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________________ गीता दर्शन भाग-20 पर गिरा हो। फव्वारे के नीचे खड़े हो गए हों। सुबह की ताजी हवा | | हो जाएगा। तो पहली बात तो यह समझ लेनी जरूरी है, ऊर्जा हो ने छुआ हो। फूलों को छूती हुई एक गंध आपके कमरे में आ गई | भीतर, राग-द्वेष न हो बाहर, तो भी ऊर्जा सक्रिय होगी, क्योंकि हो। कोई पक्षी बाहर गाया हो। किसी मुर्गे ने बांग दी हो। आपके | ऊर्जा बिना सक्रिय हुए नहीं रह सकती। भीतर की ऊर्जा भी जग गई है; उसने भी एक कड़ी गुनगुनाई है, एनर्जी, ऊर्जा अनिवार्य रूप से क्रिएटिव है। वह सृजन करेगी अनमोटिवेटेड, कोई कारण नहीं है। भीतर एक शक्ति है, जो बाहर ही। वह बच नहीं सकती। इसीलिए तो बच्चों को आप बिठा नहीं अभिव्यक्त होना चाहती है। पाते। आपको बहुत बेहूदगी लगती है बच्चों के कामों में। कहते हैं साधारण लोगों की जिंदगी में बस ऐसे ही छोटे-मोटे उदाहरण | | कि बेकाम क्यों कूद रहा है! आप बहुत समझदार हैं! आप कहते मिलेंगे। आपके उदाहरण ले रहा हूं, ताकि आपको खयाल में आ | हैं, कूदना हो तो काम से कूद। मैं भी कूदता हूं दफ्तर में, दुकान में, सके। कृष्ण जैसे लोगों की पूरी जिंदगी ही ऐसी है—पूरी जिंदगी, | | लेकिन काम से! बेकाम क्यों कूद रहा है? चौबीस घंटे! अब आपको पता ही नहीं है कि बेकाम क्यों कूद रहा है। ऊर्जा लेकिन अगर एक क्षण ऐसा हो सकता है, तो चौबीस घंटे भी भीतर है; ऊर्जा कूद रही है। काम का कोई सवाल नहीं है। शक्ति हो सकते हैं। कोई बाधा नहीं रह जाती। क्योंकि आदमी के हाथ में | | भीतर नाच रही है, स्पंदित हो रही है। एक क्षण से ज्यादा कभी नहीं होता। दो क्षण किसी आदमी के हाथ | धार्मिक व्यक्ति पूरे जीवन बच्चे की तरह है। निष्काम कर्म में नहीं होते। एक ही क्षण हाथ में होता है। अगर एक क्षण में भी | | उसको ही फलित होगा, जिसका शरीर तो कुछ भी उम्र पा ले, एक कृत्य ऐसा घट सकता है, जिसमें कोई राग-द्वेष नहीं था, लेकिन जिसका मन कभी भी बचपन की ताजगी नहीं खोता। वह जिसमें भीतर की ऊर्जा सिर्फ उत्सव से भर गई थी, फेस्टिव हो गई फ्रेशनेस, वह ताजगी, वह क्वांरापन बना ही रहता है। इसीलिए तो थी, समारोह से भर गई थी और फूट पड़ी थी...। कृष्ण जैसा आदमी बांसुरी बजा सकता है, नाच सकता है। वह दुनिया से समारोह कम हो गए हैं। क्योंकि दुनिया से वह जो बालपन कहीं गया नहीं। रिलीजस फेस्टिव डायमेंशन है, वह जो उत्सव का आयाम है, वह ऊर्जा भीतर हो, तो ऊर्जा निष्क्रिय नहीं होती। ध्यान रहे, शक्ति क्षीण हो गया है। लेकिन दुनिया की अगर हम पुरानी दुनिया में | हो, तो शक्ति सक्रिय होगी ही। चाहे कोई कारण न हो, अकारण भी लौटें, या आज भी दूर गांव-जंगल में चले जाएं, खेत में जब फसल | | शक्ति सक्रिय होगी। शक्ति का होना और सक्रिय होना, एक ही चीज आ जाएगी, तो गांव गीत गाएगा—अनमोटिवेटेड। उस गीत गाने | | | के दो नाम हैं। शक्ति निष्क्रिय नहीं हो सकती। लेकिन चूंकि हम से खेत की फसल के गेहूं ज्यादा बड़े नहीं हो जाएंगे। उस गीत के | कभी राग और द्वेष के बाहर नहीं होते, इसलिए शक्ति राग और द्वेष गाने से कोई फसल के ज्यादा दाम नहीं आ जाएंगे। लेकिन खेत की चैनल्स में चली जाती है। इसलिए दूसरी बात समझ लेनी जरूरी नाच रहा है फसल से भरकर। पक्षी उडने लगे हैं खेत के ऊपर। है। पहली बात. कर्म राग-द्वेष से पैदा नहीं होता. कर्म पैदा होता है चारों तरफ खेत के खेत में आ गई फसलों की सगंध भर गई है।। | भीतर की ऊर्जा से। इनर एनर्जी से पैदा होता है कर्म। सोंधी गंध चारों तरफ तैरने लगी है। उसने गांव के मन-प्राण को | | चांद-तारे भी चल रहे हैं बिना किसी राग-द्वेष के। कहीं उन्हें भी पकड़ लिया है। खेत ही नहीं नाच रहे, गांव भी नाचने लगा है। पहुंचना नहीं है। कण-कण के भीतर परमाणु घूम रहे हैं, नाच रहे दुनिया के पुराने सारे उत्सव मौसम और फसलों के उत्सव थे। हैं, नृत्य में लीन हैं। कुछ उन्हें पाना नहीं है। फूल खिल रहे हैं। पक्षी गांव भी नाच रहा है। रात, आधी रात तक चांद के नीचे पूरा गांव उड़ रहे हैं। आकाश में बादल हैं। झरने नदियां बनकर सागर की नाच रहा है। उस नाचने से कुछ मिलेगा नहीं। वह कोई गणतंत्र तरफ जा रहे हैं। सागर भाप बनकर आकाश में उठ रहा है। कहीं दिवस पर दिल्ली में किया गया लोक-नृत्य नहीं है। उससे कुछ कोई राग-द्वेष नहीं है, सिर्फ आदमी को छोड़कर। कहीं कोई मिलने को नहीं है। उसकी कोई तैयारी नहीं है। लेकिन भीतर ऊर्जा मोटिवेशन नहीं है। है और वह बहना चाहती है। पूछे गंगा से कि क्यों इतनी परेशान है? सागर पहुंचकर भी क्या कृष्ण जब अर्जुन को कह रहे हैं कि राग-द्वेष से मुक्त होकर यदि होगा? गंगा उत्तर नहीं देगी। क्योंकि उत्तर देना भी बेकार है। गंगा तू कर्म में संलग्न हो जाए, तो सुखद मार्ग से समस्त बंधनों के बाहर है, तो सागर पहुंचेगी ही। गंगा सागर पहुंच रही है, यह कोई चेष्टा 288
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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