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ॐ निष्काम कर्म ®
से मैं गुजर रहा हूं, अंधेरा है, और एक रस्सी मुझे पड़ी दिखाई पड़ । है। जब कि सांप है ही नहीं। गई और मैंने समझा कि सांप है। भागा! तब किसी ने कहा, रुको! यह जो दो तलों की बात है, दो भिन्न तलों की बात है। इतने भिन्न, मत भागो! रस्सी है, सांप नहीं है। पास गया। देखा, कि रस्सी है। | डायमेट्रिकली अपोजिट, एक-दूसरे से बिलकुल विपरीत। ज्ञानी को क्या मैं पूछूगा कि रस्सी और सांप में कैसे तालमेल बिठाऊं? जब | दिखाई पड़ रहा है कि जो आपको दिखाई पड़ रहा है, वह है ही नहीं। तक मुझे सांप दिखाई पड़ता है, तब तक रस्सी दिखाई नहीं पड़ती। आपको वह दिखाई ही नहीं पड़ रहा है, जो ज्ञानी को दिखाई पड़ रहा जब मुझे रस्सी दिखाई पड़ जाती है, तो सांप दिखाई नहीं पड़ता। है। और दोनों के बीच बातचीत है। यह भी मजे की बात है। तालमेल नहीं बैठता। सांप दिखाई पड़ता है, तो भागता रहता है। दो ज्ञानियों के बीच कभी बातचीत नहीं हो सकती; जरूरत नहीं रस्सी दिखाई पड़ती है, तो खड़ा हो जाता हूं। लेकिन ऐसा आदमी | है। दो अज्ञानियों के बीच कितनी ही बातचीत हो, बातचीत हो नहीं खोजना कठिन है, जिसे सांप और रस्सी दोनों एक साथ दिखाई पड़ पाती; सिर्फ उपद्रव होता है। बातचीत बहुत होती है! जाएं। या कि संभव है? या कि आप सोचते हैं, ऐसा आदमी मिल दो ज्ञानियों के बीच बातचीत हो सकती थी, लेकिन होती नहीं, सकता है, जिसे रस्सी और सांप एक साथ दिखाई पड़ जाएं? अब क्योंकि जरूरत नहीं है। दोनों जानते हैं, कहने को कुछ भी नहीं है। तक ऐसा नहीं हुआ। अगर ऐसा आदमी आप खोज लें, तो अगर मुझे भी दिखाई पड़ रहा है कि सांप नहीं है, रस्सी है; और मिरेकल, चमत्कार होगा। रस्सी दिखाई पड़ेगी, तो रस्सी दिखाई आपको भी दिखाई पड़ रहा है कि सांप नहीं है, रस्सी है; तो कौन पड़ेगी, सांप खो जाएगा। सांप दिखाई पड़ेगा, तो सांप दिखाई बोले कि सांप नहीं है! जो बोले, वह पागल। जब दिखाई ही पड़ पड़ेगा, रस्सी खो जाएगी।
रहा है कि रस्सी है, तो पागल ही बोलेगा। जब तक सकाम सांप दिखाई पड़ रहा है, तब तक निष्काम रस्सी | दो ज्ञानियों के बीच बातचीत नहीं हई आज तक। एक बार ऐसा दिखाई नहीं पड़ेगी। इसलिए प्रश्न संगत मालूम पड़ता है। भाषा में | भी हो गया कि बुद्ध और महावीर एक ही धर्मशाला में ठहर गए, बिलकुल ठीक लगता है कि कैसे तालमेल बिठाएं? तालमेल कभी लेकिन बात नहीं हुई। बातचीत का कोई कारण नहीं था। बात करते बिठाया नहीं जाता। इसलिए जो आदमी कहता है, मुझे संसार में भी क्या! अगर बुद्ध महावीर से कहते या महावीर बुद्ध से कहते परमात्मा दिखाई पड़ता है, वह गलत कहता है। जो आदमी कहता | कि सांप नहीं है, रस्सी है, तो दूसरा हंसता कि तुम पागल हो! है है मुझे संसार दिखाई नहीं पड़ता, परमात्मा दिखाई पड़ता है; वह | ही नहीं, तो बात क्या कर रहे हो! आदमी ठीक कहता है। जो आदमी यह कहता है, कण-कण में | __दो ज्ञानियों के बीच बातचीत हो सकती है, लेकिन होती नहीं। परमात्मा है, वह गलत कहता है। जो कहता है, परमात्मा ही | | दो अज्ञानियों के बीच हो ही नहीं सकती, लेकिन बहुत होती है, परमात्मा है, कण कहां है! वह ठीक कहता है।
सुबह से सांझ, अनंतकाल से चल रही है! बोलते रहते हैं, जो जिसे लेकिन भाषा की कठिनाइयां हैं। भाषा की कठिनाइयां इसलिए बोलना है। हैं कि दो तरह के लोगों के बीच बात चल रही है सदा से। चाहे वह ___ ज्ञानी और अज्ञानी के बीच बातचीत अति कठिन है। असंभव कृष्ण और अर्जुन के बीच हो; चाहे वह बुद्ध और आनंद के बीच नहीं है, अति कठिन है। दो ज्ञानियों के बीच असंभव है, क्योंकि हो; चाहे वह जीसस और ल्यूक के बीच हो; चाहे वह किसी के | जरूरत नहीं है। दो अज्ञानियों के बीच असंभव है, क्योंकि दोनों को बीच हो। इस जगत का जो संवाद है, बड़ी मुश्किल का है। वह | ही पता नहीं है। एक ज्ञानी और दूसरे अज्ञानी के बीच संभव है, ज्ञानी और अज्ञानी के बीच चल रहा है।
लेकिन अति कठिन है। क्योंकि दो तलों पर बातचीत होती है। अज्ञानी को सांप दिखाई पड़ रहा है, ज्ञानी को रस्सी दिखाई पड़ ज्ञानी जो बोलता है, वह कुछ और जान रहा है। अज्ञानी जो रही है। ज्ञानी कहे चला जाता है कि सांप नहीं है। अज्ञानी कहता है सुनता है, वह कुछ और जान रहा है। ज्ञानी से बात अज्ञानी के पास कि आप कहते हैं, तो ठीक ही कहते होंगे। लेकिन सांप है। मैं | | गई कि उसका अर्थ बदल जाता है। ज्ञानी कुछ भी कहे, अज्ञानी वही तालमेल कैसे बिठाऊ! अज्ञानी की वजह से ज्ञानी को भी गलत | समझेगा, जो समझ सकता है। वह तत्काल पूछेगा कि माना कि भाषा बोलनी पड़ती है। उसे कहना पड़ता है कि जिसे तुम सांप कह | ईश्वर है...। मान सकता है वह। है, ऐसा जानता तो नहीं है। माना, रहे हो, वह असल में रस्सी है। उसे कहना पड़ता है, सांप में रस्सी कि कठिनाई शुरू हुई।
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