SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 317
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निष्काम कर्म प्रश्नः भगवान श्री, आपने कहा कि अकारण, अनमोटिवेटेड कर्म, निष्काम कर्म आनंद का स्रोत है। लेकिन निश्चित ही जीवन में ऐसी चीजें भी हैं, जिनमें मोटिवेशन की जरूरत पड़ती है। जैसे औद्योगिक, यांत्रिक काम आदि। तो कृपया बताएं कि जीवन में मोटिवेटेड कर्म के साथ अनमोटिवेटेड कर्म का संतुलन कैसे किया जाए ? सं तुलन करने में जो पड़ेगा, वह बड़ी दुविधा में पड़ेगा। संतुलन नहीं किया जा सकता । जरूरत भी नहीं है। जिस व्यक्ति को निष्काम कर्म का रस आ गया, वह अपनी दुकान भी उसी रस से चलाएगा। जिस व्यक्ति को निष्काम कर्म का रस आ गया, वह अपने उद्योग को भी उसी रस से चलाएगा। कबीर ने दुकान बंद नहीं की। कबीर कपड़ा बुनता रहा। लोगों ने कहा भी कि अब तुम कपड़ा बुनो, यह अच्छा नहीं मालूम पड़ता ! कबीर ने कहा, पहले जो कपड़ा बुना था, उसमें यह मजा न था । अब जो मजा है, वह बात ही और है। पहले तो कपड़ा बुनते थे, तो एक मजबूरी थी; अब आनंद है। पहले कपड़ा बुनते थे, तो किसी ग्राहक का शोषण करना था। अब कपड़ा बुनते हैं, तो किसी राम के अंग को, तन को ढंकना है। कपड़ा बुनना जारी है। अब कबीर कपड़ा बुनता है और गाता रहता है, झीनी झीनी बीनी रे चदरिया | वह गा रहा है ! वह बाजार कपड़े लेकर जाता है, तो दौड़ता हुआ ग्राहकों को बुलाता है कि राम, बहुत मजबूत चीज बनाई है। तुम्हारे लिए ही बनाई है ! आनंद आ गया निष्काम कर्म का, तो भूलकर आप सकाम कर्म न कर पाएंगे। वहां भी, जहां सकाम कर्म का जगत घना है, वहां भी निष्काम कर्म हो जाएगा। आनंद ही रह जाएगा। अब किसी आदमी का आनंद हो सकता है कि वह एक बड़ा कारखाना चलाए। लेकिन तब वह आनंद परमात्मा को समर्पित हो जाएगा। तब वह किसी के शोषण के लिए नहीं है। बड़े कारखाने को चलाना उसका आनंद है। और यह आनंद अगर निष्काम कर्म का है, तो वह बड़ा कारखाना एक कम्यून बन जाएगा। उस बड़े कारखाने में मजदूर और मालिक नहीं होंगे। उस बड़े कारखाने में मित्र हो जाएंगे। और इस पृथ्वी पर अगर कभी भी दुनिया में सच में ही कोई समता की घटना घटेगी, तो समाजवादियों से घटने वाली नहीं है। इस दुनिया में कभी भी कोई समता की घटना घटेगी, तो वह उन धार्मिक लोगों से घटेगी, जिनके भीतर अनमोटिवेटेड कर्म पैदा हुआ है; जिनके भीतर निष्काम कर्म पैदा हुआ है। कुछ भी किया जा सकता है, एक बार खयाल में आ जाए। 291 और जहां खतरा ज्यादा है, जैसे एक अंधा आदमी पूछ सकता है, एक अंधा आदमी पूछ सकता है कि जब मेरी आंखें ठीक हो जाएंगी, तो मैं टटोलने में और चलने में क्या समन्वय करूंगा ? क्या संतुलन करूंगा ? स्वभावतः, एक अंधा आदमी अभी टटोलकर चलता है। अभी उसने टटोलकर ही चलना जाना है। एक ही चलने का ढंग है, टटोलना । उससे हम कहते हैं कि तेरी आंखें ठीक हो जाएंगी। तो वह कहता है, मैं समझ गया। जब आंखें ठीक हो जाएंगी, तो बिना | टटोलकर मैं चल सकूंगा। लेकिन फिर टटोलने में और न टटोलकर चलने में, दोनों में संतुलन कैसे करूंगा ? | हम उससे कहेंगे, संतुलन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । तू बिलकुल पागल है! जब आंखें मिल जाएंगी, टटोलने की जरूरत ही नहीं रहेगी। वह आदमी कहेगा, लेकिन अंधेरे में तो टटोलना ही पड़ेगा! हम उससे कहेंगे कि आंख आ जाए, तब तू जानेगा कि टटोलने की जो प्रक्रिया थी, वह अंधे की प्रक्रिया थी । आंख वाले की वह प्रक्रिया नहीं है। संतुलन नहीं बनाना पड़ेगा । और जब तक आंख नहीं है, तब तक चलने से टटोलने का संतुलन बनाने का तो कोई सवाल नहीं है। सकाम आदमी जहां जी रहा है, वह अंधे की दुनिया है। वहां वह फल को टटोलकर ही कर्म करता है। उसे अभी कर्म के आनंद का पता ही नहीं है। उसे एक ही पता है कि फल में आनंद है; कर्म में कोई आनंद नहीं है। अभी वह दुकान में बैठता है, तो दुकान में | आनंद नहीं है । जो ग्राहक सामने खड़ा है, उसमें परमात्मा नहीं है। उसका परमात्मा तो उस रुपए में है, जो ग्राहक से मिलेगा, मिलने वाला है; जिसे वह तिजोड़ी में कल बंद करेगा। जिसे परसों गिनेगा और बैंक बैलेंस में इकट्ठा करेगा। उसका आनंद वहां है। यह कर्म जो घटित हो रहा है, इसमें उसका कोई आनंद नहीं है । और जिस कर्म में आनंद नहीं है, हम पागल हैं, उसके फल में कैसे आनंद हो सकेगा ? क्योंकि फल कर्म से पैदा होता है। जब बीज में आनंद नहीं है, तो फल में कैसे आनंद आ जाएगा? जब बीज जहर मालूम पड़ रहा है, तो फल अमृत कैसे हो जाएगा?
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy