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________________ गीता दर्शन भाग-20 निष्कर्ष बीमार आदमियों के ऊपर निर्भर हैं। सच बात तो यह है कि वह अपनी सीमा में ठीक है। विक्षिप्त आदमी कभी भी राग और मनोवैज्ञानिक के पास कोई स्वस्थ आदमी कभी जाता नहीं। जाएगा द्वेष से मुक्त नहीं हो सकता। राग और द्वेष के कारण ही तो वह किसलिए? मनोवैज्ञानिक जिनका अध्ययन करते हैं, वे रुग्ण हैं और विक्षिप्त और पागल होता है; मुक्त होगा कैसे? वे तो उसके पागल बीमार हैं, करीब-करीब विक्षिप्त हैं। कहीं न कहीं कोई साइकोसिस, | होने के बुनियादी आधार हैं। विमुक्त मनुष्य राग और द्वेष के बाहर कोई न्यूरोसिस, कोई मानसिक रोग उन्हें पकड़े हुए है। होता है। बाहर होता है, तभी विमुक्त है। अन्यथा विमुक्त नहीं है। ___ फ्रायड से लेकर फ्रोम तक पश्चिम के सारे मनोवैज्ञानिकों का भारत ने श्रेष्ठतम को आधार बनाया। मुझे लगता है, उचित है अध्ययन बीमार आदमियों का अध्ययन है। बीमार आदमियों से वे | | यही। क्योंकि हम श्रेष्ठतम को. आधार बनाएं, तो शायद हमारे सामान्य आदमी के संबंध में नतीजे लेते हैं, जो कि गलत है। जीवन में भी यात्रा हो सके। हम निकृष्टतम को आधार बनाएं, तो दूसरी बात, सामान्य आदमी के अध्ययन से भी नतीजे लेने हमारे जीवन में भी पतन की संभावना बढ़ती है। गलत होंगे, क्योंकि सामान्य आदमी भी पूरा आदमी नहीं है। कृष्ण अगर हमें ऐसा पता चले कि आदमी कभी आनंद को उपलब्ध ने जो नतीजा लिया है, वह पूरे आदमी से लिया गया नतीजा है। इस हो ही नहीं सकता, तो हम अपने दुख में ठहर जाते हैं। अगर हमें मुल्क का मनोविज्ञान बुद्ध, महावीर, कृष्ण, शंकर, नागार्जुन, | ऐसा पता चले कि जीवन में प्रकाश संभव ही नहीं है, तो फिर हम रामानज इन लोगों के अध्ययन पर निर्भर है। मनष्य जो हो सकता अंधेरे से लड़ने का संघर्ष बंद कर देते हैं। अगर हमें ऐसा पता चले है परम, उस मनुष्य की परम संभावनाओं के अध्ययन पर इस मुल्क | कि हर आदमी बेईमान है, चोर है, तो हमारे भीतर वह जो बेईमान का मनसशास्त्र ठहरा हुआ है। है और चोर है, वह जस्टीफाइड हो जाता है; वह न्याययुक्त ठहर पश्चिम का मनसशास्त्र, मनुष्य जहां तक गिर सकता है | जाता है, कि जब सभी लोग चोर और बेईमान हैं, तो वह जो पीड़ा आखिरी, उस आखिरी सीमा-रेखा पर खड़ा हुआ है। निश्चित ही, | है चोर और बेईमान होने की, विदा हो जाती है। हम अपनी चोरी पश्चिम के मनोविज्ञान और पूरब के मनोविज्ञान का कोई तालमेल | और बेईमानी में भी राजी हो जाते हैं। नहीं हो पाता। निकृष्टतम को आधार बना लिया जाए, तो मनुष्य रोज नीचे हमने श्रेष्ठतम पर ध्यान रखा है, उन्होंने निकृष्टतम पर। हमने | गिरेगा। और पचास सालों में पश्चिम के मनोविज्ञान ने आदमी को चोटी पर ध्यान रखा है, उन्होंने खाई पर। निश्चित ही, जो खाई का नीचे गिराने की सीढ़ियां निर्मित की हैं। अध्ययन करेगा और जो शिखर का अध्ययन करेगा, उनके और बड़े मजे की बात है, जब आदमी नीचे गिरता है, तो पश्चिम अध्ययन के नतीजे भिन्न होने वाले हैं। जो शिखर का अध्ययन का मनोवैज्ञानिक कहता है कि हम तो पहले ही कहते थे कि नीचे करेगा, वह कहेगा कि शिखर पर सूरज की किरणों का बहुत स्पष्ट | गिरने के सिवाय और कुछ हो नहीं सकता। सेल्फ फुलफिलिंग फैलाव है। बादल छूते हैं। जो खाई का अध्ययन करेगा, वह कहेगा प्रोफेसीज! कुछ भविष्यवाणियां ऐसी होती हैं, जो खुद होकर अपने कि अंधकार सदा भरा रहता है। बादलों का कभी कोई पता नहीं को पूरा कर लेती हैं। चलता है। किसी आदमी से कह दें कि तुम पंद्रह साल बाद फलां दिन मर . मनुष्य में दोनों हैं, ऊंचाइयां भी और खाइयां भी। मनुष्य में बुद्ध जाओगे। जरूरी नहीं है कि यह भविष्यवाणी उसकी मृत्यु की जैसे शिखर भी हैं; हिटलर जैसी रुग्ण खाइयां भी हैं। मनुष्य एक जानकारी से निकली हो। लेकिन इस भविष्यवाणी से उसकी मृत्यु लंबा रेंज है। मनुष्य कहने से कुछ पता नहीं चलता। मनुष्य में | निकल सकती है। सेल्फ फुलफिलिंग हो जाएगी। पंद्रह साल बाद आखिरी मनुष्य भी सम्मिलित है और प्रथम मनुष्य भी सम्मिलित | मरना है, यह बात ही आधा मार डालेगी। फिर वह रोज मरने की है। जो ऊंचे से ऊंचे तक पहुंचा है शिखर पर जीवन के, वह भी | ही तैयारी करेगा या मरने से बचने की तैयारी करेगा, जो कि दोनों सम्मिलित है; और जो नीचे से नीचे उतर गया है, वह भी सम्मिलित | एक ही बात हैं। जिसमें कोई फर्क नहीं है। मरने से बचने की तैयारी है। वे जो पागलखाने में बंद हैं विक्षिप्त, वे भी सम्मिलित हैं; और करेगा या मरने की तैयारी करेगा, दोनों हालत में मृत्यु ही उसके जो परम आनंद को उपलब्ध हुए हैं विमुक्त, वे भी सम्मिलित हैं। | जीवन की आधारशिला और केंद्र बन जाएगी। आब्सेस्ड हो पश्चिम ने विक्षिप्त लोगों के अध्ययन पर जो नतीजा लिया है, जाएगा, फोकस्ड। मौत पर उसकी आंखें ठहर जाएंगी। सारी जिंदगी 286/
SR No.002405
Book TitleGita Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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