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________________ गीता दर्शन भाग-2 वह कहता है, मान लेते हैं कि सांप नहीं है! है तो ही! आप कहते | जाता है। हैं, मान लेते हैं कि सांप नहीं है। आप कहते हैं, मान लेते हैं कि __ मैंने सुना है, एक बार ऐसा एक गांव में हुआ। एक आदमी ने रस्सी है। हालांकि है नहीं। क्योंकि अगर हो, रस्सी पता चल जाए, रास्ते पर चलते एक आदमी को पकड़ लिया। और कहा कि हद हो तो मानने की संभावना समाप्त हो गई। फिर कहने की जरूरत नहीं | | गई! अब बहुत हो गया; अब बर्दाश्त के बाहर है। वह सौ रुपए है कि हम मान लेते हैं कि रस्सी है; मान लेते हैं कि सांप नहीं है। | जो आपने लिए थे, मुझे वापस लौटा दें! वह आदमी चौंका। उसने फिर बात खतम हो गई। दिखाई पड़ गया। नहीं; वह कहता है, मान कहा कि क्या कह रहे हैं आप? मैंने और आपसे सौ रुपए कभी लेते हैं कि सांप नहीं है। मान लेते हैं कि रस्सी है। अब कृपा करके | उधार लिए! मैंने आपकी शकल भी पहले नहीं देखी। उस आदमी यह बताइए कि दोनों में तालमेल कैसे करें? ने कहा कि लो, सनो मजाक! लेते वक्त पराने परिचित थे. देते उसका प्रश्न संगत, कंसिस्टेंट मालूम होता है, लेकिन संगत है| वक्त शकल भी पहचान में नहीं आती! नहीं, बिलकुल असंगत है। भीड़ इकट्ठी हो गई है! रास्ते पर चारों तरफ लोग आ गए हैं! तो मैं भी आपसे कहना चाहूंगा, कभी ऐसी घड़ी नहीं आती, जब | | लोगों ने कहा कि भई, क्या बात है! उस आदमी ने चिल्लाकर कहा अज्ञान और ज्ञान में कहीं भी कोई मेल होता हो। अज्ञान गया कि | कि मेरे सौ रुपए लूटे ले रहा है यह आदमी। कहता है, मेरी शकल ज्ञान। ज्ञान जब तक नहीं है, तब तक अज्ञान। भी नहीं देखी! उस आदमी ने कहा कि हैरान कर रहे हैं आप! सच सकाम कर्म को निष्काम कर्म से मिलाने की कोशिश न करें। में ही मैंने आपकी शकल नहीं देखी! लोगों को भी शक हुआ कि सकाम कर्म को समझने की कोशिश करें। सकाम कर्म की पीड़ा, इतना झूठ तो कोई भी नहीं बोलेगा कि शकल भी न देखी हो और संताप को अनुभव करें। सकाम कर्म के नर्क को भोगें, देखें, | सौ रुपये! पहचानें। सकाम कर्म जब ऐसा लगने लगे, जैसे मकान में आग ___ अंततः लोगों ने, जैसा कि लोग होते हैं, उन्होंने कहा कि लगी है, चारों तरफ लपटें ही लपटें हैं, तब अचानक आप छलांग | कंप्रोमाइज कर लो, पचास-पचास पर निपटारा कर लो। जिस लगाकर बाहर हो जाएंगे। और जब आप बाहर हो जाएंगे, तब ठंडी | | आदमी को देने थे, उसने कहा, क्या कह रहे हैं आप? मैं इसकी हवाएं और शीतल हवाएं और खुला आकाश-निष्काम कर्म शकल नहीं जानता। लोगों ने कहा, अब तुम ज्यादती कर रहे हो! का_आपको मिल जाएगा। लेकिन जब तक आप सकाम लपटों उस आदमी ने कहा कि भई. ठीक है। हम पचास छोडे देते हैं। और के भीतर खड़े हैं, तब तक मकान, जलते हुए मकान के भीतर से | क्या! पचास छोड़े देता हूं, लोगों ने कहा, इनकी बात का खयाल मत पूछे कि मैं शीतल हवाओं में और आग लगी लपटों में कैसे | | रखकर! स्वभावतः, लोग उसके और साथ हो गए। उन्होंने कहा, तालमेल करूं! पचास तो तुम दे ही दो! वह कृष्ण कह रहे हैं, छलांग लगा। द्वंद्व के बाहर आ जा। बाहर मैं यह कह रहा हूं कि जब भी सच और झूठ में समझौता हो, तो निकल आ। झूठ जीतता है। जब भी! क्योंकि झूठ को खोने को कुछ भी नहीं है यह खयाल में आ जाए, तो सकाम कर्म और निष्काम कर्म के उसके पास। सच को खोने को कुछ है। झूठ का मतलब ही यह है बीच कोई समझौता, कोई कंप्रोमाइज नहीं है। लेकिन हम सदा ऐसा कि खोने को कुछ भी नहीं है। अगर पूरा भी झूठ सिद्ध हो जाए, तो ही करते हैं। हम दुकान और मंदिर के बीच समझौता कर लेते हैं। भी कुछ नहीं खोता। झूठ था! और सत्य का कुछ भी खो जाए, तो हम आत्मा और शरीर के बीच समझौता कर लेते हैं। हम हर चीज | सब कुछ खो जाता है। में समझौता करते चले जाते हैं। हमारी जिंदगी एक लंबा समझौता | | और यह भी मैं आपसे कह दूं कि सत्य जब खोता है, तो आधा है। और समझौते का अर्थ है कि धोखा। समझौते का अर्थ है कि | | नहीं खोता, पूरा ही खो जाता है। क्योंकि सत्य एक आर्गेनिक यूनिटी खो दिया हमने अवसर, जहां कि सत्य मिल सकता था। | है; वह आधा नहीं खोता। सत्य के दो टुकड़े नहीं किए जा सकते। जो आदमी समझौते में जीएगा, वह सत्य को कभी भी उपलब्ध | झूठ के हजार किए जा सकते हैं। वह मुर्दा चीज है। वह है ही नहीं। नहीं होगा। जितनी बड़ी कंप्रोमाइज, उतना बड़ा अनटूथ, उतना बड़ा | | वह सिर्फ कागजी है। कैंची चलाएं और हजार टुकड़े कर लें। सत्य झूठ। और ध्यान रहे, समझौते में सदा झूठ जीतता है, सत्य हार | जीवंत है; उसके टुकड़े नहीं होते। 1294
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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