की बात कही जाती है, तो है, तो चुनाव आसान हो जाए। अगर दोनों ही ठीक हैं, तो फिर
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